Bhaktamar Stotra Shloka-33 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-33 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
सर्व ज्वर नाशक
(In Sanskrit)
मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात
संतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा ।
गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता,
दिव्या दिवः पतति ते वयसां ततिर्वा ॥33॥
(In English)
mandara - sundaranameru - suparijata
santanakadikusumotkara-vrishtiruddha |
gandhodabindu - shubhamanda - marutprapata,
divya divah patati te vachasam tatirva || 33 ||
Explanation (English)
O Jina ! The divine sprinkle of the Mandar Parbat,
Sundar,Nameru,Parijata drift towards you with the mild
breeze. This alluring scene presents impression as if
the devout words spoken by you have changed into
flowers and are drifting toward the earthlings.
(हिन्दी में )
मंद पवन गंधोदक इष्ट, विविध कल्पतरु पुहुप सुवृष्ट |
देव करें विकसित दल सार, मानो द्विज-पंकति अवतार ||३३||
(भक्तामर स्तोत्र के 33 वें श्लोक का अर्थ )
सुगंधित जल बिन्दुओं और मन्द सुगन्धित वायु के साथ गिरने वाले श्रेष्ठ मनोहर मन्दार, सुन्दर, नमेरु, पारिजात, सन्तानक आदि कल्पवृक्षों के पुष्पों की वर्षा आपके वचनों की पंक्तियों की तरह आकाश से होती है|
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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