Bhaktamar Stotra Shloka-25 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-25 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
नज़र (दृष्टि देष) नाशक
(In Sanskrit)
बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्,
त्त्वं शंकरोसि भुवन-त्रय-शंकरत्वात् ।
धातासि धीर! शिव-मार्ग-विधेर्-विधानात्,
व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोसि ॥25॥
(In English)
buddhastvameva vibudharchita buddhi bodhat ,
tvam shankaroasi bhuvanatraya shankaratvat |
dhataasi dhira ! shivamarga-vidhervidhanat ,
vyaktam tvameva bhagavan ! purushottamoasi || 25 ||
Explanation (English)
O Supreme God ! The wise have hailed your omniscience, so you are the Buddha. You are the ultimate patron of all the beings, so you are Shankar. You are the developer of the codes of conduct( faith,Right knowledge and Right conduct)leading to Nirvana, so you are Brahma. You are manifest in thoughts of all the devotees, so you are Vishnu. Hence you are the Supreme God.
(हिन्दी में )
तुही जिनेश! बुद्ध है सुबुद्धि के प्रमान तें |
तुही जिनेश! शंकरो जगत्त्रयी विधान तें ||
तुही विधात है सही सुमोख-पंथ धार तें |
नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थ के विचार तें ||२५||
(भक्तामर स्तोत्र के 25 वें श्लोक का अर्थ )
देव अथवा विद्वानों के द्वारा पूजित ज्ञान वाले होने से आप ही बुद्ध हैं| तीनों लोकों में शान्ति करने के कारण आप ही शंकर हैं| हे धीर! मोक्षमार्ग की विधि के करने वाले होने से आप ही ब्रह्मा हैं| और हे स्वामिन्! आप ही स्पष्ट रुप से मनुष्यों में उत्तम अथवा नारायण हैं |
" भगवान ऋषभदेवजी की जय "
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