भक्तामर स्तोत्र हिन्दी में अर्थ सहित
भक्तामर स्तोत्र की रचना राजा भोज की धार नगरी में हुई थी । भक्तामर स्तोत्र में श्वेताम्बर मान्यतानुसार 48 श्लोक है , जैन धर्म की एक मान्यतानुसार भक्तामर स्तोत्र में 44 श्लोक है ।
यह स्तोत्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान को समर्पित है । इस स्तोत्र की मूल भाषा संस्कृत है । श्री भक्तामर स्तोत्र महान मंगलदायक , सर्वविघ्न विनाशक , पापनाशक तथा सर्वसुखदायी है ।
श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ प्रातः सुबह निश्चित ही करना चाहिए, प्रातः काल का समय भक्तामर स्तोत्र के लिए सबसे उत्तम होता है । सूर्योदय इसके पाठ का सबसे सही समय है । अगर संस्कृत पढ़ सके तो सबसे अच्छा है , अगर संस्कृत नही पढ़ सकते तो यह हिन्दी पाठ पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ अवश्य पढ़ना चाहिए ।
भक्तामर स्तोत्र - हिंदी में अर्थ सहित
Bhaktamar Stotra Shloka-1 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के प्रथम श्लोक का अर्थ )
झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा)|
Bhaktamar Stotra Shloka-2 With Hindi Meaning
Bhaktamar Stotra Shloka-3 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के तृतीय श्लोक का अर्थ )
देवों के द्वारा पूजित हैं सिंहासन जिनका, ऐसे हे जिनेन्द्र मैं बुद्धि रहित होते हुए भी निर्लज्ज होकर स्तुति करने के लिये तत्पर हुआ हूँ क्योंकि जल में स्थित चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को बालक को छोड़कर दूसरा कौन मनुष्य सहसा पकड़ने की इच्छा करेगा? अर्थात् कोई नहीं |
Bhaktamar Stotra Shloka-4 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के चतुर्थ श्लोक का अर्थ )
हे गुणों के भंडार! आपके चन्द्रमा के समान सुन्दर गुणों को कहने लिये ब्रहस्पति के सद्रश भी कौन पुरुष समर्थ है? अर्थात् कोई नहीं अथवा प्रलयकाल की वायु के द्वारा प्रचण्ड है मगरमच्छों का समूह जिसमें ऐसे समुद्र को भुजाओं के द्वारा तैरने के लिए कौन समर्थ है अर्थात् कोई नहीं |
Bhaktamar Stotra Shloka-5 With Hindi Meaning
Bhaktamar Stotra Shloka-6 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के छठे श्लोक का अर्थ )
विद्वानों की हँसी के पात्र, मुझ अल्पज्ञानी को आपकी भक्ति ही बोलने को विवश करती हैं | बसन्त ऋतु में कोयल जो मधुर शब्द करती है उसमें निश्चय से आम्र कलिका ही एक मात्र कारण हैं |
Bhaktamar Stotra Shloka-7 With Hindi Meaning
Bhaktamar Stotra Shloka-8 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के आठवें श्लोक का अर्थ )
हे स्वामिन्! ऐसा मानकर मुझ मन्दबुद्धि के द्वारा भी आपका यह स्तवन प्रारम्भ किया जाता है, जो आपके प्रभाव से सज्जनों के चित्त को हरेगा| निश्चय से पानी की बूँद कमलिनी के पत्तों पर मोती के समान शोभा को प्राप्त करती हैं |
Bhaktamar Stotra Shloka-9 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के नौंवें श्लोक का अर्थ )
सम्पूर्ण दोषों से रहित आपका स्तवन तो दूर, आपकी पवित्र कथा भी प्राणियों के पापों का नाश कर देती है | जैसे, सूर्य तो दूर, उसकी प्रभा ही सरोवर में कमलों को विकसित कर देती है |
Bhaktamar Stotra Shloka-10 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के दसवें श्लोक का अर्थ )
