Bhaktamar Stotra With Meaning (Sanskrit,Hindi and in English)

Abhishek Jain
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Bhaktamar Stotra With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी ।

भक्तामर स्तोत्र की रचना राजा भोज की धार नगरी में हुई थी । भक्तामर स्तोत्र में श्वेताम्बर मान्यतानुसार 48 श्लोक है , जैन धर्म की एक मान्यतानुसार भक्तामर स्तोत्र में 44 श्लोक है ।

मूलतः भक्तामर स्तोत्र आचार्य मानतुंग ने संस्कृत के बंसत तालिका छंद में लिखा था । यह स्तोत्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान को समर्पित है । इस स्तोत्र की मूल भाषा संस्कृत है ।

श्री भक्तामर स्तोत्र महान मंगलदायक , सर्वविघ्न विनाशक , पापनाशक तथा सर्व सुखदायी है । श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ प्रातः सुबह निश्चित ही करना चाहिए, प्रातः काल का समय भक्तामर स्तोत्र के लिए सबसे उत्तम होता है ,सूर्योदय इसके पाठ का सबसे सही समय है । 

अगर आप संस्कृत पढ़ सके तो सबसे अच्छा है , अगर संस्कृत नही पढ़ सकते तो यह English , हिन्दी का पाठ पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ अवश्य पढ़ना चाहिए ।

भक्तामर जी का एक - एक श्र्लोक अच्छे से समझ में आये इसलिए यहाँ English Explanation व हिन्दी अर्थ साथ मे दिया है । मेरी यह post English , Sanskrit व Hindi पाठको के लिए बहुत उपयोगी है

अगर मनुष्य जन्म लिया है तो प्रभु ऋषभदेव के नाम का गुणगान करना हमारे लिए परम सौभाग्य की बात है , इसलिए हम सभी को प्रातः काल में इस भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए ।


पढिये - Shri Vardhaman Bhaktamar Stotra (श्री वर्द्धमान भक्तामर स्तोत्रम् )


भक्तामर स्तोत्र संस्कृत हिन्दी और अंग्रेजी में अर्थ सहित

Bhaktamar Stotra Shloka - 1

सर्व विघ्न उपद्रवनाशक

(In Sanskrit)

भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-

मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् ।

सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा-

वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ॥1॥

(In English)

Bhaktamara-pranata-maulimani-prabhana –

mudyotakam dalita-papa-tamovitanam |

samyak pranamya jina padayugam yugada-

valambanam bhavajale patatam jananam ॥ 1॥

Explanation (English)

Having duly bowed down at the feet of Bhagwan Adinath, the first Tirthankar, the divine glow of his nails increases luster of jewels of their crowns. Mere touch of his feet frees the beings from sins. He who submits himself at these feet is saved from taking birth again and again. I offer my respectful salutations at the feet of Bhagavan Adinath, the propagator of religion at the beginning of this era.

(हिन्दी में )

सुर-नत-मुकुट रतन-छवि करें,अंतर पाप-तिमिर सब हरें ।

जिनपद वंदूं मन वच काय, भव-जल-पतित उधरन-सहाय ।।१।।

(भक्तामर स्तोत्र के प्रथम श्लोक का अर्थ )

झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा) 

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-1 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 2

शत्रु तथा शिरपीडा नाशक

(In Sanskrit)

यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा-

दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै ।

स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः,

स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥

(In English)

yah sanstutah sakala-vangaya- tatva-bodha-

d -ud bhuta- buddhipatubhih suralokanathaih|

stotrairjagattritaya chitta-harairudaraih

stoshye kilahamapi tam prathamam jinendram ॥ 2॥

Explanation (English)

The Lords of the Gods, with profound wisdom, have 
eulogized Bhagavan Adinath with Hymns bringing joy to 
the audience of three realms (heaven, earth and hell). I 
shall offer my obeisance in my endeavour to eulogize 
that first Tirthankar.

(हिन्दी में )

श्रुत-पारग इंद्रादिक देव, जाकी थुति कीनी कर सेव |
शब्द मनोहर अरथ विशाल, तिन प्रभु की वरनूं गुन-माल ||२||

(भक्तामर स्तोत्र के द्वितीय श्लोक का अर्थ )

सम्पूर्णश्रुतज्ञान से उत्पन्न हुई बुद्धि की कुशलता से इन्द्रों के द्वारा तीन लोक के मन को हरने वाले, गंभीर स्तोत्रों के द्वारा जिनकी स्तुति की गई है उन आदिनाथ जिनेन्द्र की निश्चय ही मैं (मानतुंग) भी स्तुति करुँगा |


Bhaktamar Stotra Shloka - 3

सर्वसिद्धिदायक

(In Sanskrit)

बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ,

स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् ।

बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब-

मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥

(In English)

buddhya vinaapi vibudharchita padapitha

stotum samudyata matirvigatatrapoaham |

balam vihaya jalasansthitamindu bimba -

manyah ka ichchhati janah sahasa grahitum || 3 ||

Explanation (English)

Shameless I am, O God, as a foolish child takes up an 

inconceivable task of grabbing the disc of the moon 

reflected in water, out of impertinence alone, I am 

trying to eulogize a great soul like you.

(हिन्दी में )

विबुध-वंद्य-पद मैं मति-हीन, हो निलज्ज थुति मनसा कीन |

जल-प्रतिबिंब बुद्ध को गहे, शशिमंडल बालक ही चहे ||३||

(भक्तामर स्तोत्र के तृतीय श्लोक का अर्थ )

देवों के द्वारा पूजित हैं सिंहासन जिनका, ऐसे हे जिनेन्द्र मैं बुद्धि रहित होते हुए भी निर्लज्ज होकर स्तुति करने के लिये तत्पर हुआ हूँ क्योंकि जल में स्थित चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को बालक को छोड़कर दूसरा कौन मनुष्य सहसा पकड़ने की इच्छा करेगा? अर्थात् कोई नहीं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-3 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 4

जलजंतु निरोधक

(In Sanskrit)

वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र! शशांक-कांतान्,

कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोपि बुद्धया ।

कल्पांत-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं,

को वा तरीतु-मलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥4॥

(In English)

vaktum gunan gunasamudra shashankkantan

kaste kshamah suragurupratimoapi buddhya |

kalpanta - kal - pavanoddhata - nakrachakram

ko va taritumalamambunidhim bhujabhyam || 4 ||

Explanation (English)

O Lord, you are the ocean of virtues. Can even 

Brihaspati, the teacher of gods, with the help of his 

infinite wisdom, narrate your virtues spotless as the 

moonbeams? (certainly not.) Is it possible for a man to 

swim across the ocean full of alligators, lashed by 

gales of deluge? (certainly not).

(हिन्दी में )

गुन-समुद्र तुम गुन अविकार, कहत न सुर-गुरु पावें पार |

प्रलय-पवन-उद्धत जल-जंतु, जलधि तिरे को भुज बलवंतु ||४||

(भक्तामर स्तोत्र के चतुर्थ श्लोक का अर्थ )

हे गुणों के भंडार! आपके चन्द्रमा के समान सुन्दर गुणों को कहने लिये ब्रहस्पति के सद्रश भी कौन पुरुष समर्थ है? अर्थात् कोई नहीं अथवा प्रलयकाल की वायु के द्वारा प्रचण्ड है मगरमच्छों का समूह जिसमें ऐसे समुद्र को भुजाओं के द्वारा तैरने के लिए कौन समर्थ है अर्थात् कोई नहीं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-4 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 5

नेत्ररोग निवारक

(In Sanskrit)

सोहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश,

कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृतः ।

प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं,

नाभ्येति किं निज-शिशोः परि-पालनार्थम् ॥5॥

(In English)

soaham tathapi tava bhakti vashanmunisha

kartum stavam vigatashaktirapi pravrittah |

prityaaatmaviryamavicharya mrigo mrigendram

nabhyeti kim nijashishoh paripalanartham || 5 ||

Explanation (English)

O Great God ! I am incapable of narrating your 

innumberable virtues. Still, urged by my devotion for 

you, I intend eulogise you. It is well known that to 

protect her fawn, even a deer puts his feet down and 

faces a lion, forgetting its own frailness. (Similarly, 

devotion is forcing me to eulogise you without assessing 

my own capacity).

