पौषध व्रत का पच्चक्खान और पारने का पाठ (जैन व्रत)

Abhishek Jain
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जैन धर्म में व्रत के बहुत सारे प्रकार है , जैन धर्म के अनुयायी व्रत में बहुत विश्वास रखते है और उपवास कर्म निर्जरा का प्रमुख साधन है । उन सभी उपवास के प्रकारो में सबसे सर्वोच्च आराधना पौषध व्रत की होती है ।


पौषध व्रत

जैन धर्म में पौषध क्या होता है ?

जैन धर्म में पौषध उपवास का एक प्रकार होता है , पौषध व्रत दो तरह से किया जाता है , एक होता है दशमां पौषध व्रत जिसमें प्रासुक जल ग्रहण कर सकते और एक होता है ग्यारहवां पौषध व्रत जिसमे जल ग्रहण नही कर सकते ।

सरल शब्दो में कहूँ तो ग्वारहवाँ पौषध व्रत एक श्रावक के लिए एक दिन के साधूपने के बराबर है , एक जैन श्रावक एक दिन के लिए जैन साधू के समान जीवन बिताते है ।

ग्वारहवाँ पौषध व्रत में एक जैन श्रावक मुनिचर्या के हर नियम यथा अहिंसा , ब्रह्मचार्य , सत्य , अपरिग्रह , औचार्य आदि का पालन किया जाता है साथ हि ग्वारहवाँ पौषध व्रत में अन्न व जल में से कुछ भी ग्रहण नही किया जाता , किसी भी प्रकार की खाद्य साम्रगी उपयोग में नही लाई जाती और ग्वारहवाँ पौषध व्रत के दौरान भूमी पर ही श्यन किया जाता है । ज्यादातर ग्वारहवाँ पौषध व्रत जैन श्रावक / श्राविका के द्वारा संवत्सरी महापर्व के दौरान किया जाता है ।


यहाँ ग्वारहवाँ पौषध व्रत के पच्चक्खान सूत्र का पाठ और पौषध व्रत पारने का पाठ दिया जा रहा है -

पौषध व्रत लेने का पाठ

ग्वारहवाँ पौषध व्रत असणं पाणं खाइमं साइमं
चारों आहारों का पच्चक्खान । अबंभ सेवन का
पच्चक्खान । माला वण्णक विलेपन का पच्चक्खान । अमुक पणि सुवर्ण का पच्चक्खान ।
शस्त्र मूसलादिक सावज्ज जोग का पच्चक्खान ।
जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं न
करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा तस्स
भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं
वोसिरामि।

पौषध व्रत पारने का पाठ

ग्यारहवाँ पौषध व्रत-विषय पंच अइयारा
जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं
अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सिज्जासंथारए,
अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय सिज्जा संथारए,
अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण-भूमि,
अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय उच्चारपासवण-भूमि,
पोसहोववासस्स अणणुपालणाए तस्स मिच्छामि
दुक्कडं ।

अगर कोई त्रुटी हो तो " मिच्छामी दुक्कडम ".


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