हे जगत् के भूषण! हे प्राणियों के नाथ! सत्यगुणों के द्वारा आपकी स्तुति करने वाले पुरुष पृथ्वी पर यदि आपके समान हो जाते हैं तो इसमें अधिक आश्चर्य नहीं है| क्योंकि उस स्वामी से क्या प्रयोजन, जो इस लोक में अपने अधीन पुरुष को सम्पत्ति के द्वारा अपने समान नहीं कर लेता |
Bhaktamar Stotra Shloka-11 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के ग्यारहवें श्लोक का अर्थ )
हे अभिमेष दर्शनीय प्रभो ! आपके दर्शन के पश्चात् मनुष्यों के नेत्र अन्यत्र सन्तोष को प्राप्त नहीं होते | चन्द्रकीर्ति के समान निर्मल क्षीरसमुद्र के जल को पीकर कौन पुरुष समुद्र के खारे पानी को पीना चाहेगा ? अर्थात् कोई नहीं |
Bhaktamar Stotra Shloka-12 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के बारहवें श्लोक का अर्थ )
हे त्रिभुवन के एकमात्र आभुषण जिनेन्द्रदेव! जिन रागरहित सुन्दर परमाणुओं के द्वारा आपकी रचना हुई वे परमाणु पृथ्वी पर निश्चय से उतने ही थे क्योंकि आपके समान दूसरा रूप नहीं है |
Bhaktamar Stotra Shloka-13 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के तेरहवें श्लोक का अर्थ )
हे प्रभो! सम्पूर्ण रुप से तीनों जगत् की उपमाओं का विजेता, देव मनुष्य तथा धरणेन्द्र के नेत्रों को हरने वाला कहां आपका मुख? और कलंक से मलिन, चन्द्रमा का वह मण्डल कहां? जो दिन में पलाश (ढाक) के पत्ते के समान फीका पड़ जाता |
Bhaktamar Stotra Shloka-14 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के चौदहवे श्लोक का अर्थ )
पूर्ण चन्द्र की कलाओं के समान उज्ज्वल आपके गुण, तीनों लोको में व्याप्त हैं क्योंकि जो अद्वितीय त्रिजगत् के भी नाथ के आश्रित हैं उन्हें इच्छानुसार घुमते हुए कौन रोक सकता हैं? कोई नहीं |
Bhaktamar Stotra Shloka-15 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 15 वें श्लोक का अर्थ )
यदि आपका मन देवागंनाओं के द्वारा किंचित् भी विक्रति को प्राप्त नहीं कराया जा सका, तो इस विषय में आश्चर्य ही क्या है? पर्वतों को हिला देने वाली प्रलयकाल की पवन के द्वारा क्या कभी मेरु का शिखर हिल सका है? नहीं |
Bhaktamar Stotra Shloka-16 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 16 वें श्लोक का अर्थ )
हे स्वामिन्! आप धूम तथा बाती से रहित, तेल के प्रवाह के बिना भी इस सम्पूर्ण लोक को प्रकट करने वाले अपूर्व जगत् प्रकाशक दीपक हैं जिसे पर्वतों को हिला देने वाली वायु भी कभी बुझा नहीं सकती |
Bhaktamar Stotra Shloka-17 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 17 वें श्लोक का अर्थ )
हे मुनीन्द्र! आप न तो कभी अस्त होते हैं न ही राहु के द्वारा ग्रसे जाते हैं और न आपका महान तेज मेघ से तिरोहित होता है आप एक साथ तीनों लोकों को शीघ्र ही प्रकाशित कर देते हैं अतः आप सूर्य से भी अधिक महिमावन्त हैं |
Bhaktamar Stotra Shloka-18 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 18 वें श्लोक का अर्थ )
हमेशा उदित रहने वाला, मोहरुपी अंधकार को नष्ट करने वाला जिसे न तो राहु ग्रस सकता है, न ही मेघ आच्छादित कर सकते हैं, अत्यधिक कान्तिमान, जगत को प्रकाशित करने वाला आपका मुखकमल रुप अपूर्व चन्द्रमण्डल शोभित होता है |