(हिन्दी में )

सो मैं शक्ति-हीन थुति करूँ, भक्ति-भाव-वश कछु नहिं डरूँ |

ज्यों मृगि निज-सुत पालन हेत, मृगपति सन्मुख जाय अचेत |५||

(भक्तामर स्तोत्र के पांचवें श्लोक का अर्थ )

हे मुनीश! तथापि-शक्ति रहित होता हुआ भी, मैं- अल्पज्ञ, भक्तिवश, आपकी स्तुति करने को तैयार हुआ हूँ  | हरिणि, अपनी शक्ति का विचार न कर, प्रीतिवश अपने शिशु की रक्षा के लिये, क्या सिंह के सामने नहीं जाती? अर्थात जाती हैं |


Bhaktamar Stotra Shloka - 6

विद्या प्रदायक

(In Sanskrit)

अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम,

त्वद्भक्ति-रेव-मुखरी-कुरुते बलान्माम् ।

यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति,

तच्चाम्र-चारु-कालिका-निकरैक-हेतु ॥6॥

(In English)

alpashrutam shrutavatam parihasadham

tvad bhaktireva mukharikurute balanmam |

yatkokilah kila madhau madhuram virauti

tachcharuchuta - kalikanikaraikahetu || 6||

Explanation (English)

O Almighty! I am so unlettered that I am subject to 

ridicule by the wise. Yet, my devotion for you forces me 

to sing hymns in your praise, just as the cuckoo is 

compelled to produce its melodious coo when the mango 

trees blossom.

(हिन्दी में )

मैं शठ सुधी-हँसन को धाम, मुझ तव भक्ति बुलावे राम |

ज्यों पिक अंब-कली परभाव, मधु-ऋतु मधुर करे आराव ||६||

(भक्तामर स्तोत्र के छठे श्लोक का अर्थ )

विद्वानों की हँसी के पात्र, मुझ अल्पज्ञानी को आपकी भक्ति ही बोलने को विवश करती हैं | बसन्त ऋतु में कोयल जो मधुर शब्द करती है उसमें निश्चय से आम्र कलिका ही एक मात्र कारण हैं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-6 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 7

सर्व विष व संकट निवारक

(In Sanskrit)

त्वत्संस्तवेन भव-संतति-सन्निबद्धं

पापं क्षणात्क्षय-मुपैति शरीर-भाजाम् ।

आक्रांत-लोक-मलिनील-मशेष-माशु,

सूर्यांशु-भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम्॥7॥

(In English)

tvatsanstavena bhavasantati - sannibaddham

papam kshanat kshayamupaiti sharira bhajam |

akranta - lokamalinilamasheshamashu

suryanshubhinnamiva sharvaramandhakaram || 7||

Explanation (English)

Just as the shining sun rays dispel the darkness spread 

across the universe, the sins accumulated by men through 

cycles of birth, are wiped out by the eulogies offered 

to you.

(हिन्दी में )

तुम जस जंपत जन छिन माँहिं, जनम-जनम के पाप नशाहिं |
ज्यों रवि उगे फटे ततकाल, अलिवत् नील निशा-तम-जाल ||७||

(भक्तामर स्तोत्र के सातवें श्लोक का अर्थ )

आपकी स्तुति से, प्राणियों के, अनेक जन्मों में बाँधे गये पाप कर्म क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं जैसे सम्पूर्ण लोक में व्याप्त रात्री का अंधकार सूर्य की किरणों से क्षणभर में छिन्न भिन्न हो जाता है |


Bhaktamar Stotra Shloka - 8

सर्वारिष्ट निवारक

(In Sanskrit)

मत्वेति नाथ तव संस्तवनं मयेद-

मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् ।

चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु,

मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः ॥8॥

(In English)

matveti nath! tav sanstavanam mayeda -

marabhyate tanudhiyapi tava prabhavat |

cheto harishyati satam nalinidaleshu

muktaphala - dyutimupaiti nanudabinduh || 8 ||

Explanation (English)

I begin this eulogy with the belief that, though 

composed by an ignorant like me, it will certainly 

please noble people due to your magnanimity. Indeed, dew 

drops on lotus-petals lustre like pearls presenting a 

pleasant sight.

(हिन्दी में )

तव प्रभाव तें कहूँ विचार, होसी यह थुति जन-मन-हार |

ज्यों जल कमल-पत्र पे परे, मुक्ताफल की द्युति विस्तरे ||८||

(भक्तामर स्तोत्र के आठवें श्लोक का अर्थ )

हे स्वामिन्! ऐसा मानकर मुझ मन्दबुद्धि के द्वारा भी आपका यह स्तवन प्रारम्भ किया जाता है, जो आपके प्रभाव से सज्जनों के चित्त को हरेगा| निश्चय से पानी की बूँद कमलिनी के पत्तों पर मोती के समान शोभा को प्राप्त करती हैं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-8 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 9

सर्वभय निवारक

(In Sanskrit)

आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं,

त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हंति ।

दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभैव,

पद्माकरेषु जलजानि विकास-भांजि ॥9॥

(In English)

astam tava stavanamastasamasta - dosham

tvatsankathaapi jagatam duritani hanti |

dure sahastrakiranah kurute prabhaiva

padmakareshu jalajani vikashabhanji || 9||

Explanation (English)

The mere utterance of the great Lord's name with 

devotion, destroys the sins of the living beings and 

purifies them just like the brilliant sun, which is 

millions of miles away; still, at the break of day, its 

soft glow makes the drooping lotus buds bloom.

(हिन्दी में )

तुम गुन-महिमा-हत दु:ख-दोष, सो तो दूर रहो सुख-पोष |

पाप-विनाशक है तुम नाम, कमल-विकासी ज्यों रवि-धाम ||९||

(भक्तामर स्तोत्र के नौंवें श्लोक का अर्थ )

सम्पूर्ण दोषों से रहित आपका स्तवन तो दूर, आपकी पवित्र कथा भी प्राणियों के पापों का नाश कर देती है | जैसे, सूर्य तो दूर, उसकी प्रभा ही सरोवर में कमलों को विकसित कर देती है |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-9 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 10

कूकर विष निवारक

(In Sanskrit)

नात्यद्भुतं भुवन-भूषण-भूतनाथ,

भूतैर्गुणैर्भुवि भवंत-मभिष्टु-वंतः ।

तुल्या भवंति भवतो ननु तेन किं वा,

भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥10॥

(In English)

natyad -bhutam bhuvana-bhushana bhutanatha

bhutaira gunair -bhuvi bhavantamabhishtuvantah

tulya bhavanti bhavato nanu tena kim va

bhutyashritam ya iha natmasamam karoti || 10 ||

Explanation (English)

O Lord of beings ! O Ornament of the universe! It is no 

wonder that he who is engaged in praising your infinite 

virtues (imbibing the virtues in his conduct) attains 

your exhilarated position.It should not be surprising if 

a benevolent master makes his subjects his equals. In 

fact, what is the purpose of serving a master who does 

not allow his subjects to prosper to an elevated 

position like his ?

(हिन्दी में )

नहिं अचंभ जो होहिं तुरंत, तुमसे तुम-गुण वरणत संत |

जो अधीन को आप समान, करे न सो निंदित धनवान ||१०||

(भक्तामर स्तोत्र के दसवें श्लोक का अर्थ )

हे जगत् के भूषण! हे प्राणियों के नाथ! सत्यगुणों के द्वारा आपकी स्तुति करने वाले पुरुष पृथ्वी पर यदि आपके समान हो जाते हैं तो इसमें अधिक आश्चर्य नहीं है| क्योंकि उस स्वामी से क्या प्रयोजन, जो इस लोक में अपने अधीन पुरुष को सम्पत्ति के द्वारा अपने समान नहीं कर लेता |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-10 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 11

इच्छित-आकर्षक

(In Sanskrit)

दृष्ट्वा भवंत-मनिमेष-विलोकनीयं,

नान्यत्र तोष-मुपयाति जनस्य चक्षुः ।

पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धो,

क्षारं जलं जलनिधे रसितुँ क इच्छेत् ॥11॥

(In English)

drishtava bhavantamanimesha-vilokaniyam

nanyatra toshamupayati janasya chakshuh |

pitva payah shashikaradyuti dugdha sindhoh

ksharam jalam jalanidherasitum ka ichchhet || 11 ||

Explanation (English)

O Great one ! Your divine grandeur is enchanting. Having 

once looked at your divine form, nothing else enthrals 

the eye. Obviously, who would like to drink the salty 

sea water after drinking fresh water of the divine 

milk-ocean, pure and comforting like the moonlight?

