जैन धर्म में तीर्थंकर प्रभू के अष्ट प्रतिहार्य कौन - कौनसे है ?
ये अष्ट प्रतिहार्य तीर्थंकर भगवान को केवलज्ञान प्राप्त होते ही घटित होते हैं और निर्वाण अवस्था तक साथ रहते हैं। इन प्रतिहार्यों के प्रभाव से तीर्थंकर प्रभू की धर्मसभा के आसपास सुख-शान्ति (धर्म का मंगल प्रभाव) रहती है। अष्ट प्रतिहार्य देवो के द्वारा निर्मित होते है ।
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तीर्थंकर प्रभू के अष्ट प्रतिहार्य |
अष्ट प्रतिहार्य - अष्ट प्रतिहार्य जो केवलज्ञान के बाद उत्पन्न होते हैं वे हैं -
(१) अशोक वृक्ष
(२) देव-दुन्दुभि
(३) पुष्प वृष्टि
(४) धर्म-चक्र
(५) तीन छत्र
(६) स्वर्णमय सिंहासन
(७) आभामण्डल (भामंडल)
(८) चामरधारी इन्द्र (चौसंठ चंवर)
ये अष्ट प्रतिहार्य तीर्थंकर प्रभू के 34 अतिशय का हिस्सा होते है । तीर्थंकर प्रभू के वे मुख्य आश्चर्य जो केवलयज्ञान के सूचक होते है ,अष्ट प्रतिहार्य कहलाते है ।
आचार्य मांगतुंग जी ने भक्तामर स्तोत्र में बहुत हि सुन्दर ढंग से इन अष्ट प्रतिहार्य का वर्णन किया है ।
ये अष्ट प्रतिहार्य प्रत्येक तीर्थंकर प्रभू को कैव्लय ज्ञान की प्राप्ती के साथ घटित होते है , ये प्रभू की अरिहंत अवस्था के सूचक होते है ।
( नोट -: अष्ट प्रतिहार्य का घटित होना , तीर्थंकर प्रभू का 34 अतिशय व 35 वाणी सहित होना तीर्थंकर प्रभू का मूल गुण है । परन्तु सामान्य केवली के अष्ट प्रतिहार्य घटित हो यह आवश्यक नही होता )
इस प्रकार से तीर्थंकर प्रभू के अष्ट प्रतिहार्य थे , अगर मुझसे कोई भी त्रुटि हो गई हो तो " तस्स मिच्छामी दुक्कडम " ।
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