Bhaktamar Stotra Shloka-37 With Meaning

Abhishek Jain
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 Bhaktamar Stotra Shloka-37 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-37 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-37

Bhaktamar Stotra Shloka - 37

दुर्जन वशीकरण

(In Sanskrit)

इत्थं यथा तव विभूति-रभूज्जिनेन्द्र,

धर्मोप-देशन विधौ न तथा परस्य ।

यादृक् प्रभा देनकृतः प्रहतान्ध-कारा,

तादृक्कुतो ग्रह-गणस्य विकासिनोपि ॥37॥

(In English)

ttham yatha tava vibhutirabhujjinendra,

dharmopadeshanavidhau na tatha parasya |

yadrik prabha dinakritah prahatandhakara,

tadrik -kuto grahaganasya vikashinoapi | 37 ||

Explanation (English)

O great one ! The height of grandiloquence, clarity and erudition evident in your words is not seen anywhere else. Indeed,the darkness dispelling glare of the sun can never be seen in the stars and planets.

(हिन्दी में )

ऐसी महिमा तुम-विषै, और धरे नहिं कोय |

सूरज में जो जोत है, नहिं तारा-गण होय ||३७||

(भक्तामर स्तोत्र के 37 वें श्लोक का अर्थ )

हे जिनेन्द्र! इस प्रकार धर्मोपदेश के कार्य में जैसा आपका ऐश्वर्य था वैसा अन्य किसी का नही हुआ| अंधकार को नष्ट करने वाली जैसी प्रभा सूर्य की होती है वैसी अन्य प्रकाशमान भी ग्रहों की कैसे हो सकती है ?


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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