Bhaktamar Stotra Shloka-11 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-11 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
इच्छित-आकर्षक
(In Sanskrit)
दृष्ट्वा भवंत-मनिमेष-विलोकनीयं,
नान्यत्र तोष-मुपयाति जनस्य चक्षुः ।
पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धो,
क्षारं जलं जलनिधे रसितुँ क इच्छेत् ॥11॥
(In English)
drishtava bhavantamanimesha-vilokaniyam
nanyatra toshamupayati janasya chakshuh |
pitva payah shashikaradyuti dugdha sindhoh
ksharam jalam jalanidherasitum ka ichchhet || 11 ||
Explanation (English)
O Great one ! Your divine grandeur is enchanting. Having
once looked at your divine form, nothing else enthrals
the eye. Obviously, who would like to drink the salty
sea water after drinking fresh water of the divine
milk-ocean, pure and comforting like the moonlight?
(हिन्दी में )
इकटक जन तुमको अवलोय, अवर विषै रति करे न सोय |
को करि क्षार-जलधि जल पान, क्षीर नीर पीवे मतिमान ||११||
(भक्तामर स्तोत्र के ग्यारहवें श्लोक का अर्थ )
हे अभिमेष दर्शनीय प्रभो ! आपके दर्शन के पश्चात् मनुष्यों के नेत्र अन्यत्र सन्तोष को प्राप्त नहीं होते | चन्द्रकीर्ति के समान निर्मल क्षीरसमुद्र के जल को पीकर कौन पुरुष समुद्र के खारे पानी को पीना चाहेगा ? अर्थात् कोई नहीं |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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