नवकार महामंत्र चालीसा
मंगलाचरण
दोहा
चौदह पूर्वो का जिसे माना जाता सार ।
परम प्रतापी पूर्णतः, महामंत्र नवकार ।।
महामंत्र नवकार का, घरो भाव से ध्यान ।
ऋद्धि सिद्धि हो लाभ शुभ, शांति प्रेम सम्मान ।।
चौपाई
अरिहंताणं धर्म आदिकर ।
परम वंद्य पावन अभ्यंकर (1)
चौतीस अतिशय से जिन राजित ।
सुर-सुरपति नर-नरपति वन्दित (2)
एक सहस अठ लक्षण सोहे।
द्वादश गुण संयुत मन मोहे (3)
अष्टादश दूषण से विरहित ।
गुण पैंतीसे त्रिभुवन गुंजित (4)
सिद्धाणं शिव सौरव्य प्रदायक ।
अध्यात्मिक उत्कर्ष सहायक (5)
अष्ट कर्म से मुक्त सिद्ध जय
अष्ट गुणों से युक्त सिद्ध जय (6)
सुमिरो सिद्धाणं सुख कंदा ।
पग-पग सिद्धि, सुख आनंदा (7)
आयरियाणं संघ सहारे ।
शासन के रक्षक उजियारे (8)
गुण छत्तीत सूरि सुखकारी ।
वन्दनीय श्रद्धा अधिकारी (9)
उवज्झायाणं ज्ञान प्रदाता ।
भव्य जनों के भाग्य विधाता (10)
गुण पच्चीस सुपाठक हित कर
स्वमत परमत ज्ञाता श्रुतघर (11)
सूत्र अर्थ खुद पढ़े पढाए ।
मिथ्यात्व का तिमिर नशाए (12)
सव्व साहूणं पद को वन्दन ।
जय हो जय हो संयम स्पंदन (13)
गुण सत्ताईस धारण करते ।
समत्व के भावों को वरते (14)
पंच महाव्रत धारक मुनिजन ।
दूषण दोष निवारक मुनिजन (15)
छ: काया रक्षक कहलाते ।
परिषहं जयी न दैन्य दिखाते (16)
पंचाचार में मन को ढाले
बयालिस दोषों को टाले (17)
पंचेन्द्रिय मन वश में रखते।
शम दम संयम का रस चखते (18)
ये पांचो पद है सुखदानी ।
सर्व रिद्धि प्रदाता दानी (19)
महामंत्र प्राणों से प्यारा ।
जिसने भी श्रद्धा से धारा (20)
उसके सारे कष्ट टले हैं।
उसके सारे स्वप्न फले हैं (21)
सर्वमंगलों में है यह मंगल।
हर बाघा का इसमें है फल (22)
श्रद्धा करो, जपो अजमाओं।
संशय मन का दूर भगाओं ( 23 )
इस दुनिया में मंत्र कई हैं।
किन्तु इस सम मंत्र नहीं है (24)
अत्युक्ति की बात न मानों ।
नियमित जप करके पहिचानों (25)
स्वतः प्रतीति हो जायेगी।
सुख की बगिया खिल जायेगी (26)
महाप्रभावी रक्षक पूरा ।
कोई कार्य न रहे अधूरा ( 27 )
नाग बने फूलों की माला ।
अग्नि हो गई शीतल ज्वाला (28)
महामंत्र का पावन समिरन ।
शूली का बन गया सिंहासन (29)
कल्प वृक्ष सम है सुखदाई ।
इसको कभी न भूलों भाई (30)
दुर्गति द्वार बन्द हो जाये ।
नव लाख जाप यदि हो जाए (31)
महामंत्र की फेरो माला ।
मिटे मानसिक चिन्ता ज्वाला (32)
त्रिकाल जप जहां पर चलता है।
कैसा भी दुःख हो टलता है (33)
मैंने जब से होश संभाला।
महामंत्र में मन को ढाला (34)
अन्तर बाह्य शान्ति मिली है।
अविचल संयम ज्योति खिली है (35)
त्रय ताप नहीं कभी सताते ।
सारे मन वांछित फल पा जाते (36)
कितनी इसकी महिमा माऊँ ।
एक जिव्हा पर पार नहीं पाऊँ (37)
प्रतिदिन इसकी माला करिये।
दुस्तर भवसागर को तारिये (38)
माला यदि नहीं होने पाए।
तथापि थोड़ा ध्यान लगाए (39)
मन में नव उल्लास भरेगा।
चहुँदिश मंगलाचार करेगा (40)
दोहा
रतन मुनि ने लिख दिया, चालीसा अभिराम ।
मुनि सतीश की प्रेरणा, पाकर के अविराम ।।
वार एक सौ आठ यदि, इसका पावन पाठ ।
किसी व्यक्ति ने कर लिया, सुख सम्पति का ठाठ ।।
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