Bhaktamar Stotra Shloka-5 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है ।
परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है ।
इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-5 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 5
नेत्ररोग निवारक
(In Sanskrit)
सोहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश,
कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृतः ।
प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं,
नाभ्येति किं निज-शिशोः परि-पालनार्थम् ॥5॥
(In English)
soaham tathapi tava bhakti vashanmunisha
kartum stavam vigatashaktirapi pravrittah |
prityaaatmaviryamavicharya mrigo mrigendram
nabhyeti kim nijashishoh paripalanartham || 5 ||
(In Sanskrit)
सोहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश,
कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृतः ।
प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं,
नाभ्येति किं निज-शिशोः परि-पालनार्थम् ॥5॥
(In English)
soaham tathapi tava bhakti vashanmunisha
kartum stavam vigatashaktirapi pravrittah |
prityaaatmaviryamavicharya mrigo mrigendram
nabhyeti kim nijashishoh paripalanartham || 5 ||
Explanation (English)
innumberable virtues. Still, urged by my devotion for you, I intend eulogise you. It is well known that to protect her fawn, even a deer puts his feet down and faces a lion, forgetting its own frailness. (Similarly, devotion is forcing me to eulogise you without assessing my own capacity).
innumberable virtues. Still, urged by my devotion for you, I intend eulogise you. It is well known that to protect her fawn, even a deer puts his feet down and faces a lion, forgetting its own frailness. (Similarly, devotion is forcing me to eulogise you without assessing my own capacity).
O Great God ! I am incapable of narrating your
(हिन्दी में )
सो मैं शक्ति-हीन थुति करूँ, भक्ति-भाव-वश कछु नहिं डरूँ |
ज्यों मृगि निज-सुत पालन हेत, मृगपति सन्मुख जाय अचेत |५||
(भक्तामर स्तोत्र के पांचवें श्लोक का अर्थ )
हरिणि, अपनी शक्ति का विचार न कर, प्रीतिवश अपने शिशु की रक्षा के लिये, क्या सिंह के सामने नहीं जाती ?
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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