Bhaktamar Stotra Shloka-36 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-36 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
सम्पत्ति-दायक
(In Sanskrit)
उन्निद्र-हेम-नवपंकजपुंज-कांती,
पर्युल्लसन्नख-मयूख-शिखा-भिरामौ ।
पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र धत्तः,
पद्मानि तत्र विबुधाः परि-कल्पयंति ॥36॥
(In English)
unnidrahema - navapankaja - punjakanti,
paryullasannakhamayukha-shikhabhiramau |
padau padani tava yatra jinendra ! dhattah
padmani tatra vibudhah parikalpayanti || 36 ||
Explanation (English)
O Tirthankara ! Your feet are radiant like fresh golden
lotuses. Their nails have an attractive glow. Wherever
you put your feet the lords create golden lotuses.
(हिन्दी में )
विकसित-सुवरन-कमल-दुति, नख-दुति मिलि चमकाहिं |
तुम पद पदवी जहँ धरो, तहँ सुर कमल रचाहिं ||३६||
(भक्तामर स्तोत्र के 36 वें श्लोक का अर्थ )
पुष्पित नव स्वर्ण कमलों के समान शोभायमान नखों की किरण प्रभा से सुन्दर आपके चरण जहाँ पड़ते हैं वहाँ देव गण स्वर्ण कमल रच देते हैं |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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