प्रतिक्रमण
जं दुक्कडं ति मिच्छा,तं भुज्जो कारणं अपूरेतो ।तिबिहेणं पडिक्कतो;तस्स खलु दुक्कडं मिच्छा ।
जो साधक विविध योग से प्रतिक्रमण करता है, जिस पाप के लिएमिच्छामि दुक्कडं दे देता है, फिर भविष्य में उस पाप को नहीं करताहै -वस्तुतः उसी का दुष्कृत मिथ्या अर्थात् निष्फल होता है ।
पढ़िये - रानी पद्मावती की ढाल ( आलोयणा )
प्रतिक्रमण
जं दुक्कडं ति मिच्छा,
तं भुज्जो कारणं अपूरेतो ।
तिबिहेणं पडिक्कतो;
तस्स खलु दुक्कडं मिच्छा ।
जो साधक विविध योग से प्रतिक्रमण करता है,
जिस पाप के लिए
मिच्छामि दुक्कडं दे देता है, फिर भविष्य में उस पाप को नहीं करता
है -वस्तुतः उसी का दुष्कृत मिथ्या अर्थात् निष्फल होता है ।
पढ़िये - रानी पद्मावती की ढाल ( आलोयणा )
संक्षिप्त प्रतिक्रमण
जं जं मणेण बद्धं, जं जं भासाए भासियं पावं।
जं जं कारण कयं, मिच्छा मि दुक्कडं तस्स ।।१।।
खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु में ।
मित्ती मे सव्व भूएस, वेरं मज्झं न केणइ ।२।।
सव्वस्स समण-संघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे।
सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ।। ३ ।।
आयरिए उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे य ।
जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि ।।४।।
सारं दंसण-नाणं, सारं तव-नियम-संजम-सीलं।
सारं जिणवरं धम्मं, सारं संलेहणा मरणं ||५||
एगो मे सासओ अप्पा, नाण दंसण-संजूओ
सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग--लक्खणा ।।६।।
मज्जं विसय कसाया, निद्दा विगहा य पंचमी भणिया।
एए पंच पमाया, जीवं पाडेंति संसारे ।।७।।
नोट- उपरोक्त संक्षिप्त प्रतिक्रमण अल्प समय हेतु दिया है, श्रावक उभयकाल पूर्ण प्रतिक्रमण ही करें ।
पढ़िये - आलोचना पाठ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।