श्री सुविधिनाथ जी चालीसा
दुख से तप्त मरूस्थल भव में, सघन वृक्ष सम छायाकार ।।
पुष्पदन्त पद – छत्र – छाँव में हम आश्रय पावे सुखकार ।।
जम्बूद्विप के भारत क्षेत्र में, काकन्दी नामक नगरी में ।।
राज्य करें सुग्रीव बलधारी, जयरामा रानी थी प्यारी ।।
नवमी फाल्गुन कृष्ण बल्वानी, षोडश स्वप्न देखती रानी ।।
सुत तीर्थंकर हर्भ में आएं, गर्भ कल्याणक देव मनायें ।।
प्रतिपदा मंगसिर उजयारी, जन्मे पुष्पदन्त हितकारी ।।
शुक्ल ध्यान की महिमा गाई, शुक्ल ध्यान से हों शिवराई ।।
चारो भेद सहित धारो मन, मोक्षमहल में पहुँचो तत्क्षण ।।
मोक्ष मार्ग दर्शाया प्रभु ने, हर्षित हुए सकल जन मन में ।।
इन्द्र करे प्रार्थना जोड़ कर, सुखद विहार हुआ श्री जिनवर ।।
गए अन्त में शिखर सम्मेद, ध्यान में लीन हुए निरखेद ।।
शुक्ल ध्यान से किया कर्मक्षय, सन्ध्या समय पाया पद आक्षय ।।
अश्विन अष्टमी शुकल महान, मोक्ष कल्याणक करें सुर आन ।।
सुप्रभ कूट की करते पूजा, सुविधि नाथ नाम है दूजा ।।
मगरमच्छ है लक्षण प्रभु का, मंगलमय जीवन था उनका ।।
शिखर सम्मेद में भारी अतिशय, प्रभु प्रतिमा है चमत्कारमय ।।
कलियुग में भी आते देव, प्रतिदिन नृत्य करें स्वयमेव ।।
घुंघरू की झंकार गूंजती, सब के मन को मोहित करती ।।
ध्वनि सुनी हमने कानो से, पूजा की बहु उपमानो से ।।
हमको है ये दृढ श्रद्धान, भक्ति से पायें शिवथान ।।
भक्ति में शक्ति है न्यारी, राह दिखायें करूणाधारी ।।
पुष्पदन्त गुणगान से, निश्चित हो कल्याण ।।
हम सब अनुक्रम से मिले, अन्तिम पद निर्वाण ।।
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