Bhaktamar Stotra Shloka-21 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-21 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
सर्व वशीकरण्
(In Sanskrit)
मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा,
दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति ।
किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः,
कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेपि ॥21॥
(In English)
manye varam hari-haradaya eva drishta
drishteshu yeshu hridayam tvayi toshameti |
kim vikshitena bhavata bhuvi yena nanyah
kashchinmano harati natha! bhavantareapi || 21 ||
Explanation (English)
O Ultimate Lord ! It is good that I have seen other
deities before seeing you.The dissatisfaction even after
seeing them has been removed by the glance of your
detached and serene expression. That I have seen the
supreme I can not be satisfied with anything less.
(हिन्दी में )
सराग देव देख मैं भला विशेष मानिया |
स्वरूप जाहि देख वीतराग तू पिछानिया ||
कछू न तोहि देखके जहाँ तुही विशेखिया |
मनोग चित्त-चोर ओर भूल हू न पेखिया ||२१||
(भक्तामर स्तोत्र के 21 वें श्लोक का अर्थ )
हे स्वामिन्| देखे गये विष्णु महादेव ही मैं उत्तम मानता हूँ, जिन्हें देख लेने पर मन आपमें सन्तोष को प्राप्त करता है| किन्तु आपको देखने से क्या लाभ? जिससे कि पृथ्वी पर कोई दूसरा देव जन्मान्तर में भी चित्त को नहीं हर पाता |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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