(हिन्दी में )

इकटक जन तुमको अवलोय, अवर विषै रति करे न सोय |

को करि क्षार-जलधि जल पान, क्षीर नीर पीवे मतिमान ||११||

(भक्तामर स्तोत्र के ग्यारहवें श्लोक का अर्थ )

हे अभिमेष दर्शनीय प्रभो ! आपके दर्शन के पश्चात् मनुष्यों के नेत्र अन्यत्र सन्तोष को प्राप्त नहीं होते | चन्द्रकीर्ति के समान निर्मल क्षीरसमुद्र के जल को पीकर कौन पुरुष समुद्र के खारे पानी को पीना चाहेगा ? अर्थात् कोई नहीं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-11 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 12

हस्तिमद-निवारक

(In Sanskrit)

यैः शांत-राग-रुचिभिः परमाणु-भिस्त्वं,

निर्मापितस्त्रि-भुवनैक-ललाम-भूत ।

तावंत एव खलु तेप्यणवः पृथिव्यां,

यत्ते समान-मपरं न हि रूपमस्ति ॥12॥

(In English)

yaih shantaragaruchibhih paramanubhistavam

nirmapitastribhuvanaika lalama-bhuta|

tavanta eva khalu teapyanavah prithivyam

yatte samanamaparam na hi rupamasti || 12 ||

Explanation (English)

O Supreme Ornament of the three worlds! As many indeed 

were the atoms filled with lustre of non-attachment, 

became extinct after constituting your body, therefore I 

do not witness such out of the world magnificence other 

than yours.

(हिन्दी में )

प्रभु! तुम वीतराग गुण-लीन, जिन परमाणु देह तुम कीन |

हैं तितने ही ते परमाणु, या तें तुम सम रूप न आनु ||१२||

(भक्तामर स्तोत्र के बारहवें श्लोक का अर्थ )

हे त्रिभुवन के एकमात्र आभुषण जिनेन्द्रदेव! जिन रागरहित सुन्दर परमाणुओं के द्वारा आपकी रचना हुई वे परमाणु पृथ्वी पर निश्चय से उतने ही थे क्योंकि आपके समान दूसरा रूप नहीं है |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-12 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 13

चोर भय व अन्यभय निवारक

(In Sanskrit)

वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरगनेत्र-हारि,

निःशेष-निर्जित-जगत्त्रित-योपमानम् ।

बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य,

यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ॥13॥

(In English)

vaktram kva te suranaroraganetrahari

nihshesha - nirjita-jagat tritayopamanam |

bimbam kalanka-malinam kva nishakarasya

yad vasare bhavati pandupalashakalpam || 13 ||

Explanation (English)

Comparison of your lustrous face with the moon does not 

appear befitting. How can your scintillating face, that 

pleases the eyes of gods, angels, humans and other 

beings alike, be compared with the spotted moon that is 

dull and pale, during the day, as the Palasa leaves. 

Indeed, your face has surpassed all the standards of 

comparison.

(हिन्दी में )

कहँ तुम मुख अनुपम अविकार, सुर-नर-नाग-नयन-मन हार |

कहाँ चंद्र-मंडल सकलंक, दिन में ढाक-पत्र सम रंक ||१३||

(भक्तामर स्तोत्र के तेरहवें श्लोक का अर्थ )

हे प्रभो! सम्पूर्ण रुप से तीनों जगत् की उपमाओं का विजेता, देव मनुष्य तथा धरणेन्द्र के नेत्रों को हरने वाला कहां आपका मुख? और कलंक से मलिन, चन्द्रमा का वह मण्डल कहां? जो दिन में पलाश (ढाक) के पत्ते के समान फीका पड़ जाता |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-13 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 14

आधि-व्याधि-नाशक लक्ष्मी-प्रदायक

(In Sanskrit)

सम्पूर्ण-मण्डल-शशांक-कला कलाप-

शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंग्घयंति ।

ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वर-नाथमेकं,

कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम ॥14॥

(In English)

sampurnamannala - shashankakalakalap

shubhra gunastribhuvanam tava langhayanti |

ye sanshritas -trijagadishvara nathamekam

kastan -nivarayati sancharato yatheshtam || 14 ||

Explanation (English)

O Master of the three worlds! Your innumerable virtues 

are radiating throughout the universe-even beyond the 

three worlds, surpassing the glow of the full moon; the 

hymns in praise of your virtues can be heard everywhere 

throughout the universe. Indeed, who can contain the 

movement of devotees of the only supreme Godhead like 

you?

(हिन्दी में )

पूरन-चंद्र-ज्योति छविवंत, तुम गुन तीन जगत् लंघंत |

एक नाथ त्रिभुवन-आधार, तिन विचरत को करे निवार ||१४||

(भक्तामर स्तोत्र के चौदहवे श्लोक का अर्थ )

पूर्ण चन्द्र की कलाओं के समान उज्ज्वल आपके गुण, तीनों लोको में व्याप्त हैं क्योंकि जो अद्वितीय त्रिजगत् के भी नाथ के आश्रित हैं उन्हें इच्छानुसार घुमते हुए कौन रोक सकता हैं? कोई नहीं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-14 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 15

राजसम्मान-सौभाग्यवर्धक

(In Sanskrit)

चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभि-

नीतं मनागपि मनो न विकार-मार्गम् ।

कल्पांत-काल-मरुता चलिता चलेन

किं मन्दराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित् ॥15॥

(In English)

chitram kimatra yadi te tridashanganabhir -

nitam managapi mano na vikara - margam |

kalpantakalamaruta chalitachalena

kim mandaradrishikhiram chalitam kadachit || 15 ||

Explanation (English)

Celestial nymphs have tried their best to allure you 

through lewd gestures, but it is not surprising that 

your serenity has not been disturbed. Of course, is the 

great Mandara mountain shaken by the tremendous gale of 

the doomsday, that moves common hillocks?

(हिन्दी में )

जो सुर-तिय विभ्रम आरम्भ, मन न डिग्यो तुम तोउ न अचंभ |

अचल चलावे प्रलय समीर, मेरु-शिखर डगमगें न धीर ||१५||

(भक्तामर स्तोत्र के 15 वें श्लोक का अर्थ )

यदि आपका मन देवागंनाओं के द्वारा किंचित् भी विक्रति को प्राप्त नहीं कराया जा सका, तो इस विषय में आश्चर्य ही क्या है? पर्वतों को हिला देने वाली प्रलयकाल की पवन के द्वारा क्या कभी मेरु का शिखर हिल सका है? नहीं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-15 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 16

सर्व-विजय-दायक

(In Sanskrit)

निर्धूम-वर्त्ति-रपवर्जित-तैलपूरः,

कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटी-करोषि ।

गम्यो न जातु मरुतां चलिता-चलानां,

दीपोपरस्त्वमसि नाथ! जगत्प्रकाशः ॥16॥

(In English)

nirdhumavartipavarjita - tailapurah

kritsnam jagattrayamidam prakati-karoshi |

gamyo na jatu marutam chalitachalanam

dipoaparastvamasi nath jagatprakashah || 16 ||

Explanation (English)

You are O Master, an irradiating divine lamp that needs 

neither a wick nor oil, and is smokeless, yet enlightens 

three realms. Even the greatest of storm that does not 

effect it.

