जैन धर्म में नारद कौन होते है ?
जैन धर्म में नारद कलह प्रिय और युद्ध प्रिय होते हैं । जैन धर्म में नारद की संख्या एक काल में 9 होती है । नारद एक स्थान की बात को दूसरे स्थान पर पहुँचाने में कुशल होते हैं। नारायण व प्रतिनारायण को लड़ाने में नारद अहम् भूमिका निभाते हैं। नारद बाल ब्रह्मचारी होते हैं।
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नारद धर्म-कार्य में तत्पर रहते हुए भी हिंसा व कलह आदि में रुचि रखने के कारण नरक गामी होते हैं। जिनेन्द्र भगवान की भक्ति के प्रभाव से नारद शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। इनका स्वभाव हमेशा क्लेश उत्पन्न करने वाला होता है ।
जैन धर्म में इस काल के 9 नारद :
1.भीम
2.महाभीम
3.रुद्र
4.महारूद्र
5.काल
6.महाकाल
7.दुर्मुख
8.नरमुख
9.अधोमुख।
इस प्रकार से ये नौ नारद हुये जिनका वर्णन जैन ग्रन्थो में आता है ।
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