जैन धर्म में साधु कौन होते है ?
जैन धर्म में साधु/ साध्वीजी वे होते है,जो जैन धर्म के पंच महाव्रतो और तीन गुप्तियो का पालन करते है । ये परम तपस्वी और त्यागी होते है और जीवदया और अहिंसा पालन हि इन्का प्रमुख उद्देश्य होता है ।
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जैन साधु/ साध्वी जी वे होतें है जो -:
- 1. नवकार मंत्र के पाँचवें पद पर नमस्कार किये जाते है ।
- 2. " नमो लोएसव्वसाहूणं " में ध्यायें जाते है ।
- 3. ये त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्त होते है ।
- 4. जैन साधु अपना सम्पूर्ण जीवन अहिंसा के सिद्धांत पर जिते है ।
- 5. जैन साधु पंचमहाव्रतो का दृढ़ता से पालन करते है ।
- 6. जैन साधु, कठोर आत्म-साधना का प्रतीक है। ये तपस्या और सहिष्णुता के जीवन्त रूप होते हैं। साधु दया और परोपकार का, समता और निर्मलता का एक बहता प्रवाह है।
- 7. ये ज्ञान, ध्यान और स्वाध्याय में सर्वदा लीन रहते हैं। 27 गुणों से युक्त, 22 परिषहों को निश्चल हो सहन करते हैं। अतः समस्त संसार के साधुओं को णमो लोए सव्व साहूणं' पद द्वारा नमस्कार किया गया है ।
- 8. ये सूर्य के समान तेजस्वी अर्थात् समस्त तत्वों के प्रकाशक, समुद्र के समान गम्भीर, सुमेरू पर्वत के समान अटल और उपसर्गों के आने पर अडोल रहने वाले, चन्द्रमा के समान शान्तिदायक, पृथ्वी के समान सभी प्रकार की बाधाओं को सहने वाले, आकाश के समान निरालम्बी होते हैं
इस प्रकार एक जैन साधु अपनी समस्त दिनचर्या धर्मनुसार हि करते है और अपने जन्म - जन्मांतरो से चले आ रहे पाप कर्मो को नष्ट करने तथा निर्जरा करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते है । जैन मुनि पंचमहाव्रतो को संयम के साथ पालने का पूर्ण प्रयास करते है ।
जैन मुनि पैदल हि विहार करते है और रात्री में यह अन्न - जल कुछ भी ग्रहण नही करते । श्वेताम्बर जैन मुनि मुँह पर सफेद मुखवस्त्रिका का प्रयोग करते है और दिगम्बर जैन मुनि शीत , गर्मी सब समभाव से ग्रहण करते है । जैन साधु त्याग तपस्या की प्रतिमूर्त होते है तथा अहिंसा पालन के लिए सैदव सजग रहते है ।
अगर कोई त्रुटी हो तो ' मिच्छामी दुक्कडम '.
" जय जिनेन्द्र "
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