Bhaktamar Stotra Shloka-7 With Meaning

Abhishek Jain
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Bhaktamar Stotra Shloka-7 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-7 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-7

Bhaktamar Stotra Shloka - 7

सर्व विष व संकट निवारक

(In Sanskrit)

त्वत्संस्तवेन भव-संतति-सन्निबद्धं

पापं क्षणात्क्षय-मुपैति शरीर-भाजाम् ।

आक्रांत-लोक-मलिनील-मशेष-माशु,

सूर्यांशु-भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम्॥7॥

(In English)

tvatsanstavena bhavasantati - sannibaddham

papam kshanat kshayamupaiti sharira bhajam |

akranta - lokamalinilamasheshamashu

suryanshubhinnamiva sharvaramandhakaram || 7||

Explanation (English)

Just as the shining sun rays dispel the darkness spread 

across the universe, the sins accumulated by men through 

cycles of birth, are wiped out by the eulogies offered 

to you.

(हिन्दी में )

तुम जस जंपत जन छिन माँहिं, जनम-जनम के पाप नशाहिं |
ज्यों रवि उगे फटे ततकाल, अलिवत् नील निशा-तम-जाल ||७||

(भक्तामर स्तोत्र के सातवें श्लोक का अर्थ )

आपकी स्तुति से, प्राणियों के, अनेक जन्मों में बाँधे गये पाप कर्म क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं जैसे सम्पूर्ण लोक में व्याप्त रात्री का अंधकार सूर्य की किरणों से क्षणभर में छिन्न भिन्न हो जाता है |

" भगवान ऋषभदेव जी की जय "

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