Bhaktamar Stotra Shloka-31 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-31 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
राज्य सम्मान दायक व चर्म रोग नाशक
(In Sanskrit)
छत्र-त्रयं तव विभाति शशांक-कांत-
मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम् ।
मुक्ता-फल-प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभं,
प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥31॥
(In English)
chhatratrayam tava vibhati shashankakanta-
muchchaih sthitam sthagita bhanukara - pratapam |
muktaphala - prakarajala - vivriddhashobham,
prakhyapayattrijagatah parameshvaratvam || 31 ||
Explanation (English)
O The Greatest One ! A three tier canopy adorns the
space over your head. It has the soft white radiance of
the moon and is decorated with jewels. This canopy has
filtered the scorching sun rays. Indeed, this canopy
symbolizes your dominance over the three worlds.
(हिन्दी में )
ऊँचे रहें सूर-दुति लोप, तीन छत्र तुम दिपें अगोप |
तीन लोक की प्रभुता कहें, मोती झालरसों छवि लहें ||३१||
(भक्तामर स्तोत्र के 31 वें श्लोक का अर्थ )
चन्द्रमा के समान सुन्दर, सूर्य की किरणों के सन्ताप को रोकने वाले, तथा मोतियों के समूहों से बढ़ती हुई शोभा को धारण करने वाले, आपके ऊपर स्थित तीन छत्र, मानो आपके तीन लोक के स्वामित्व को प्रकट करते हुए शोभित हो रहे हैं|
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
इन्हें भी देंखे -
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।