शन्तिपाठ - जैन धर्म
शांती पाठ जैन धर्म में 16 वें तीर्थंकर श्री शांतीनाथ जी का नाम लेकर किया जाता है । प्रभु शांतीनाथ जी शांती के दाता है , इस पाठ का नियमपूर्वक जाप करने से समस्त प्रकार की विघ्न बाधा दूर हो जाती है । इस पाठ को प्रतिदिन 21 बार पढ़ना चाहिए ।
( यहां सिर्फ समान्य जानकारी और पाठ दिया जा रहा है , शांती पाठ कैसे पढना है , इसके क्या नियम है आप किसी भी जैन मुनि/ साध्वीजी से पूछ सकते है )
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जब प्रभु शांतीनाथ जी माता के गर्भ में आये थे तभी उनके राज्य में फैली महामारी एकाएक रुक गई थी , चारो तरफ मचने वाला मौत का तांडव और रुद्धन की आवाज एकाएक शांत हो गई , प्रभु के अवतरित होते ही जहां मातम को सन्नाटे थे वहाँ खुशी की लहर दौड पडी । प्रभु शांतीनाथ जी की विस्तृत कथा शांतीकथा में वर्णित है । प्रभु शांतीनाथ का नाम हि महामंगलकारी है , उठते बैठते ॐ शांती के जाप से असीम शांती की अनुभूती होती है ।
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शान्ति पाठ में नवकार मंत्र को पढा जाता है ।
जहाँ १ है, वहाँ नमो अरिहंताणं पढ़ें।
जहाँ २ है, वहाँ नमो सिद्धाणं पढ़ें।
जहाँ ३ है, वहाँ नमो आयरियाणं पढ़ें ।
जहाँ ४ है, वहाँ नमो उवज्झायाणं पढ़ें।
जहाँ ५ है, वहाँ नमो लोए सव्व साहूणं पढ़ें ।
इस प्रकार से आपने शांती पाठ 21 बार नियमपूर्वक पूर्ण शुद्धता के साथ पढ़ना है ।
अगर कोई त्रुटी हो तो ' तस्स मिच्छामी दुक्कडम '.
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