रानी पद्मावती की ढाल ( आलोयणा )
ते मुझ मिच्छा मि दुक्कडं (टेर)
हिवे राणी पद्मावती, जीव राशि खमावे,
जाणपणूं जगते भलुं, इण वेला जो आवे । ते मुझ..।१।।
ते मुझ मिच्छा मि दुक्कडं, अरिहन्त सिद्ध नी साख,
जे मैं जीव विराधिया, चौरासी
लाख । ते मुझ..।२।।
सात लाख पृथ्वी तणा, साते अपकाय,
सात लाख तेऊ तणा, साते वली वाय । ते मुझ.. | ३ ||
दश लाख प्रत्येक वनस्पति, चउदे साधार,
बी-ती चौरिन्द्रिय जीवनी, बे, बे, लाख विचार। ते मुझ..।४।।
देवता तिर्यंच नारकी, चार-चार प्रकाशी,
चौदह-लाख मनुष्य ना, ये लाख चौरासी ।ते मुझ..।५।।
इण भव पर भव सेविया, जे पाप अठार,
त्रिविध-त्रिविध करि परिहरु, दुर्गति ना दातार ते मुझ..।६।।
हिंसा कीधी जीवनी, बोल्या मृषावाद,
दोष अदत्तादान ना, मैथुन नो उन्माद । ते मुझ..।७।।
परिग्रह मेल्यो कारमो, कीधो क्रोध विशेष,
मान माया लोभ मैं कियो, बली राग ने द्वेष । ते मुझ..। ८ ।।
कलह करी जीव
दूहव्या, दीधा कूड़ा कलक,
निन्दा कीधी पारकी, रति-अरति निःशंक । ते मुझ..।९।।
चोरी कीधी पारकी, कीधो थापण मोसो,
कुगुरु कुदेव कुधर्म ना, भली आण्यो भरोसो । ते मुझ..।१०।।
खाटकी ने भवे मैं किया, जीव ना वध घात,
चिड़िमार भवे चरकलां, मार्या दिन-रात । ते मुझ..।११।।
मायावी ने भवे, पढ़ी मन्त्र कठोर,
जीव अनेक जिबह किया, कीधा पाप अघोर । ते मुझ..|१२||
माछी ने भवे माछला झाल्या जल वास,
धीवर भील कोली भवे, मृग पाड्या पाश । ते मुझ.. | १३||
कोटवाल ने भवे मैं किया, आकरा कर दण्ड,
बन्दीवान मराविया, करोडा छड़ी दण्ड । ते मुझ..।१४।।
परमाधर्मी ने भवे, दीधा नारकी दुःख,
छेदन भेदन वेदना, ताड़न अति तिक्ख । ते मुझ..।१५।।
कुंभार ने भवे मैं किया, नीमाह पचाव्या,
तेली भवे तिल पीलिया, पापे पिण्ड भराव्या । ते मुझ..।१६।।
हाली भवे हल खेड़िया, फोड़या पृथ्वी ना पेट,
सूड़ नियाणा किया घणा, दीधा बादल चपेट । ते मुझ..।१७।।
माली भव रूंख रोपिया, नानाविध वृक्ष,
मूल मन्त्र फल फूलना, लाग्या पाप अलक्ष । ते मुझ..।१८।।
अधोवाइया ने भवे, भरिया अधिका भार,
पोठी ऊँट कीड़ा पड्या, दया नाणी लगार। ते मुझ..।१९।।
छीपा ने भवे छेतऱ्या, कीधा रंगण पास,
अग्नि आरम्भ किया घणा, धातुवाद अभ्यास। ते मुझ..।२०।।
शूर पणे रण झुंझता, मार्या माणस वृन्द,
मदिरा मांस माखण भख्या, खाधा मूलने कंद । ते मुझ..।२१।।
खाण खणावी धातुनी, सर पाणी उलीच्या,
आरम्भ कीधा अति घणां, पोते पाप ने संच्या। ते मुझ..।२२।।
अङ्गारकर्म किया वली, वन में दव दीधा,
कसम खाधी वीतरागनी, कूड़ा दोषज दीधा । ते मुझ..।२३।।
बिल्ली भवे उन्दर गल्या, गिरोली हत्यारी,
मूढ़ गँवार तणे भवे मैं, जूं लीखां मारी । ते मुझ..।२४।।
भड़भुंजा तणे भवे, एकेन्द्रिय
जीव,जुवार चणा गहुं सेकिया, मारता रीव | ते मुझ..|२५||
खांडन पीसन गारना, आरम्भ अनेक,
रांधण इंधण अग्नि ना, कीधा पाप उद्वेग । ते मुझ..|२६||
विकथा चार कीधी वली, सेव्या पंच प्रमाद,
इष्ट वियोग पड़ाविया, रोवन विसंवाद |ते मुझ.. |२७||
साधू अने श्रावक तणा, व्रत लेई ने भांग्या,
मूल अने उत्तर तणा, मुझ दूषण लाग्या । ते मुझ..|२८||
साँप बिच्छू सिंह चीतरा, शकरा ने समली,
हिंसक जीव तणे भवे, हिंसा कीधी सबली । ते मुझ..।२९।।
सुवावड़ी दूषण घणा, वली गर्भ गलाव्या,
जीवाणी ढोली घणी, शील व्रत भंजाव्या । ते मुझ..|३०||
भव अनन्त भमतां थकां, कीधा देह सम्बन्ध,
त्रिविध-त्रिविध करि वोसिरूं, तिणसुं प्रतिबन्ध |ते मुझ..।३१।।
भव अनन्त भमतां थकां, कीधा परिग्रह सम्बन्ध,
त्रिविध-त्रिविध करि वोसिरुं, तिणसुं प्रतिबंध | ते मुझ.. |३२||
भव अनन्त भमतां थकां, कीधा कुटुम्ब सम्बन्ध,
त्रिविध-त्रिविध करि वोसिरूं, तिणसुं प्रतिबंध | ते मुझ.. | ३३||
इण परे इह भव पर भवे, कीधा पाप अखत्र,
त्रिविध-त्रिविध करि वोसिरु, करूं जन्म पवित्र | ते मुझ.. | ३४।।
इण विध यह आराधना, भवि करशे जेह,
समय सुन्दर कहे पापथी, वली छूटशे तेह । ते मुझ..|३५||
ते मुझ मिच्छा मि दुक्कड
पढ़िये - आलोचना पाठ
" जय जिनेन्द्र "
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