Bhaktamar Stotra Shloka-3 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है ।
परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है ।
इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-3 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 3
सर्वसिद्धिदायक
(In Sanskrit)
बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ,
स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् ।
बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब-
मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥
(In English)
buddhya vinaapi vibudharchita padapitha
stotum samudyata matirvigatatrapoaham |
balam vihaya jalasansthitamindu bimba -
manyah ka ichchhati janah sahasa grahitum || 3 ||
Explanation (English)
Shameless I am, O God, as a foolish child takes up an
inconceivable task of grabbing the disc of the moon
reflected in water, out of impertinence alone, I am
trying to eulogize a great soul like you.
(हिन्दी में )
विबुध-वंद्य-पद मैं मति-हीन, हो निलज्ज थुति मनसा कीन |
जल-प्रतिबिंब बुद्ध को गहे, शशिमंडल बालक ही चहे ||३||
(भक्तामर स्तोत्र के तृतीय श्लोक का अर्थ )
देवों के द्वारा पूजित हैं सिंहासन जिनका, ऐसे हे जिनेन्द्र मैं बुद्धि रहित होते हुए भी निर्लज्ज होकर स्तुति करने के लिये तत्पर हुआ हूँ क्योंकि जल में स्थित चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को बालक को छोड़कर दूसरा कौन मनुष्य सहसा पकड़ने की इच्छा करेगा? अर्थात् कोई नहीं |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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