श्री नमिनाथ जी चालीसा
सतत पूज्यनीय भगवन, नमिनाथ जिन महिभावान ।
भक्त करें जो मन में ध्याय, पा जाते मुक्ति वरदान ।।
जय श्री नमिनाथ जिन स्वामी, वसु गुण मण्डित प्रभु प्रणमामि ।
मिथिला नगरी प्रान्त बिहार, श्री विजय राज्य करें हितकार ।।
विप्रा देवी महारानी थी, रूप गुणों की वो खानी थी ।
कृष्णाश्विन द्वितीय सुखदाता, षोडश स्वपन देखती माता।।
अपराजित विमान को तजकर, जननी उदर बसे प्रभु आकर ।
कृष्ण असाढ़ दशमी सुखकार, भूतल पर हुआ प्रभु अवतार ।।
आयु सहस दस वर्ष प्रभु की, धनु पंद्रह अव्गना उनकी ।
तरुण हुए जब राजकुमार, हुआ विवाह तब आनंदकार ।।
एक दिन भ्रमण करे उपवन में, वर्षा ऋतू में हर्षित मन में ।
नमस्कार करके दो देव, कारण कहने लगे स्वयमेव ।।
ज्ञात हुआ की क्षेत्र विदेह में, भावी तीर्थंकर तुम जग में ।
देवों से सुन कर ये बात, राजमहल लोटें नमिनाथ ।।
सोच हुआ भव भव भ्रमण का, चिंतन करते रहे मोचन का ।
परम दिगंबर व्रत करू अर्जन, रत्नात्रय्धन करू उपार्जन ।।
सुप्रभ सूत को राज सौपकर, गाये चित्रवन में जिनवर ।
दशमी असाढ़ मास की कारी, साहस नृपति संग दीक्षा धारी ।।
दो दिन तक उपवास धारकर, आतम लीन हुए श्री प्रभुवर ।
तीसरे दिन जब किया विहार, भूप वीरपुर दे आहार।।
नौ वर्ष तक तप किया वन में, एक दिन मौली श्री तरु तल में ।
अनुभूति हुई दिव्याभास, शुक्ल एकादशी मंगसिर मास ।।
नमिनाथ हुए ज्ञान के सागर, ज्ञानोत्सव करते सुर आकर ।
समोशरण था सभा विभूषित, मानस्तम्भ थे चार सुशोभित ।।
हुआ मौन भंग दिव्य ध्वनि से, सब दुःख दूर हुए अवनि से ।
आत्म पदार्थ की सत्ता सिद्ध, करना तन में अहम् प्रसिद्द ।।
बाह्येंद्रियो में करण के द्वारा, अनुभव से करता स्वीकारा।
पर परिणिति से ही यह जीव, चतुर्गति में भ्रमे सदीव ।।
रहे नरक सागर पर्यन्त, सहे भूख प्यास तिर्यंच ।
हुआ मनुज तो भी संक्लेश, देवों में भी इर्ष्या द्वेष ।।
नहीं सुखो का कही ठिकाना, सच्चा सुख तो मोक्ष में माना ।
मोक्ष गति का द्वार हैं एक, नरभव से ही पाए नेक ।।
सुन कर मगन हुए सब सुरगण, व्रत धारण करते श्रावक जन ।
हुआ विहार जहां भी प्रभु का, हुआ वहीँ कल्याण सभी का ।।
करते विहार जिनेश, एक मास रही आयु शेष ।
शिखर सम्मेद के ऊपर जाकर, प्रतिमा योग धरा हर्षाकर ।।
शुक्ल ध्यान की अग्नि प्रजारी, हने अघाति कर्म दुखकारी ।
अजर अमर शाश्वत पद पाया, सुर नर सबका मन हर्षाया ।।
शुभ निर्वाण महोत्सव करते, कूट मित्रधर पूजन करते ।
प्रभु हैं नील कमल से अलंकृत, हम हो उत्तम फल से उपकृत ।।
नमिनाथ स्वामी जगवन्दन,
" अपना नाम " करता/करती प्रभु अभिनन्दन ।।
॥ इति ॥
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