(हिन्दी में )

धूम-रहित बाती गत नेह, परकाशे त्रिभुवन-घर एह |

वात-गम्य नाहीं परचंड, अपर दीप तुम बलो अखंड ||१६||

(भक्तामर स्तोत्र के 16 वें श्लोक का अर्थ )

हे स्वामिन्! आप धूम तथा बाती से रहित, तेल के प्रवाह के बिना भी इस सम्पूर्ण लोक को प्रकट करने वाले अपूर्व जगत् प्रकाशक दीपक हैं जिसे पर्वतों को हिला देने वाली वायु भी कभी बुझा नहीं सकती |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-16 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 17

सर्व उदर पीडा नाशक

(In Sanskrit)

नास्तं कदाचिदुपयासि न राहु-गम्यः,

स्पष्टी-करोषि सहसा युगपज्जगंति ।

नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महा-प्रभावः,

सूर्यातिशायि-महिमासि मुनीन्द्र लोके ॥17॥

(In English)

nastam kadachidupayasi na rahugamyah

spashtikaroshi sahasa yugapajjaganti |

nambhodharodara - niruddhamahaprabhavah

suryatishayimahimasi munindra! loke || 17 ||

Explanation (English)

O Great one ! Your glory is greater than that of the 

sun. The sun rises every day but sets as well. The sun 

suffers eclipse, is obstructed by the clouds, but you 

are no such sun. Your infinite virtues and 

passionlessness cannot be eclipsed. The sun slowly 

shines over different parts of the world, but the glory 

of your omniscience reaches every part of the world, all 

at once.

(हिन्दी में )

छिपहु न लुपहु राहु की छाहिं, जग-परकाशक हो छिन-माहिं |

घन-अनवर्त दाह विनिवार, रवि तें अधिक धरो गुणसार ||१७||

(भक्तामर स्तोत्र के 17 वें श्लोक का अर्थ )

 हे मुनीन्द्र! आप न तो कभी अस्त होते हैं न ही राहु के द्वारा ग्रसे जाते हैं और न आपका महान तेज मेघ से तिरोहित होता है आप एक साथ तीनों लोकों को शीघ्र ही प्रकाशित कर देते हैं अतः आप सूर्य से भी अधिक महिमावन्त हैं |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 18

शत्रु सेना स्तम्भक

(In Sanskrit)

नित्योदयं दलित-मोह-महान्धकारं।

गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् ।

विभ्राजते तव मुखाब्ज-मनल्प-कांति,

विद्योतयज्-जगदपूर्व-शशांक-विम्बम् ॥18॥

(In English)

nityodayam dalitamohamahandhakaram

gamyam na rahuvadanasya na varidanam |

vibhrajate tava mukhabjamanalpa kanti

vidyotayajjagadapurva - shashankabimbam || 18 ||

Explanation (English)

O Master! Your beautiful face transcends the moon. The 

moon shines only at night but your face is always 

beaming. The moon light dispels darkness only to a some 

level, your face dispels the delusion of ignorance and 

desire. The moon is eclipsed as well as obscured by 

clouds, but there is nothing that can shadow your face.

(हिन्दी में )

सदा उदित विदलित तममोह, विघटित मेघ-राहु-अवरोह |

तुम मुख-कमल अपूरब चंद, जगत्-विकाशी जोति अमंद ||१८||

(भक्तामर स्तोत्र के 18 वें श्लोक का अर्थ )

हमेशा उदित रहने वाला, मोहरुपी अंधकार को नष्ट करने वाला जिसे न तो राहु ग्रस सकता है, न ही मेघ आच्छादित कर सकते हैं, अत्यधिक कान्तिमान, जगत को प्रकाशित करने वाला आपका मुखकमल रुप अपूर्व चन्द्रमण्डल शोभित होता है |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 19

जादू-टोना-प्रभाव नाशक

(In Sanskrit)

किं शर्वरीषु शशिनान्हि विवस्वता वा,

युष्मन्मुखेन्दु-दलितेषु तमःसु नाथ ।

निष्पन्न-शालि-वन-शालिनी जीव-लोके,

कार्यं कियज्-जलधरैर्जल-भारनम्रैः ॥19॥

(In English)

kim sharvarishu shashinaahni vivasvata va

yushmanmukhendu - daliteshu tamassu natha

nishmanna shalivanashalini jiva loke

karyam kiyajjaladharair - jalabhara namraih || 19 ||

Explanation (English)

O God ! Your aura dispels the perpetual darkness. The 

sun beams during the day and the moon during the night, 

but your ever radiant face sweeps away the darkness of 

the universe. Once the crop is ripe what is the need of 

the cloud full of rain.

(हिन्दी में )

निश-दिन शशि रवि को नहिं काम, तुम मुख-चंद हरे तम-धाम |

जो स्वभाव तें उपजे नाज, सजल मेघ तें कौनहु काज ||१९||

(भक्तामर स्तोत्र के 19 वें श्लोक का अर्थ )

हे स्वामिन्! जब अंधकार आपके मुख रुपी चन्द्रमा के द्वारा नष्ट हो जाता है तो रात्रि में चन्द्रमा से एवं दिन में सूर्य से क्या प्रयोजन? पके हुए धान्य के खेतों से शोभायमान धरती तल पर पानी के भार से झुके हुए मेघों से फिर क्या प्रयोजन |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 20

संतान-लक्ष्मी-सौभाग्य-विजय बुद्धिदायक

(In Sanskrit)

ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं

नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु ।

तेजःस्फुरन्मणिषु याति यथा महत्वं,

नैवं तु काच-शकले किरणा-कुलेपि ॥20॥

(In English)

gyanam yatha tvayi vibhati kritavakasham

naivam tatha hariharadishu nayakeshu

tejah sphuranmanishu yati yatha mahatvam

naivam tu kacha - shakale kiranakuleapi || 20 ||

Explanation (English)

O Supreme God! The infinite and eternal knowledge that you have, is not possessed by any other deity in this world. Indeed,the splendour and shine of priceless jewels can not be seen in the glass pieces shining in the light.

(हिन्दी में )

जो सुबोध सोहे तुम माँहिं, हरि हर आदिक में सो नाहिं |

जो द्युति महा-रतन में होय, कांच-खंड पावे नहिं सोय ||२०||

(भक्तामर स्तोत्र के 20 वें श्लोक का अर्थ )

अवकाश को प्राप्त ज्ञान जिस प्रकार आप में शोभित होता है वैसा विष्णु महेश आदि देवों में नहीं | कान्तिमान मणियों में, तेज जैसे महत्व को प्राप्त होता है वैसे किरणों से व्याप्त भी काँच के टुकड़े में नहीं होता |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 21

सर्व वशीकरण्

(In Sanskrit)

मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा,

दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति ।

किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः,

कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेपि ॥21॥

(In English)

manye varam hari-haradaya eva drishta

drishteshu yeshu hridayam tvayi toshameti |

kim vikshitena bhavata bhuvi yena nanyah

kashchinmano harati natha! bhavantareapi || 21 ||

Explanation (English)

O Ultimate Lord ! It is good that I have seen other 

deities before seeing you.The dissatisfaction even after 

seeing them has been removed by the glance of your 

detached and serene expression. That I have seen the 

supreme I can not be satisfied with anything less.

(हिन्दी में )

सराग देव देख मैं भला विशेष मानिया |

स्वरूप जाहि देख वीतराग तू पिछानिया ||

कछू न तोहि देखके जहाँ तुही विशेखिया |

मनोग चित्त-चोर ओर भूल हू न पेखिया ||२१||

(भक्तामर स्तोत्र के 21 वें श्लोक का अर्थ )

हे स्वामिन्| देखे गये विष्णु महादेव ही मैं उत्तम मानता हूँ, जिन्हें देख लेने पर मन आपमें सन्तोष को प्राप्त करता है| किन्तु आपको देखने से क्या लाभ? जिससे कि प्रथ्वी पर कोई दूसरा देव जन्मान्तर में भी चित्त को नहीं हर पाता |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 22

भूत-पिशाचादि व्यंतर बाधा निरोधक

(In Sanskrit)

स्त्रीणां शतानि शतशो जनयंति पुत्रान्-

नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता ।

सर्वा दिशो दधति भानि सहस्त्र-रश्मिं,

प्राच्येव दिग्जनयति स्फुर-दंशु-जालम् ॥22॥

(In English)

strinam shatani shatasho janayanti putran

nanya sutam tvadupamam janani prasuta|

sarva disho dadhati bhani sahastrarashmim

prachyeva dig janayati sphuradanshujalam || 22 ||

Explanation (English)

O the great one! Infinite stars and planets can be seen 

in all directions but the sun rises only in the East. 

