यह भी देखें - जैन धर्म के पंच महाव्रत कौन से है ?
निर्वाण प्राप्त आत्मा की अवस्था ही सिद्ध अवस्था होती है , जिसका कभी भी जन्म व मरण नही होता वह भव बंधनो से मुक्त हो जाती है ।
आत्मा के कर्म क्षय के साधन संवर व निर्जरा होते है । इस प्रकार से जैन धर्म के 24 तीर्थंकर निर्वाण प्राप्त कर सिद्ध भगवान बन गये और वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में 20 विहरमान तीर्थंकर विचरण कर रहे है , जो वर्तमान समय में अरिहंत अवस्था में है ।
जैन धर्म का साहित्य प्राकृत भाषा में रचित है । जैसे - हिन्दु धर्म का अधिकांश भाग संस्कृत भाषा में रचित है । जो स्थान हिन्दु धर्म में संस्कृत का है वही स्थान जैन धर्म में प्राकृत भाषा का है । सिद्ध अर्हन्त वंदना का पाठ भी प्राकृत भाषा में हि है । इस पाठ को प्रतिदिन पढ़ने से समस्त अरिहंत और सिद्ध प्रभु की वंदना हो जाती है । प्रतिदिन सामायिक के दौरान सिद्ध-अर्हन्त-वन्दना का पाठ अवश्य करें ।
सिद्ध-अर्हन्त-वन्दना
चत्तारि अट्ठदस दोअ, वंदिया जिणवरा चउवीसं,
परमट्ठनिट्ठियट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ १ ॥
जे य अइया सिद्धा, जे य भविस्संतिऽणागए काले
सपइ अ वट्टमाणा, सब्वे तिविहेण वंदामि ॥ २ ॥
सिद्धाणं बुद्धाणं पारगयाणं परंपरगयाणं ।
लोगग्गमुवगयाणं नमो सया सबसिद्धाणं ॥ ३ ॥
जो देवाण वि देवो, जं देवा पंजली नमसंति ।
तं देवदेवमहिअं सिरसा वंदे महावीरं ॥ ४ ॥
इक्को वि नमुक्कारो जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स ।
संसारसायराओ तारेइ नरं वा नारी वा ॥ ५ ॥
पुक्खरवरदीवड्ढे धायइखंडे अ जंबूदीवे अ।
भरहेरवयविदेहे धम्माइयरे नमसामि ॥ ६ ॥
उजिंतसेलसिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिया जस्स ।
तं धम्मचक्कवट्टि अरिट्ठनेमि नमंसामि ॥ ७ ॥
जय वीयराय! जगगुरु! होउ ममं तुह पभावओ भयवं। भवनिवेओ मग्गाणुसारिआ इट्ठफलसिद्धी॥ ८ ॥
लोगविरुद्धच्चाओ गुरुजणपूआ परत्थकरणं ।
सुहगुरुजोगो तब्बयणसेवणा आभवमखंडा || ९ ||
तमतिमिरविद्धंसणस्स सुरगणनरिंदमहिअस्स ।
सीमाहरस्स वंदे पप्फोडिअ मोहजालस्स ।। १० ॥
सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ।
अत्यधम्मगई तच्चं अणुसर्टि सुणेह में ॥ ११॥
" जय जिनेन्द्र "
अगर कोई त्रुटी हो तो " तस्स मिच्छामी दुक्कडम "
जानिये - जैन धर्म में ' सिद्ध ' कौन होते है ?
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