Bhaktamar Stotra Shloka-15 With Meaning

Abhishek Jain
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 Bhaktamar Stotra Shloka-15 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-15 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-15

Bhaktamar Stotra Shloka - 15

राजसम्मान-सौभाग्यवर्धक

(In Sanskrit)

चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभि-

नीतं मनागपि मनो न विकार-मार्गम् ।

कल्पांत-काल-मरुता चलिता चलेन

किं मन्दराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित् ॥15॥

(In English)

chitram kimatra yadi te tridashanganabhir -

nitam managapi mano na vikara - margam |

kalpantakalamaruta chalitachalena

kim mandaradrishikhiram chalitam kadachit || 15 ||

Explanation (English)

Celestial nymphs have tried their best to allure you 

through lewd gestures, but it is not surprising that 

your serenity has not been disturbed. Of course, is the 

great Mandara mountain shaken by the tremendous gale of 

the doomsday, that moves common hillocks?

(हिन्दी में )

जो सुर-तिय विभ्रम आरम्भ, मन न डिग्यो तुम तोउ न अचंभ |

अचल चलावे प्रलय समीर, मेरु-शिखर डगमगें न धीर ||१५||

(भक्तामर स्तोत्र के 15 वें श्लोक का अर्थ )

यदि आपका मन देवागंनाओं के द्वारा किंचित् भी विकृती को प्राप्त नहीं कराया जा सका, तो इस विषय में आश्चर्य ही क्या है? पर्वतों को हिला देने वाली प्रलयकाल की पवन के द्वारा क्या कभी मेरु का शिखर हिल सका है? नहीं |


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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