Bhaktamar Stotra Shloka-19 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 19 वें श्लोक का अर्थ )
हे स्वामिन्! जब अंधकार आपके मुख रुपी चन्द्रमा के द्वारा नष्ट हो जाता है तो रात्रि में चन्द्रमा से एवं दिन में सूर्य से क्या प्रयोजन? पके हुए धान्य के खेतों से शोभायमान धरती तल पर पानी के भार से झुके हुए मेघों से फिर क्या प्रयोजन |
Bhaktamar Stotra Shloka-20 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 20 वें श्लोक का अर्थ )
अवकाश को प्राप्त ज्ञान जिस प्रकार आप में शोभित होता है वैसा विष्णु महेश आदि देवों में नहीं | कान्तिमान मणियों में, तेज जैसे महत्व को प्राप्त होता है वैसे किरणों से व्याप्त भी काँच के टुकड़े में नहीं होता |
Bhaktamar Stotra Shloka-21 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 21 वें श्लोक का अर्थ )
हे स्वामिन्| देखे गये विष्णु महादेव ही मैं उत्तम मानता हूँ, जिन्हें देख लेने पर मन आपमें सन्तोष को प्राप्त करता है| किन्तु आपको देखने से क्या लाभ? जिससे कि प्रथ्वी पर कोई दूसरा देव जन्मान्तर में भी चित्त को नहीं हर पाता |
Bhaktamar Stotra Shloka-22 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 22 वें श्लोक का अर्थ )
सैकड़ों स्त्रियाँ सैकड़ों पुत्रों को जन्म देती हैं, परन्तु आप जैसे पुत्र को दूसरी माँ उत्पन्न नहीं कर सकी| नक्षत्रों को सभी दिशायें धारण करती हैं परन्तु कान्तिमान् किरण समूह से युक्त सूर्य को पूर्व दिशा ही जन्म देती हैं |
Bhaktamar Stotra Shloka-23 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 23 वें श्लोक का अर्थ )
हे मुनीन्द्र! तपस्वीजन आपको सूर्य की तरह तेजस्वी निर्मल और मोहान्धकार से परे रहने वाले परम पुरुष मानते हैं | वे आपको ही अच्छी तरह से प्राप्त कर म्रत्यु को जीतते हैं | इसके सिवाय मोक्षपद का दूसरा अच्छा रास्ता नहीं है |
Bhaktamar Stotra Shloka-24 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 24 वें श्लोक का अर्थ )
सज्जन पुरुष आपको शाश्वत, विभु, अचिन्त्य, असंख्य, आद्य, ब्रह्मा, ईश्वर, अनन्त, अनंगकेतु, योगीश्वर, विदितयोग, अनेक, एक ज्ञानस्वरुप और अमल कहते हैं |
Bhaktamar Stotra Shloka-25 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 25 वें श्लोक का अर्थ )
देव अथवा विद्वानों के द्वारा पूजित ज्ञान वाले होने से आप ही बुद्ध हैं| तीनों लोकों में शान्ति करने के कारण आप ही शंकर हैं| हे धीर! मोक्षमार्ग की विधि के करने वाले होने से आप ही ब्रह्मा हैं| और हे स्वामिन्! आप ही स्पष्ट रुप से मनुष्यों में उत्तम अथवा नारायण हैं |
Bhaktamar Stotra Shloka-26 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 26 वें श्लोक का अर्थ )
हे स्वामिन्! तीनों लोकों के दुःख को हरने वाले आपको नमस्कार हो, प्रथ्वीतल के निर्मल आभुषण स्वरुप आपको नमस्कार हो, तीनों जगत् के परमेश्वर आपको नमस्कार हो और संसार समुन्द्र को सुखा देने वाले आपको नमस्कार हो |
Bhaktamar Stotra Shloka-27 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 27वें श्लोक का अर्थ )
हे मुनीश! अन्यत्र स्थान न मिलने के कारण समस्त गुणों ने यदि आपका आश्रय लिया हो तो तथा अन्यत्र अनेक आधारों को प्राप्त होने से अहंकार को प्राप्त दोषों ने कभी स्वप्न में भी आपको न देखा हो तो इसमें क्या आश्चर्य?
