क्षमापना सूत्र
( मूल पाठ )
खामेमि सव्वे जीवे,
सव्वे जीवा खमंतु मे ।
मित्ती मे सच्च-भूएसु,
वरं मज्झं न केणइ ||
एवमहं आलोइअ,
निंदिय गरिहिअ दुगुछिउं सम्मं
तिविहेणं पडिक्कतो;
वन्दामि जिन-चउव्वीस |
अर्थ : मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ, और ये सब जीव भी मुझे क्षमा करें । मेरी सब जीवों के साथ मित्रता है, किसी के साथ मेरा बैर-विरोध नहीं है ।
इस प्रकार मैं सम्यक् आलोचना, निन्दा गर्हा और जुगुप्सा के द्वारा तीन योग से -मन से, वचन से एवं काय से - प्रतिक्रमण करके, पापों से निवृत्त हो कर, चौबीस तीर्थङ्करों को वन्दन करता हूँ ।
समुच्चय जीवों से क्षमापना
दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण वनस्पतिकाय |
दो लाख द्वीन्द्रिय, दो लाख त्रीन्द्रिय, दो लाख चतुरिन्द्रिय |
चार लाख देवता, चार लाख नारक, चार लाख तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय और चौदह लाख मनुष्य ।
इस प्रकार चार गति, चौरासी लाख जीवयोनि के किसी भी जीव को हना हो, हनाया हो हनते को भला जाना हो, तो १८, २४,१२० बार तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
सब जीवों से मन, वचन और काय से क्षमा याचना करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करें ।
पढिये - आलोचना पाठ
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