Bhaktamar Stotra Shloka-16 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-16 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
सर्व-विजय-दायक
(In Sanskrit)
निर्धूम-वर्त्ति-रपवर्जित-तैलपूरः,
कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटी-करोषि ।
गम्यो न जातु मरुतां चलिता-चलानां,
दीपोपरस्त्वमसि नाथ! जगत्प्रकाशः ॥16॥
(In English)
nirdhumavartipavarjita - tailapurah
kritsnam jagattrayamidam prakati-karoshi |
gamyo na jatu marutam chalitachalanam
dipoaparastvamasi nath jagatprakashah || 16 ||
Explanation (English)
You are O Master, an irradiating divine lamp that needs
neither a wick nor oil, and is smokeless, yet enlightens
three realms. Even the greatest of storm that does not
effect it.
(हिन्दी में )
धूम-रहित बाती गत नेह, परकाशे त्रिभुवन-घर एह |
वात-गम्य नाहीं परचंड, अपर दीप तुम बलो अखंड ||१६||
(भक्तामर स्तोत्र के 16 वें श्लोक का अर्थ )
हे स्वामिन्! आप धूम तथा बाती से रहित, तेल के प्रवाह के बिना भी इस सम्पूर्ण लोक को प्रकट करने वाले अपूर्व जगत् प्रकाशक दीपक हैं जिसे पर्वतों को हिला देने वाली वायु भी कभी बुझा नहीं सकती |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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