Bhaktamar Stotra Shloka-13 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-13 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
चोर भय व अन्यभय निवारक
(In Sanskrit)
वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरगनेत्र-हारि,
निःशेष-निर्जित-जगत्त्रित-योपमानम् ।
बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य,
यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ॥13॥
(In English)
vaktram kva te suranaroraganetrahari
nihshesha - nirjita-jagat tritayopamanam |
bimbam kalanka-malinam kva nishakarasya
yad vasare bhavati pandupalashakalpam || 13 ||
Explanation (English)
Comparison of your lustrous face with the moon does not
appear befitting. How can your scintillating face, that
pleases the eyes of gods, angels, humans and other
beings alike, be compared with the spotted moon that is
dull and pale, during the day, as the Palasa leaves.
Indeed, your face has surpassed all the standards of
comparison.
(हिन्दी में )
कहँ तुम मुख अनुपम अविकार, सुर-नर-नाग-नयन-मन हार |
कहाँ चंद्र-मंडल सकलंक, दिन में ढाक-पत्र सम रंक ||१३||
(भक्तामर स्तोत्र के तेरहवें श्लोक का अर्थ )
हे प्रभो! सम्पूर्ण रुप से तीनों जगत् की उपमाओं का विजेता, देव मनुष्य तथा धरणेन्द्र के नेत्रों को हरने वाला कहां आपका मुख? और कलंक से मलिन, चन्द्रमा का वह मण्डल कहां? जो दिन में पलाश (ढाक) के पत्ते के समान फीका पड़ जाता |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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