Bhaktamar Stotra Shloka-32 With Meaning

Abhishek Jain
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Bhaktamar Stotra Shloka-32 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-32 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-32

Bhaktamar Stotra Shloka - 32

संग्रहणी आदि उदर पीडा नाशक

(In Sanskrit)

गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्वभाग-

स्त्रैलोक्य-लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्षः ।

सद्धर्म-राज-जय-घोषण-घोषकः सन्,

खे दुन्दुभिर्-ध्वनति ते यशसः प्रवादि ॥32॥

(In English)

gambhirataravapurita - digvibhagas -

trailokyaloka - shubhasangama bhutidakshah |

saddharmarajajayaghoshana - ghoshakah san ,

khe dundubhirdhvanati te yashasah pravadi || 32 ||

Explanation (English)

The vibrant drum beats fill the space in all directions 

as if awarding your serene presence and calling all the 

beings of the universe to join the devout path shown by 

you. All space is resonating with this proclamation of 

the victory of the true religion.

(हिन्दी में )

दुंदुभि-शब्द गहर गंभीर, चहुँ दिशि होय तुम्हारे धीर |

त्रिभुवन-जन शिव-संगम करें, मानो जय-जय रव उच्चरें ||३२||

(भक्तामर स्तोत्र के 32 वें श्लोक का अर्थ )

गम्भीर और उच्च शब्द से दिशाओं को गुञ्जायमान करने वाला, तीन लोक के जीवों को शुभ विभूति प्राप्त कराने में समर्थ और समीचीन जैन धर्म के स्वामी की जय घोषणा करने वाला दुन्दुभि वाद्य आपके यश का गान करता हुआ आकाश में शब्द करता है|


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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