श्री गौतमस्वामी जी स्तोत्र (जैन धर्म)

Abhishek Jain
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श्री गौतमस्वामी जी स्तोत्र (जैन धर्म)

श्री गौतम स्वामी जी (Gautam Swami) जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर प्रभु महावीर स्वामी जी (Mahaveer Swami) के प्रथम गणधर थे । भगवान महावीर के ज्ञान प्राप्ती के पश्चात प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य गौतम स्वामी ही बने थे । वह गौतम गौत्रिय ब्राह्मण थे , उन्हे " आत्मा के विषय में संदेह " था । प्रभु महावीर से उचित उत्तर पाते ही श्री गौतम स्वामी जी ने प्रभु महावीर स्वामी जी का शिष्यत्व स्वीकार किया ।



श्री गौतम स्वामी जी


जैन धर्म में गौतम स्वामी जी लब्धि के भण्डार माने जाते है ,प्रत्येक शुभ कार्य से पहले गौतम स्वामी जी का नाम लिया जाता है । गौतम नाम गणेश की परम्परां भी जैन धर्म मे विद्मान है , जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में प्रत्येक मंगल कार्य करने से पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है , उसी प्रकार से गौतम स्वामी जी का समरण भी किसी भी पूजा से पहले किया जाता है । गौतम स्वामी जी "नमो सिद्धांण" में नमस्कार किये जाते है ।



जिन गौतम गणधर का नाम ही इतना प्रभावशाली है जो सब विघ्न बाधाओ को दूर कर देता है , उन गणधर प्रभु का स्तोत्र कितना महान प्रभावशाली होगा । प्रभु श्री गौतमस्वामी स्तोत्र का पाठ पूर्णतः शुद्ध भाव से नियमपूर्वक करें ।


श्री गौतमस्वामी स्तोत्र

(आचार्य जिनप्रभ)

ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर,वीरस्याग्रिमसूनवे ।
समग्रलब्धिमाणिक्य - रोहणायेन्द्रभूतये ॥ १॥

पादाम्भोजं भगवतो गौतमस्य नमस्यताम् ।
वशीभवन्ति त्रैलोक्यसम्पदो विगतापदः ॥ २ ॥

तव सिद्धस्य बुद्धस्य पादाम्भोजरजःकणः।
पिपर्ति कल्पशाखीव कामितानि तनूमताम् ॥ ३ ॥

श्रीगौतमाक्षीणमहानसस्य तव कीर्तनात् ।
सुवर्णपुष्पां पृथिवीमुच्चिनोति नरश्चिरम् ॥ ४ ॥

अतिशेषतरां धाम्ना, भगवन्! भास्करी श्रियम्।
अतिसौम्यतया चान्द्रीमहो त भीमकान्तता ॥ ५ ।

विजित्य संसारमायाबीजं मोहमहीपतिंम् ।
नरः स्यान्मुक्तिराजश्रीनायकस्त्वत्प्रसादतः ॥ ६ ॥

द्वादशांगीविधौ वेधाः श्रीन्द्रादिसुरसेवितः ।
अगण्यपुण्यनैपुण्यं तेषां साक्षात् कृतोऽसि यैः ॥ ७

नमः स्वाहापतिज्योतिस्तिरस्कारितनुत्विषे ।
श्रीगौतमगुरो ! तुभ्यं वागीशाय महात्मने ॥ ८ ॥

इति श्री गौतम! स्तोत्र मंत्र ते स्मरतोऽन्वहम् ।
श्री जिनप्रभसूरेस्त्वं, भव सर्वार्थ सिद्धये ॥ ६ ॥

अगर कोई त्रुटी हो तो " तस्स मिच्छामी दुक्कडम ".

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