Bhaktamar Stotra Shloka-40 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-40 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 40
अग्नि भय निवारक
(In Sanskrit)
कल्पांत-काल-पवनोद्धत-वह्नि-कल्पं,
दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्स्फुलिंगम् ।
विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुख-मापतंतं,
त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्य-शेषम् ॥40॥
(In English)
kalpantakala - pavanoddhata - vahnikalpam,
davanalam jvalitamujjavalamutsphulingam |
vishvam jighatsumiva sammukhamapatantam,
tvannamakirtanajalam shamayatyashesham || 40 ||
Explanation (English)
O Lord! Even the all forest inferno, as if kindled by
the judgement day storm and having resplendent sparking
flames,is extinguished in no time by the satiate stream
of your name. (Your devotee is not afraid of fire.)
(हिन्दी में )
प्रलय-पवनकरि उठी आग जो तास पटंतर |
वमे फुलिंग शिखा उतंग पर जले निरंतर ||
जगत् समस्त निगल्ल भस्म कर देगी मानो |
तड़-तड़ाट दव-अनल जोर चहुँ-दिशा उठानो ||
सो इक छिन में उपशमे, नाम-नीर तुम लेत |
होय सरोवर परिनमे, विकसित-कमल समेत ||४०||
(भक्तामर स्तोत्र के 40 वें श्लोक का अर्थ )
आपके नाम यशोगानरुपी जल, प्रलयकाल की वायु से उद्धत, प्रचण्ड अग्नि के समान प्रज्वलित, उज्ज्वल चिनगारियों से युक्त, संसार को भक्षण करने की इच्छा रखने वाले की तरह सामने आती हुई वन की अग्नि को पूर्ण रुप से बुझा देता है |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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