Bhaktamar Stotra Shloka-20 With Meaning

Abhishek Jain
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 Bhaktamar Stotra Shloka-20 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-20 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-20

Bhaktamar Stotra Shloka - 20

संतान-लक्ष्मी-सौभाग्य-विजय बुद्धिदायक

(In Sanskrit)

ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं

नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु ।

तेजःस्फुरन्मणिषु याति यथा महत्वं,

नैवं तु काच-शकले किरणा-कुलेपि ॥20॥

(In English)

gyanam yatha tvayi vibhati kritavakasham

naivam tatha hariharadishu nayakeshu

tejah sphuranmanishu yati yatha mahatvam

naivam tu kacha - shakale kiranakuleapi || 20 ||

Explanation (English)

O Supreme God! The infinite and eternal knowledge that you have, is not possessed by any other deity in this world. Indeed,the splendour and shine of priceless jewels can not be seen in the glass pieces shining in the light.

(हिन्दी में )

जो सुबोध सोहे तुम माँहिं, हरि हर आदिक में सो नाहिं |

जो द्युति महा-रतन में होय, कांच-खंड पावे नहिं सोय ||२०||

(भक्तामर स्तोत्र के 20 वें श्लोक का अर्थ )

अवकाश को प्राप्त ज्ञान जिस प्रकार आप में शोभित होता है वैसा विष्णु महेश आदि देवों में नहीं | कान्तिमान मणियों में, तेज जैसे महत्व को प्राप्त होता है वैसे किरणों से व्याप्त भी काँच के टुकड़े में नहीं होता |


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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