Bhaktamar Stotra Shloka-2 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है ।
परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है ।
इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-2 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 2
शत्रु तथा शिरपीडा नाशक
(In Sanskrit)
यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा-
दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै ।
स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः,
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥
(In English)
yah sanstutah sakala-vangaya- tatva-bodha-
d -ud bhuta- buddhipatubhih suralokanathaih|
stotrairjagattritaya chitta-harairudaraih
stoshye kilahamapi tam prathamam jinendram ॥ 2॥
Explanation (English)
eulogized Bhagavan Adinath with Hymns bringing joy to
the audience of three realms (heaven, earth and hell). I
shall offer my obeisance in my endeavour to eulogize
that first Tirthankar.
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