तीर्थंकर कुंथुनाथ भगवान की आरती
प्रभु कुंथुनाथ जी जैन धर्म के 17वें तीर्थंकर है । प्रभु कुंथुनाथ जी का जन्म वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को हस्तिनापुर में हुआ था । इनके पिता का नाम शूरसेन तथा माता का नाम श्री कांता था । प्रभु की देह का रंग स्वर्ण के समान था , प्रभु कुंथुनाथ जी का प्रतीक चिह्न बकरा था ।
श्री कुंथुनाथ भगवान की आरती
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं,
सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं,
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं॥टेक.॥
जब गर्भ में प्रभु तुम आए-हां आए,
पितु सूरसेन श्रीकांता माँ हरषाए।
सुर वन्दन करने आए-हां आए,
श्रावण वदि दशमी गर्भकल्याण मनाएं।
हस्तिनापुरी की उस पावन,
धरती को नमते हैं, आरति करके ……………….॥१॥
वैशाख सुदी एकम में-एकम में,
जन्मे जब सुरगृह में बाजे बजते थे।
सुरशैल शिखर ले जाकर-ले जाकर,
सब इन्द्र सपरिकर करें न्हवन जिनशिशु पर।
जन्मकल्याणक से पावन, उस गिरि को जजते हैं,
आरति करके ……………….॥२॥
फिर बारह भावना भाई-हां भाई,|
वैशाख सुदी एकम दीक्षा तिथि आई।
लौकान्तिक सुरगण आए-हां आए,
वैराग्य प्रशंसा द्वारा प्रभु गुण गाएं।
उन मनपर्ययज्ञानी मुनि को, शत-शत नमते हैं,
आरति करके ……………….॥३॥
केवलरवि था प्रगटा-हां प्रगटा,
प्रभु समवसरण रच गया अलौकिक जो था।
दिव्यध्वनि पान करे जो-हां करे जो,
भववारिधि से तिर निज कल्याण करे वो।
चार कल्याणक भूमि हस्तिनापुर को नमते हैं,
आरति करके ……………….॥४॥
वैशाख सुदी एकम तिथि- हां एकम तिथि,
मुक्तिश्री नामा इक प्रियतमा वरी थी।
सम्मेदशिखर गिरि पावन-हां पावन,
प्रभुवर ने पाया मोक्षधाम मनभावन॥
उसी धाम की चाह चंदनामति,
हम करते हैं। आरति करके ……………….॥५॥
" जय जिनेन्द्र "
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।