Bhaktamar Stotra Shloka-17 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-17 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
सर्व उदर पीडा नाशक
(In Sanskrit)
नास्तं कदाचिदुपयासि न राहु-गम्यः,
स्पष्टी-करोषि सहसा युगपज्जगंति ।
नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महा-प्रभावः,
सूर्यातिशायि-महिमासि मुनीन्द्र लोके ॥17॥
(In English)
nastam kadachidupayasi na rahugamyah
spashtikaroshi sahasa yugapajjaganti |
nambhodharodara - niruddhamahaprabhavah
suryatishayimahimasi munindra! loke || 17 ||
Explanation (English)
O Great one ! Your glory is greater than that of the
sun. The sun rises every day but sets as well. The sun
suffers eclipse, is obstructed by the clouds, but you
are no such sun. Your infinite virtues and
passionlessness cannot be eclipsed. The sun slowly
shines over different parts of the world, but the glory
of your omniscience reaches every part of the world, all
at once.
(हिन्दी में )
छिपहु न लुपहु राहु की छाहिं, जग-परकाशक हो छिन-माहिं |
घन-अनवर्त दाह विनिवार, रवि तें अधिक धरो गुणसार ||१७||
(भक्तामर स्तोत्र के 17 वें श्लोक का अर्थ )
हे मुनीन्द्र! आप न तो कभी अस्त होते हैं न ही राहु के द्वारा ग्रसे जाते हैं और न आपका महान तेज मेघ से तिरोहित होता है आप एक साथ तीनों लोकों को शीघ्र ही प्रकाशित कर देते हैं अतः आप सूर्य से भी अधिक महिमावन्त हैं ।
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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