Similarly numerous women give birth to sons but a 

remarkable son like you was born only to one mother; you 

are very special.

(हिन्दी में )

अनेक पुत्रवंतिनी नितंबिनी सपूत हैं |

न तो समान पुत्र और मात तें प्रसूत हैं ||

दिशा धरंत तारिका अनेक कोटि को गिने |

दिनेश तेजवंत एक पूर्व ही दिशा जने ||२२||

(भक्तामर स्तोत्र के 22 वें श्लोक का अर्थ )

सैकड़ों स्त्रियाँ सैकड़ों पुत्रों को जन्म देती हैं, परन्तु आप जैसे पुत्र को दूसरी माँ उत्पन्न नहीं कर सकी| नक्षत्रों को सभी दिशायें धारण करती हैं परन्तु कान्तिमान् किरण समूह से युक्त सूर्य को पूर्व दिशा ही जन्म देती हैं |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 23

प्रेत बाधा निवारक

(In Sanskrit)

त्वामा-मनंति मुनयः परमं पुमांस-

मादित्य-वर्ण-ममलं तमसः पुरस्तात्

त्वामेव सम्य-गुपलभ्य जयंति मृत्युं,

नान्यः शिवः शिव-पदस्य मुनीन्द्र पंथाः ॥23॥

(In English)

tvamamananti munayah paramam pumansa-

madityavarnamamalam tamasah parastat |

tvameva samyagupalabhya jayanti mrityum

nanyah shivah shivapadasya munindra! panthah || 23 ||

Explanation (English)

O monk of monks ! All monks believe you to be the 

supreme being beyond the darkness, splendid as the sun. 

You are free from attachment and disinclination and 

beyond the gloom of ignorance. One obtains immortality 

by discerning, understanding, and following the path of 

purity you have shown. There is no path leading to 

salvation other than the one you have shown.

(हिन्दी में )

पुरान हो पुमान हो पुनीत पुण्यवान हो |

कहें मुनीश! अंधकार-नाश को सुभानु हो ||

महंत तोहि जान के न होय वश्य काल के |

न और मोहि मोक्ष पंथ देय तोहि टाल के ||२३||

(भक्तामर स्तोत्र के 23 वें श्लोक का अर्थ )

हे मुनीन्द्र! तपस्वीजन आपको सूर्य की तरह तेजस्वी निर्मल और मोहान्धकार से परे रहने वाले परम पुरुष मानते हैं | वे आपको ही अच्छी तरह से प्राप्त कर म्रत्यु को जीतते हैं | इसके सिवाय मोक्षपद का दूसरा अच्छा रास्ता नहीं है |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 24

शिर पीडा नाशक

(In Sanskrit)

त्वा-मव्ययं विभु-मचिंत्य-मसंखय-माद्यं,

ब्रह्माण-मीश्वर-मनंत-मनंग केतुम् ।

योगीश्वरं विदित-योग-मनेक-मेकं,

ज्ञान-स्वरूप-ममलं प्रवदंति संतः ॥24॥

(In English)

tvamavyayam vibhumachintyamasankhyamadyam

brahmanamishvaramanantamanangaketum

yogishvaram viditayogamanekamekam

gyanasvarupamamalam pravadanti santah || 24 ||

Explanation (English)

O God ! After having seen you in different perspectives, 

monks hail you as: Indestructible and all composite, All 

pervading, Unfathomable, Infinite in virtues, Progenitor 

(of philosophy), Perpetually blissful,Majestic, having 

shed all the karmas, eternal, Serene with respect to 

sensuality, Omniscient in form, and free from all vices.

(हिन्दी में )

अनंत नित्य चित्त की अगम्य रम्य आदि हो |

असंख्य सर्वव्यापि विष्णु ब्रह्म हो अनादि हो ||

महेश कामकेतु जोगि र्इश योग ज्ञान हो |

अनेक एक ज्ञानरूप शुद्ध संतमान हो ||२४||

(भक्तामर स्तोत्र के 24 वें श्लोक का अर्थ )

सज्जन पुरुष आपको शाश्वत, विभु, अचिन्त्य, असंख्य, आद्य, ब्रह्मा, ईश्वर, अनन्त, अनंगकेतु, योगीश्वर, विदितयोग, अनेक, एक ज्ञानस्वरुप और अमल कहते हैं |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 25

नज़र (दृष्टि देष) नाशक

(In Sanskrit)

बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्,

त्त्वं शंकरोसि भुवन-त्रय-शंकरत्वात् ।

धातासि धीर! शिव-मार्ग-विधेर्-विधानात्,

व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोसि ॥25॥

(In English)

buddhastvameva vibudharchita buddhi bodhat ,

tvam shankaroasi bhuvanatraya shankaratvat |

dhataasi dhira ! shivamarga-vidhervidhanat ,

vyaktam tvameva bhagavan ! purushottamoasi || 25 ||

Explanation (English)

O Supreme God ! The wise have hailed your omniscience, so you are the Buddha. You are the ultimate patron of all the beings, so you are Shankar. You are the developer of the codes of conduct( faith,Right knowledge and Right conduct)leading to Nirvana, so you are Brahma. You are manifest in thoughts of all the devotees, so you are Vishnu. Hence you are the Supreme God.

(हिन्दी में )

तुही जिनेश! बुद्ध है सुबुद्धि के प्रमान तें |

तुही जिनेश! शंकरो जगत्त्रयी विधान तें ||

तुही विधात है सही सुमोख-पंथ धार तें |

नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थ के विचार तें ||२५||

(भक्तामर स्तोत्र के 25 वें श्लोक का अर्थ )

देव अथवा विद्वानों के द्वारा पूजित ज्ञान वाले होने से आप ही बुद्ध हैं| तीनों लोकों में शान्ति करने के कारण आप ही शंकर हैं| हे धीर! मोक्षमार्ग की विधि के करने वाले होने से आप ही ब्रह्मा हैं| और हे स्वामिन्! आप ही स्पष्ट रुप से मनुष्यों में उत्तम अथवा नारायण हैं |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 26

आधा शीशी (सिर दर्द) एवं प्रसूति पीडा नाशक

(In Sanskrit)

तुभ्यं नम स्त्रिभुवनार्ति-हाराय नाथ,

तुभ्यं नमः क्षिति-तलामल-भूषणाय ।

तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय,

तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय ॥26॥

(In English)

tubhyam namastribhuvanartiharaya natha |

tubhyam namah kshititalamalabhushanaya |

tubhyam namastrijagatah parameshvaraya,

tubhyam namo jina ! bhavodadhi shoshanaya || 26 ||

Explanation (English)

O Salvager from all the miseries ! I bow to thee. O 

Master of this world ! I bow to you. O Lord supreme of 

the three worlds ! I bow to you. O eradicator of the 

unending cycle of rebirths ! I bow to you.