Bhaktamar Stotra Shloka-28 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 28 वें श्लोक का अर्थ )
ऊँचे अशोक वृक्ष के नीचे स्थित, उन्नत किरणों वाला, आपका उज्ज्वल रुप जो स्पष्ट रुप से शोभायमान किरणों से युक्त है, अंधकार समूह के नाशक, मेघों के निकट स्थित सूर्य बिम्ब की तरह अत्यन्त शोभित होता है |
Bhaktamar Stotra Shloka-29 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 29 वें श्लोक का अर्थ )
मणियों की किरण-ज्योति से सुशोभित सिंहासन पर, आपका सुवर्ण कि तरह उज्ज्वल शरीर, उदयाचल के उच्च शिखर पर आकाश में शोभित, किरण रुप लताओं के समूह वाले सूर्य मण्डल की तरह शोभायमान हो रहा है|
Bhaktamar Stotra Shloka-30 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 30 वें श्लोक का अर्थ )
कुन्द के पुष्प के समान धवल चँवरों के द्वारा सुन्दर है शोभा जिसकी, ऐसा आपका स्वर्ण के समान सुन्दर शरीर, सुमेरुपर्वत, जिस पर चन्द्रमा के समान उज्ज्वल झरने के जल की धारा बह रही है, के स्वर्ण निर्मित ऊँचे तट की तरह शोभायमान हो रहा है|
Bhaktamar Stotra Shloka-31 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 31 वें श्लोक का अर्थ )
चन्द्रमा के समान सुन्दर, सूर्य की किरणों के सन्ताप को रोकने वाले, तथा मोतियों के समूहों से बढ़ती हुई शोभा को धारण करने वाले, आपके ऊपर स्थित तीन छत्र, मानो आपके तीन लोक के स्वामित्व को प्रकट करते हुए शोभित हो रहे हैं|
Bhaktamar Stotra Shloka-32 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 32 वें श्लोक का अर्थ )
गम्भीर और उच्च शब्द से दिशाओं को गुञ्जायमान करने वाला, तीन लोक के जीवों को शुभ विभूति प्राप्त कराने में समर्थ और समीचीन जैन धर्म के स्वामी की जय घोषणा करने वाला दुन्दुभि वाद्य आपके यश का गान करता हुआ आकाश में शब्द करता है|
Bhaktamar Stotra Shloka-33 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 33 वें श्लोक का अर्थ )
सुगंधित जल बिन्दुओं और मन्द सुगन्धित वायु के साथ गिरने वाले श्रेष्ठ मनोहर मन्दार, सुन्दर, नमेरु, पारिजात, सन्तानक आदि कल्पवृक्षों के पुष्पों की वर्षा आपके वचनों की पंक्तियों की तरह आकाश से होती है|
Bhaktamar Stotra Shloka-34 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 34 वें श्लोक का अर्थ )
हे प्रभो! तीनों लोकों के कान्तिमान पदार्थों की प्रभा को तिरस्कृत करती हुई आपके मनोहर भामण्डल की विशाल कान्ति एक साथ उगते हुए अनेक सूर्यों की कान्ति से युक्त होकर भी चन्द्रमा से शोभित रात्रि को भी जीत रही है|
Bhaktamar Stotra Shloka-35 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 35 वें श्लोक का अर्थ )
आपकी दिव्यध्वनि स्वर्ग और मोक्षमार्ग की खोज में साधक, तीन लोक के जीवों को समीचीन धर्म का कथन करने में समर्थ, स्पष्ट अर्थ वाली, समस्त भाषाओं में परिवर्तित करने वाले स्वाभाविक गुण से सहित होती है|
Bhaktamar Stotra Shloka-36 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 36 वें श्लोक का अर्थ )
पुष्पित नव स्वर्ण कमलों के समान शोभायमान नखों की किरण प्रभा से सुन्दर आपके चरण जहाँ पड़ते हैं वहाँ देव गण स्वर्ण कमल रच देते हैं |
Bhaktamar Stotra Shloka-37 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 37 वें श्लोक का अर्थ )
हे जिनेन्द्र! इस प्रकार धर्मोपदेश के कार्य में जैसा आपका ऐश्वर्य था वैसा अन्य किसी का नही हुआ| अंधकार को नष्ट करने वाली जैसी प्रभा सूर्य की होती है वैसी अन्य प्रकाशमान भी ग्रहों की कैसे हो सकती है ?
