जानिये - जैन व्रत की सामान्य जानकारी
जैन धर्म में पौषध क्या होता है ?
जैन धर्म में पौषध उपवास का एक प्रकार होता है , पौषध व्रत दो तरह से किया जाता है , एक होता है दशमां पौषध व्रत जिसमें प्रासुक जल ग्रहण कर सकते और एक होता है ग्यारहवां पौषध व्रत जिसमे जल ग्रहण नही कर सकते ।
सरल शब्दो में कहूँ तो ग्वारहवाँ पौषध व्रत एक श्रावक के लिए एक दिन के साधूपने के बराबर है , एक जैन श्रावक एक दिन के लिए जैन साधू के समान जीवन बिताते है ।
ग्वारहवाँ पौषध व्रत में एक जैन श्रावक मुनिचर्या के हर नियम यथा अहिंसा , ब्रह्मचार्य , सत्य , अपरिग्रह , औचार्य आदि का पालन किया जाता है साथ हि ग्वारहवाँ पौषध व्रत में अन्न व जल में से कुछ भी ग्रहण नही किया जाता , किसी भी प्रकार की खाद्य साम्रगी उपयोग में नही लाई जाती और ग्वारहवाँ पौषध व्रत के दौरान भूमी पर ही श्यन किया जाता है । ज्यादातर ग्वारहवाँ पौषध व्रत जैन श्रावक / श्राविका के द्वारा संवत्सरी महापर्व के दौरान किया जाता है ।
यहाँ ग्वारहवाँ पौषध व्रत के पच्चक्खान सूत्र का पाठ और पौषध व्रत पारने का पाठ दिया जा रहा है -
पौषध व्रत लेने का पाठ
ग्वारहवाँ पौषध व्रत असणं पाणं खाइमं साइमं
चारों आहारों का पच्चक्खान । अबंभ सेवन का
पच्चक्खान । माला वण्णक विलेपन का पच्चक्खान । अमुक पणि सुवर्ण का पच्चक्खान ।
शस्त्र मूसलादिक सावज्ज जोग का पच्चक्खान ।
जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं न
करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा तस्स
भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं
वोसिरामि।
पौषध व्रत पारने का पाठ
ग्यारहवाँ पौषध व्रत-विषय पंच अइयारा
जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं
अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सिज्जासंथारए,
अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय सिज्जा संथारए,
अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण-भूमि,
अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय उच्चारपासवण-भूमि,
पोसहोववासस्स अणणुपालणाए तस्स मिच्छामि
दुक्कडं ।
अगर कोई त्रुटी हो तो " मिच्छामी दुक्कडम ".
यह भी देखें - जैन-व्रत ग्रहण करने और पारणे का सूत्र
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