जैन धर्म में आचार्य कौन होते है ?
जैन धर्म में 'आचार्य' संघ के संचालक होते है । जैन धर्म में आचार्य वे होते है जो कि नवकार मंत्र के तृतीय पद ' नमो आयरियाणं ' में नमस्कार किये जाते है ।
जैन धर्म में ' आचार्य ' वे होते है जो -:
- 1.जैन धर्म में आचार्य वे होते है जो समस्त जैन संतो में सबसे सर्वोच्च होते है ।
- 2. जो दर्शन , ज्ञान , चारित्र , तप और वीर्य पाँच आचारों का स्वयं आचरण करते है और दूसरे साधुओ से आचरण कराते है , उन्हे आचार्य कहते है ।
- 3. जो चौदह विद्या-स्थानों में पारंगत हों, ग्यारह अंग के धारी हो, मेरू के समान निश्चल हों, पृथ्वी के समान सहनशील हों, जिन्होंने समुद्र के समान मल अर्थात् दोषों को बाहर फेंक दिया हो, जो सात प्रकार के भय से रहित हो, उन्हें आचार्य कहते हैं।
- 4. 12 तप, 10 धर्म, 5 आचार, 6 आवश्यक और 3 गुप्ति- इन 36 मूल गुणों का आचार्य परमेष्ठी सावधानी पूर्वक पालन करते हैं।
- 5. जो तीर्थंकर प्रभु और गणधर प्रभु की अनुपस्थिति में संघ के संचालक होते है , जो सब मुनियो में शिरोमणी होते है वह जैन साधु का सर्वोच्च पद ' आचार्य ' भगवंत सुशोभित करते है ।
इस प्रकार से जैन आचार्य कठोर नियमों का सहजता से पालन कर समस्त मुनियों के संघ को धर्म का उपदेश देते है और समस्त साधुओ और श्रावको का मार्गदर्शन करते है ।
अगर कोई त्रुटी हो तो ' मिच्छामी दुक्कडम '.
" जय जिनेन्द्र "
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