Bhaktamar Stotra Shloka-38 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 38 वें श्लोक का अर्थ )
आपके आश्रित मनुष्यों को, झरते हुए मद जल से जिसके गण्डस्थल मलीन, कलुषित तथा चंचल हो रहे है और उन पर उन्मत्त होकर मंडराते हुए काले रंग के भौरे अपने गुजंन से क्रोध बढा़ रहे हों ऐसे ऐरावत की तरह उद्दण्ड, सामने आते हुए हाथी को देखकर भी भय नहीं होता|
Bhaktamar Stotra Shloka-39 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 39 वें श्लोक का अर्थ )
सिंह, जिसने हाथी का गण्डस्थल विदीर्ण कर, गिरते हुए उज्ज्वल तथा रक्तमिश्रित गजमुक्ताओं से पृथ्वी तल को विभूषित कर दिया है तथा जो छलांग मारने के लिये तैयार है वह भी अपने पैरों के पास आये हुए ऐसे पुरुष पर आक्रमण नहीं करता जिसने आपके चरण युगल रुप पर्वत का आश्रय ले रखा है|
Bhaktamar Stotra Shloka-40 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 40 वें श्लोक का अर्थ )
आपके नाम यशोगानरुपी जल, प्रलयकाल की वायु से उद्धत, प्रचण्ड अग्नि के समान प्रज्वलित, उज्ज्वल चिनगारियों से युक्त, संसार को भक्षण करने की इच्छा रखने वाले की तरह सामने आती हुई वन की अग्नि को पूर्ण रुप से बुझा देता है |
Bhaktamar Stotra Shloka-41 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 41 वें श्लोक का अर्थ )
जिस पुरुष के ह्रदय में नामरुपी-नागदौन नामक औषध मौजूद है, वह पुरुष लाल लाल आँखो वाले, मदयुक्त कोयल के कण्ठ की तरह काले, क्रोध से उद्धत और ऊपर को फण उठाये हुए, सामने आते हुए सर्प को निश्शंक होकर दोनों पैरो से लाँघ जाता है |
Bhaktamar Stotra Shloka-42 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 42 वें श्लोक का अर्थ )
आपके यशोगान से युद्धक्षेत्र में उछलते हुए घोडे़ और हाथियों की गर्जना से उत्पन भयंकर कोलाहल से युक्त पराक्रमी राजाओं की भी सेना, उगते हुए सूर्य किरणों की शिखा से वेधे गये अंधकार की तरह शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाती है |
Bhaktamar Stotra Shloka-43 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 43 वें श्लोक का अर्थ )
हे भगवन् आपके चरण कमलरुप वन का सहारा लेने वाले पुरुष, भालों की नोकों से छेद गये हाथियों के रक्त रुप जल प्रवाह में पडे़ हुए, तथा उसे तैरने के लिये आतुर हुए योद्धाओं से भयानक युद्ध में, दुर्जय शत्रु पक्ष को भी जीत लेते हैं|
Bhaktamar Stotra Shloka-44 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 44 वें श्लोक का अर्थ )
क्षोभ को प्राप्त भयंकर मगरमच्छों के समूह और मछलियों के द्वारा भयभीत करने वाले दावानल से युक्त समुद्र में विकराल लहरों के शिखर पर स्थित है जहाज जिनका, ऐसे मनुष्य, आपके स्मरण मात्र से भय छोड़कर पार हो जाते हैं|
Bhaktamar Stotra Shloka-45 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 45 वें श्लोक का अर्थ )
उत्पन्न हुए भीषण जलोदर रोग के भार से झुके हुए, शोभनीय अवस्था को प्राप्त और नहीं रही है जीवन की आशा जिनके, ऐसे मनुष्य आपके चरण कमलों की रज रुप अम्रत से लिप्त शरीर होते हुए कामदेव के समान रुप वाले हो जाते हैं|
Bhaktamar Stotra Shloka-46 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 46 वें श्लोक का अर्थ )
जिनका शरीर पैर से लेकर कण्ठ पर्यन्त बडी़-बडी़ सांकलों से जकडा़ हुआ है और विकट सघन बेड़ियों से जिनकी जंघायें अत्यन्त छिल गईं हैं ऐसे मनुष्य निरन्तर आपके नाममंत्र को स्मरण करते हुए शीघ्र ही बन्धन मुक्त हो जाते है|
Bhaktamar Stotra Shloka-47 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 47 वें श्लोक का अर्थ )
जो बुद्धिमान मनुष्य आपके इस स्तवन को पढ़ता है उसका मत्त हाथी, सिंह, दवानल, युद्ध, समुद्र जलोदर रोग और बन्धन आदि से उत्पन्न भय मानो डरकर शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाता है |
Bhaktamar Stotra Shloka-48 With Hindi Meaning
(भक्तामर स्तोत्र के 48 वें श्लोक का अर्थ )
हे जिनेन्द्र देव! इस जगत् में जो लोग मेरे द्वारा भक्तिपूर्वक (ओज, प्रसाद, माधुर्य आदि) गुणों से रची गई नाना अक्षर रुप, रंग बिरंगे फूलों से युक्त आपकी स्तुति रुप माला को कंठाग्र करता है उस उन्नत सम्मान वाले पुरुष को अथवा आचार्य मानतुंग को स्वर्ग मोक्षादि की विभूति अवश्य प्राप्त होती है|
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