जैन धर्म मे ज्ञान के प्रकार ( JAINISM KNOWLEDGE )
जैन धर्म के अनुसार ज्ञान के कितने प्रकार होते है ?
जैन धर्म के अनुसार ज्ञान के 5 प्रकार होते है ( Five Means Of Knowledge According To Jainism ) । जैन दर्शन की मान्यता है की समस्त ज्ञान आत्मा में निहित होता है । जब अशुभ पाप के परमाणु आत्मा से उतर जाते है , तब आत्मा पुण्य के प्रभाव से हल्की हो जाती है , तब आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करती है । जैन धर्म का ज्ञान ( Jainism Knowledge ) पाँच प्रकार का है ।
जानिये - जैन धर्म मे सिद्ध कौन होते है ?
(Five types of knowledge in Jainism)
जैन दर्शन के अनुसार ज्ञान के प्रमुख 5 प्रकार -:
- 1. मतिज्ञान
- 2. श्रुतिज्ञान
- 3. अवधिज्ञान
- 4. मनःपर्याय ज्ञान
- 5. कैवल्य ज्ञान
जैन धर्म में मतिज्ञान क्या है ?
1. मतिज्ञान - जिस ज्ञान मे हम मन व इंद्रियों की सहायता से ज्ञान प्राप्त करते है वह ज्ञान इंद्रिय जनित ज्ञान मतिज्ञान कहलाता है ।
जैन धर्म में श्रुतिज्ञान क्या है ?
2. श्रुतिज्ञान - श्रवण ज्ञान वह ज्ञान जो हम केवल मात्र सुनकर प्राप्त करते है । जिसमे मन एवं इंद्रियों के द्वारा हुए अर्थज्ञान का वाच्यार्थ ज्ञान यानी पहले के ज्ञान की व्याख्या तथा अर्थ को सुनकर गृहण किया जाता है , वह ज्ञान श्रुतिज्ञान कहलाता है। प्राचीन समय मे जब ग्रंथ नही लिखें गयें थे तो हमारें आचार्य ज्ञान को श्रुत के माध्यम से ही प्रदान करते थे ।
नोट -: वर्तमान समय में ज्ञान के 5 प्रकारो में से हम केवल मतिज्ञान व श्रुतज्ञान के माध्यम से ही ज्ञान को ग्रहण करते है , पाँचवे आरें में किसी भी मनुष्य को अवधिज्ञान , मनः पर्याय ज्ञान की प्राप्ती परम दुर्लभ है व कैवलय ज्ञान की प्राप्ती नही होती है ।
जैन धर्म में अवधिज्ञान क्या है ?
3. अवधिज्ञान – मन व इंद्रियों की सहायता के बिना आत्म-शक्ति से अमुक नियत मर्यादा-सीमा तक के मूर्त पदार्थों की जानकारी देने वाला ज्ञान । इसको हम दिव्य ज्ञान भी कह सकते हैं। इस ज्ञान की सहायता से देश , काल की मर्यादा के हिसाब से अन्य क्षेत्रो का सापेक्ष ज्ञान हो जाता है ।
जैन धर्म में मनःपर्याय ज्ञान क्या है ?
4. मनःपर्याय ज्ञान - इस ज्ञान कि प्राप्ती से मनुष्य किसी के भी मन मस्तिष्क की अनकही बाते जान सकता है ।
जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान क्या है ?
5. कैवल्य ज्ञान - सम्पूर्ण ज्ञान (निर्ग्रंथ एवं जितेन्द्रियों को प्राप्त होने वाला ज्ञान) । इस ज्ञान की प्राप्ती होने के बाद कुछ भी शेष नही रह जाता , जिसे भी इस परम दुर्लभ ज्ञान की प्राप्ती होती है वह महान आत्मा अरिहंत बन जाती है । जैसे हथेली पर ऑवला रखा हो वैसे हि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के ज्ञाता दृष्टा बन जाते है । इस ज्ञान की प्राप्ती के बाद निश्चित रूप से ही आत्मा निर्वाण का लाभ प्राप्त करती है । प्रत्येक जैन तीर्थंकर एक कैव्लय ज्ञान के लिए हि सन्यासं लेकर साधना करते है । कैवलय ज्ञान के पश्चात् आत्मा परमात्मा बन जाती है ।
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