(हिन्दी में )

नमो करूँ जिनेश! तोहि आपदा निवार हो |

नमो करूँ सु भूरि भूमि-लोक के सिंगार हो ||

नमो करूँ भवाब्धि-नीर-राशि-शोष-हेतु हो |

नमो करूँ महेश! तोहि मोख-पंथ देतु हो ||२६||

(भक्तामर स्तोत्र के 26 वें श्लोक का अर्थ )

हे स्वामिन्! तीनों लोकों के दुःख को हरने वाले आपको नमस्कार हो, प्रथ्वीतल के निर्मल आभुषण स्वरुप आपको नमस्कार हो, तीनों जगत् के परमेश्वर आपको नमस्कार हो और संसार समुन्द्र को सुखा देने वाले आपको नमस्कार हो |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 27

शत्रुकृत-हानि निरोधक

(In Sanskrit)

को विस्मयोत्र यदि नाम गुणैरशेषै,

स्त्वं संश्रितो निरवकाश-तया मुनीश ।

दोषै-रुपात्त-विविधाश्रय-जात-गर्वैः,

स्वप्नांतरेपि न कदाचिद-पीक्षितोसि ॥27।।

(In English)

ko vismayoatra yadi nama gunairasheshais -

tvam sanshrito niravakashataya munisha!

doshairupatta vividhashraya jatagarvaih,

svapnantareapi na kadachidapikshitoasi || 27 ||

Explanation (English)

O Supreme ! It is not surprising that all the virtues 

have been packed into you, leaving no place for vices. 

The vices have appeared in other beings. Elated by the 

false pride, they drift away and do not draw closer to 

you even in their dream.

(हिन्दी में )

तुम जिन पूरन गुन-गन भरे, दोष गर्व करि तुम परिहरे |

और देव-गण आश्रय पाय,स्वप्न न देखे तुम फिर आय ||२७||

(भक्तामर स्तोत्र के 27वें श्लोक का अर्थ )

हे मुनीश! अन्यत्र स्थान न मिलने के कारण समस्त गुणों ने यदि आपका आश्रय लिया हो तो तथा अन्यत्र अनेक आधारों को प्राप्त होने से अहंकार को प्राप्त दोषों ने कभी स्वप्न में भी आपको न देखा हो तो इसमें क्या आश्चर्य?

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Bhaktamar Stotra Shloka - 28

सर्व कार्य सिद्धि दायक

(In Sanskrit)

उच्चैर-शोक-तरु-संश्रित-मुन्मयूख-

माभाति रूप-ममलं भवतो नितांतम् ।

स्पष्टोल्लसत-किरणमस्त-तमोवितानं,

बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्ववर्ति ॥28॥

(In English)

uchchairashoka-tarusanshritamunmayukha-

mabhati rupamamalam bhavato nitantam |

spashtollasatkiranamasta-tamovitanam

bimbam raveriva payodhara parshvavarti || 28 ||

Explanation (English)

O Jina ! Sitting under the Ashoka tree, the aura of your 

sparkling body gleaming, you look as divinely splendid 

as the halo of the sun in dense clouds, penetrating the 

darkness with its rays.

(हिन्दी में )

तरु अशोक-तल किरन उदार, तुम तन शोभित है अविकार |

मेघ निकट ज्यों तेज फुरंत, दिनकर दिपे तिमिर निहनंत ||२८||

(भक्तामर स्तोत्र के 28 वें श्लोक का अर्थ )

ऊँचे अशोक वृक्ष के नीचे स्थित, उन्नत किरणों वाला, आपका उज्ज्वल रुप जो स्पष्ट रुप से शोभायमान किरणों से युक्त है, अंधकार समूह के नाशक, मेघों के निकट स्थित सूर्य बिम्ब की तरह अत्यन्त शोभित होता है |

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Bhaktamar Stotra Shloka - 29

नेत्र पीडा व बिच्छू विष नाशक

(In Sanskrit)

सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे,

विभाजते तव वपुः कानका-वदातम ।

बिम्बं वियद्-विलस-दंशु-लता-वितानं,

तुंगोदयाद्रि-शिरसीव सहस्त्र-रश्मेः ॥29॥

(In English)

simhasane manimayukhashikhavichitre,

vibhrajate tava vapuh kanakavadatam |

bimbam viyadvilasadanshulata - vitanam,

tungodayadri - shirasiva sahastrarashmeh || 29 ||

Explanation (English)

O Jina ! Seated on the throne with kaleidoscopic hue of gems, your splendid golden body looks magnificent and attractive like the rising sun on the peak of the eastern mountain, emitting golden rays under blue sky.

(हिन्दी में )

सिंहासन मणि-किरण-विचित्र, ता पर कंचन-वरन पवित्र |

तुम तन शोभित किरन विथार, ज्यों उदयाचल रवि तम-हार ||२९||

(भक्तामर स्तोत्र के 29 वें श्लोक का अर्थ )

मणियों की किरण-ज्योति से सुशोभित सिंहासन पर, आपका सुवर्ण कि तरह उज्ज्वल शरीर, उदयाचल के उच्च शिखर पर आकाश में शोभित, किरण रुप लताओं के समूह वाले सूर्य मण्डल की तरह शोभायमान हो रहा है|

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Bhaktamar Stotra Shloka - 30

शत्रु स्तम्भक

(In Sanskrit)

कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभं,

विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कांतम् ।

उद्यच्छशांक-शुचि-निर्झर-वारि-धार-

मुच्चैस्तटं सुर-गिरेरिव शात-कौम्भम् ॥30॥

(In English)

kundavadata - chalachamara - charushobham,

vibhrajate tava vapuh kaladhautakantam |

udyachchhashanka - shuchinirjhara - varidhara-,

muchchaistatam sura gireriva shatakaumbham || 30 ||

Explanation (English)

O Tirthankara ! The snow white fans of loose fibres (giant whisks) swinging on both sides of your golden body appear like streams of water,pure and glittering as the rising moon,flowing down the sides of the peakof the golden mountain,Sumeru.

(हिन्दी में )

कुंद-पुहुप-सित-चमर ढ़ुरंत, कनक-वरन तुम तन शोभंत |

ज्यों सुमेरु-तट निर्मल कांति, झरना झरे नीर उमगांति ||३०||

(भक्तामर स्तोत्र के 30 वें श्लोक का अर्थ )

कुन्द के पुष्प के समान धवल चँवरों के द्वारा सुन्दर है शोभा जिसकी, ऐसा आपका स्वर्ण के समान सुन्दर शरीर, सुमेरुपर्वत, जिस पर चन्द्रमा के समान उज्ज्वल झरने के जल की धारा बह रही है, के स्वर्ण निर्मित ऊँचे तट की तरह शोभायमान हो रहा है|

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Bhaktamar Stotra Shloka - 31

राज्य सम्मान दायक व चर्म रोग नाशक

(In Sanskrit)

छत्र-त्रयं तव विभाति शशांक-कांत-

मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम् ।

मुक्ता-फल-प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभं,

प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥31॥

(In English)

chhatratrayam tava vibhati shashankakanta-

muchchaih sthitam sthagita bhanukara - pratapam |

muktaphala - prakarajala - vivriddhashobham,

prakhyapayattrijagatah parameshvaratvam || 31 ||

Explanation (English)

O The Greatest One ! A three tier canopy adorns the 

space over your head. It has the soft white radiance of 

the moon and is decorated with jewels. This canopy has 

filtered the scorching sun rays. Indeed, this canopy 

symbolizes your dominance over the three worlds.

(हिन्दी में )

ऊँचे रहें सूर-दुति लोप, तीन छत्र तुम दिपें अगोप |

तीन लोक की प्रभुता कहें, मोती झालरसों छवि लहें ||३१||

(भक्तामर स्तोत्र के 31 वें श्लोक का अर्थ )

चन्द्रमा के समान सुन्दर, सूर्य की किरणों के सन्ताप को रोकने वाले, तथा मोतियों के समूहों से बढ़ती हुई शोभा को धारण करने वाले, आपके ऊपर स्थित तीन छत्र, मानो आपके तीन लोक के स्वामित्व को प्रकट करते हुए शोभित हो रहे हैं|

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Bhaktamar Stotra Shloka - 32

संग्रहणी आदि उदर पीडा नाशक

(In Sanskrit)

गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्वभाग-

स्त्रैलोक्य-लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्षः ।

सद्धर्म-राज-जय-घोषण-घोषकः सन्,

खे दुन्दुभिर्-ध्वनति ते यशसः प्रवादि ॥32॥

(In English)

gambhirataravapurita - digvibhagas -

trailokyaloka - shubhasangama bhutidakshah |

saddharmarajajayaghoshana - ghoshakah san ,

khe dundubhirdhvanati te yashasah pravadi || 32 ||

Explanation (English)

The vibrant drum beats fill the space in all directions 

as if awarding your serene presence and calling all the 

beings of the universe to join the devout path shown by 

you. All space is resonating with this proclamation of 

the victory of the true religion.

