Bhaktamar Stotra Shloka-44 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-44 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 44
भयानक-जल-विपत्ति नाशक
(In Sanskrit)
अम्भो-निधौ क्षुभित-भीषण-नक्र-चक्र-
पाठीन-पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ ।
रंगत्तरंग-शिखर-स्थित-यान-पात्रास्-
त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद्-व्रजंति ॥44॥
(In English)
ambhaunidhau kshubhitabhishananakrachakra-
pathina pithabhayadolbanavadavagnau
rangattaranga - shikharasthita - yanapatras -
trasam vihaya bhavatahsmaranad vrajanti || 44 ||
Explanation (English)
O Jina ! A vessel caught in giant waves and surrounded by alligators, giant oceanic creatures, and dangerous fire, the devotee by chanting your name surmount such terrors and crosses the ocean. (Your devotees are not afraid of water.)
(हिन्दी में )
नक्र चक्र मगरादि मच्छ-करि भय उपजावे |
जा में बड़वा अग्नि दाह तें नीर जलावे ||
पार न पावे जास थाह नहिं लहिये जाकी |
गरजे अतिगंभीर लहर की गिनति न ताकी ||
सुख सों तिरें समुद्र को, जे तुम गुन सुमिराहिं |
लोल-कलोलन के शिखर, पार यान ले जाहिं ||४४||
(भक्तामर स्तोत्र के 44 वें श्लोक का अर्थ )
क्षोभ को प्राप्त भयंकर मगरमच्छों के समूह और मछलियों के द्वारा भयभीत करने वाले दावानल से युक्त समुद्र में विकराल लहरों के शिखर पर स्थित है जहाज जिनका, ऐसे मनुष्य, आपके स्मरण मात्र से भय छोड़कर पार हो जाते हैं|
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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