Bhaktamar Stotra Shloka-9 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-9 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 9
सर्वभय निवारक
(In Sanskrit)
आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं,
त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हंति ।
दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभैव,
पद्माकरेषु जलजानि विकास-भांजि ॥9॥
(In English)
astam tava stavanamastasamasta - dosham
tvatsankathaapi jagatam duritani hanti |
dure sahastrakiranah kurute prabhaiva
padmakareshu jalajani vikashabhanji || 9||
Explanation (English)
The mere utterance of the great Lord's name with
devotion, destroys the sins of the living beings and
purifies them just like the brilliant sun, which is
millions of miles away; still, at the break of day, its
soft glow makes the drooping lotus buds bloom.
(हिन्दी में )
तुम गुन-महिमा-हत दु:ख-दोष, सो तो दूर रहो सुख-पोष |
पाप-विनाशक है तुम नाम, कमल-विकासी ज्यों रवि-धाम ||९||
(भक्तामर स्तोत्र के नौंवें श्लोक का अर्थ )
सम्पूर्ण दोषों से रहित आपका स्तवन तो दूर, आपकी पवित्र कथा भी प्राणियों के पापों का नाश कर देती है | जैसे, सूर्य तो दूर, उसकी प्रभा ही सरोवर में कमलों को विकसित कर देती है |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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