(हिन्दी में )

दुंदुभि-शब्द गहर गंभीर, चहुँ दिशि होय तुम्हारे धीर |

त्रिभुवन-जन शिव-संगम करें, मानो जय-जय रव उच्चरें ||३२||

(भक्तामर स्तोत्र के 32 वें श्लोक का अर्थ )

गम्भीर और उच्च शब्द से दिशाओं को गुञ्जायमान करने वाला, तीन लोक के जीवों को शुभ विभूति प्राप्त कराने में समर्थ और समीचीन जैन धर्म के स्वामी की जय घोषणा करने वाला दुन्दुभि वाद्य आपके यश का गान करता हुआ आकाश में शब्द करता है|

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Bhaktamar Stotra Shloka - 33

सर्व ज्वर नाशक

(In Sanskrit)

मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात

संतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा ।

गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता,

दिव्या दिवः पतति ते वयसां ततिर्वा ॥33॥

(In English)

mandara - sundaranameru - suparijata

santanakadikusumotkara-vrishtiruddha |

gandhodabindu - shubhamanda - marutprapata,

divya divah patati te vachasam tatirva || 33 ||

Explanation (English)

O Jina ! The divine sprinkle of the Mandar Parbat, 

Sundar,Nameru,Parijata drift towards you with the mild 

breeze. This alluring scene presents impression as if 

the devout words spoken by you have changed into 

flowers and are drifting toward the earthlings.

(हिन्दी में )

मंद पवन गंधोदक इष्ट, विविध कल्पतरु पुहुप सुवृष्ट |

देव करें विकसित दल सार, मानो द्विज-पंकति अवतार ||३३||

(भक्तामर स्तोत्र के 33 वें श्लोक का अर्थ )

सुगंधित जल बिन्दुओं और मन्द सुगन्धित वायु के साथ गिरने वाले श्रेष्ठ मनोहर मन्दार, सुन्दर, नमेरु, पारिजात, सन्तानक आदि कल्पवृक्षों के पुष्पों की वर्षा आपके वचनों की पंक्तियों की तरह आकाश से होती है|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-33 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 34

गर्व रक्षक

(In Sanskrit)

शुम्भत्प्रभा-वलय-भूरि-विभा विभोस्ते,

लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमा-क्षिपंती ।

प्रोद्यद्दिवाकर्-निरंतर-भूरि-संख्या,

दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्याम् ॥34॥

(In English)

shumbhatprabhavalaya - bhurivibha vibhoste,

lokatraye dyutimatam dyutimakshipanti |

prodyad -divakara - nirantara bhurisankhya

diptya jayatyapi nishamapi soma-saumyam || 34 ||

Explanation (English)

O Lord ! The resplendent orb around you is more 

magnificent than any other luminous object in the 

universe. It quells the darkness of the night and is 

brighter than many suns put together; yet it is as cool 

and serene as the bright full moon.

(हिन्दी में )

तुम तन-भामंडल जिन-चंद, सब दुतिवंत करत हैं मंद |

कोटि संख्य रवि-तेज छिपाय, शशि निर्मल निशि करे अछाय ||३४||

(भक्तामर स्तोत्र के 34 वें श्लोक का अर्थ )

हे प्रभो! तीनों लोकों के कान्तिमान पदार्थों की प्रभा को तिरस्कृत करती हुई आपके मनोहर भामण्डल की विशाल कान्ति एक साथ उगते हुए अनेक सूर्यों की कान्ति से युक्त होकर भी चन्द्रमा से शोभित रात्रि को भी जीत रही है|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-34 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 35

दुर्भिक्ष,चोरी,मिरगी आदि निवारक

(In Sanskrit)

स्वर्गा-पवर्ग-गममार्ग-विमार्गणेष्टः,

सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटुस-त्रिलोक्याः ।

दिव्य-ध्वनिर-भवति ते विशदार्थ-सर्व-

भाषा-स्वभाव-परिणाम-गुणैः प्रयोज्यः ॥35॥

(In English)

svargapavargagamamarga - vimarganeshtah,

saddharmatatvakathanaika - patustrilokyah |

divyadhvanirbhavati te vishadarthasatva

bhashasvabhava - parinamagunaih prayojyah || 35 ||

Explanation (English)

Your divine voice is a guide that illuminates the path 

leading to heaven and liberation; it is fully capable 

of expounding the essentials of true religion for the 

benefit of all the beings of the three worlds; it is 

endowed with miraculous attribute that makes it 

comprehensible and understood by every listener in his 

own language.

(हिन्दी में )

स्वर्ग-मोख-मारग संकेत, परम-धरम उपदेशन हेत |

दिव्य वचन तुम खिरें अगाध, सब भाषा-गर्भित हित-साध ||३५||

(भक्तामर स्तोत्र के 35 वें श्लोक का अर्थ )

आपकी दिव्यध्वनि स्वर्ग और मोक्षमार्ग की खोज में साधक, तीन लोक के जीवों को समीचीन धर्म का कथन करने में समर्थ, स्पष्ट अर्थ वाली, समस्त भाषाओं में परिवर्तित करने वाले स्वाभाविक गुण से सहित होती है|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-35 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 36

सम्पत्ति-दायक

(In Sanskrit)

उन्निद्र-हेम-नवपंकजपुंज-कांती,

पर्युल्लसन्नख-मयूख-शिखा-भिरामौ ।

पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र धत्तः,

पद्मानि तत्र विबुधाः परि-कल्पयंति ॥36॥

(In English)

unnidrahema - navapankaja - punjakanti,

paryullasannakhamayukha-shikhabhiramau |

padau padani tava yatra jinendra ! dhattah

padmani tatra vibudhah parikalpayanti || 36 ||

Explanation (English)

O Tirthankara ! Your feet are radiant like fresh golden 

lotuses. Their nails have an attractive glow. Wherever 

you put your feet the lords create golden lotuses.

(हिन्दी में )

विकसित-सुवरन-कमल-दुति, नख-दुति मिलि चमकाहिं |

तुम पद पदवी जहँ धरो, तहँ सुर कमल रचाहिं ||३६||

(भक्तामर स्तोत्र के 36 वें श्लोक का अर्थ )

पुष्पित नव स्वर्ण कमलों के समान शोभायमान नखों की किरण प्रभा से सुन्दर आपके चरण जहाँ पड़ते हैं वहाँ देव गण स्वर्ण कमल रच देते हैं |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-36 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 37

दुर्जन वशीकरण

(In Sanskrit)

इत्थं यथा तव विभूति-रभूज्जिनेन्द्र,

धर्मोप-देशन विधौ न तथा परस्य ।

यादृक् प्रभा देनकृतः प्रहतान्ध-कारा,

तादृक्कुतो ग्रह-गणस्य विकासिनोपि ॥37॥

(In English)

ttham yatha tava vibhutirabhujjinendra,

dharmopadeshanavidhau na tatha parasya |

yadrik prabha dinakritah prahatandhakara,

tadrik -kuto grahaganasya vikashinoapi | 37 ||

Explanation (English)

O great one ! The height of grandiloquence, clarity and erudition evident in your words is not seen anywhere else. Indeed,the darkness dispelling glare of the sun can never be seen in the stars and planets.

(हिन्दी में )

ऐसी महिमा तुम-विषै, और धरे नहिं कोय |

सूरज में जो जोत है, नहिं तारा-गण होय ||३७||

(भक्तामर स्तोत्र के 37 वें श्लोक का अर्थ )

हे जिनेन्द्र! इस प्रकार धर्मोपदेश के कार्य में जैसा आपका ऐश्वर्य था वैसा अन्य किसी का नही हुआ| अंधकार को नष्ट करने वाली जैसी प्रभा सूर्य की होती है वैसी अन्य प्रकाशमान भी ग्रहों की कैसे हो सकती है ?

