Bhaktamar Stotra Shloka-32 With Meaning
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 32
संग्रहणी आदि उदर पीडा नाशक
(In Sanskrit)
गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्वभाग-
स्त्रैलोक्य-लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्षः ।
सद्धर्म-राज-जय-घोषण-घोषकः सन्,
खे दुन्दुभिर्-ध्वनति ते यशसः प्रवादि ॥32॥
(In English)
gambhirataravapurita - digvibhagas -
trailokyaloka - shubhasangama bhutidakshah |
saddharmarajajayaghoshana - ghoshakah san ,
khe dundubhirdhvanati te yashasah pravadi || 32 ||
Explanation (English)
The vibrant drum beats fill the space in all directions
as if awarding your serene presence and calling all the
beings of the universe to join the devout path shown by
you. All space is resonating with this proclamation of
the victory of the true religion.
(हिन्दी में )
दुंदुभि-शब्द गहर गंभीर, चहुँ दिशि होय तुम्हारे धीर |
त्रिभुवन-जन शिव-संगम करें, मानो जय-जय रव उच्चरें ||३२||
(भक्तामर स्तोत्र के 32 वें श्लोक का अर्थ )
गम्भीर और उच्च शब्द से दिशाओं को गुञ्जायमान करने वाला, तीन लोक के जीवों को शुभ विभूति प्राप्त कराने में समर्थ और समीचीन जैन धर्म के स्वामी की जय घोषणा करने वाला दुन्दुभि वाद्य आपके यश का गान करता हुआ आकाश में शब्द करता है|
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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