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-37 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 38

हाथी भय निवारक

(In Sanskrit)

श्च्योतन-मदा-विल-विलोल-कपोल-मूल-

मत्त-भ्रमद-भ्रमर-नाद विवृद्ध-कोपम् ।

ऐरावताभ-मिभ-मुद्धत-मापतंतं,

दृष्टवा भयं भवति नो भवदा-श्रितानाम् ॥38॥

(In English)

shchyotanmadavilavilola-kapolamula

mattabhramad -bhramaranada - vivriddhakopam |

airavatabhamibhamuddhatamapatantan

drisht va bhayam bhavati no bhavadashritanam || 38 ||

Explanation (English)

O Tirthanakara! The devotees who have surrendered to 

you are not scared even of a wild elephant being 

incessantly annoyed by humming bees. They are always 

and everywhere fearless as the silence of their deep 

meditation placates even the most brutal of the beings.

(हिन्दी में )

मद-अवलिप्त-कपोल-मूल अलि-कुल झँकारें |

तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्धत अति धारें ||

काल-वरन विकराल कालवत् सनमुख आवे |

ऐरावत सो प्रबल सकल जन भय उपजावे ||

देखि गयंद न भय करे, तुम पद-महिमा लीन |

विपति-रहित संपति-सहित, वरतैं भक्त अदीन ||३८||

(भक्तामर स्तोत्र के 38 वें श्लोक का अर्थ )

आपके आश्रित मनुष्यों को, झरते हुए मद जल से जिसके गण्डस्थल मलीन, कलुषित तथा चंचल हो रहे है और उन पर उन्मत्त होकर मंडराते हुए काले रंग के भौरे अपने गुजंन से क्रोध बढा़ रहे हों ऐसे ऐरावत की तरह उद्दण्ड, सामने आते हुए हाथी को देखकर भी भय नहीं होता|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-38 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 39

सिंह भय निवारक

(In Sanskrit)

भिन्नेभ-कुम्भ-गल-दुज्ज्वल-शोणिताक्त-

मुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमिभागः ।

बद्ध-क्रमः क्रम-गतं हरिणा-धिपोपि,

नाक्रामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते ॥39॥

(In English)

bhinnebha - kumbha - galadujjavala - shonitakta,

muktaphala prakara - bhushita bhumibhagah |

baddhakramah kramagatam harinadhipoapi,

nakramati kramayugachalasanshritam te || 39 ||

Explanation (English)

A lion who has torn apart elephant's head with blood flowing under, scattering blood stained pearls on the ground, ready to pounce with growling sound, If your devotee falls in his grasp, and has firm faith in you, even the lion will not touch the devotee.

(हिन्दी में )

अति मद-मत्त गयंद कुंभ-थल नखन विदारे |

मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगारे ||

बाँकी दाढ़ विशाल वदन में रसना लोले |

भीम भयानक रूप देख जन थरहर डोले ||

ऐसे मृग-पति पग-तले, जो नर आयो होय |

शरण गये तुम चरण की, बाधा करे न सोय ||३९||

(भक्तामर स्तोत्र के 39 वें श्लोक का अर्थ )

सिंह, जिसने हाथी का गण्डस्थल विदीर्ण कर, गिरते हुए उज्ज्वल तथा रक्तमिश्रित गजमुक्ताओं से पृथ्वी तल को विभूषित कर दिया है तथा जो छलांग मारने के लिये तैयार है वह भी अपने पैरों के पास आये हुए ऐसे पुरुष पर आक्रमण नहीं करता जिसने आपके चरण युगल रुप पर्वत का आश्रय ले रखा है|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-39 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 40

अग्नि भय निवारक

(In Sanskrit)

कल्पांत-काल-पवनोद्धत-वह्नि-कल्पं,

दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्स्फुलिंगम् ।

विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुख-मापतंतं,

त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्य-शेषम् ॥40॥

(In English)

kalpantakala - pavanoddhata - vahnikalpam,

davanalam jvalitamujjavalamutsphulingam |

vishvam jighatsumiva sammukhamapatantam,

tvannamakirtanajalam shamayatyashesham || 40 ||

Explanation (English)

O Lord! Even the all forest inferno, as if kindled by 

the judgement day storm and having resplendent sparking 

flames,is extinguished in no time by the satiate stream 

of your name. (Your devotee is not afraid of fire.)

(हिन्दी में )

प्रलय-पवनकरि उठी आग जो तास पटंतर |

वमे फुलिंग शिखा उतंग पर जले निरंतर ||

जगत् समस्त निगल्ल भस्म कर देगी मानो |

तड़-तड़ाट दव-अनल जोर चहुँ-दिशा उठानो ||

सो इक छिन में उपशमे, नाम-नीर तुम लेत |

होय सरोवर परिनमे, विकसित-कमल समेत ||४०||

(भक्तामर स्तोत्र के 40 वें श्लोक का अर्थ )

आपके नाम यशोगानरुपी जल, प्रलयकाल की वायु से उद्धत, प्रचण्ड अग्नि के समान प्रज्वलित, उज्ज्वल चिनगारियों से युक्त, संसार को भक्षण करने की इच्छा रखने वाले की तरह सामने आती हुई वन की अग्नि को पूर्ण रुप से बुझा देता है |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-40 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 41

सर्प विष निवारक

(In Sanskrit)

रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठ-नीलं,

क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतंतम् ।

आक्रामति क्रमयुगेन निरस्त-शंकस्-

त्वन्नाम-नाग-दमनी हृदि यस्य पुंस ॥41॥

(In English)

raktekshanam samadakokila - kanthanilam,

krodhoddhatam phaninamutphanamapatantam |

akramati kramayugena nirastashankas -

tvannama nagadamani hridi yasya punsah || 41 ||

Explanation (English)

O Greatest of the greatest! A devotee who has absorbed 

the antibody of your devout name crosses fearlessly 

over an extremely venomous snake that has red eyes, 

black body, unpleasant appearance and raised hood. 

(Your devotee are not frightened of snakes.)

(हिन्दी में )

कोकिल-कंठ-समान श्याम-तन क्रोध जलंता |

रक्त-नयन फुंकार मार विष-कण उगलंता ||

फण को ऊँचा करे वेगि ही सन्मुख धाया |

तव जन होय नि:शंक देख फणपति को आया ||

जो चाँपे निज पग-तले, व्यापे विष न लगार |

नाग-दमनि तुम नाम की, है जिनके आधार ||४१||

(भक्तामर स्तोत्र के 41 वें श्लोक का अर्थ )

जिस पुरुष के ह्रदय में नामरुपी-नागदौन नामक औषध मौजूद है, वह पुरुष लाल लाल आँखो वाले, मदयुक्त कोयल के कण्ठ की तरह काले, क्रोध से उद्धत और ऊपर को फण उठाये हुए, सामने आते हुए सर्प को निश्शंक होकर दोनों पैरो से लाँघ जाता है |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-41 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 42

युद्ध भय निवारक

(In Sanskrit)

वल्गत्तुरंग-गज-गर्जित-भीम-नाद-

माजौ बलं बलवतामपि भू-पतीनाम् ।

उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं,

त्वत्कीर्त्तनात्-तम इवाशु भिदा-मुपैति ॥42॥

(In English)

valgatturanga gajagarjita - bhimanada-

majau balam balavatamapi bhupatinam !

udyaddivakara mayukha - shikhapaviddham,

tvat -kirtanat tama ivashu bhidamupaiti || 42 ||

Explanation (English)

O Victor of all vices ! As darkness withdraws with the 

rising of the sun, the armies of daunting kings, 

creating thunderous uproar of neighing horses and 

trumpeting elephants, recede when your name is chanted. 

(Your devotee not frightened of enemies.)

(हिन्दी में )

जिस रन माहिं भयानक रव कर रहे तुरंगम |

घन-सम गज गरजाहिं मत्त मानों गिरि-जंगम ||

अति-कोलाहल-माँहिं बात जहँ नाहिं सुनीजे |

राजन को परचंड देख बल धीरज छीजे ||

नाथ तिहारे नाम तें, अघ छिन माँहि पलाय |

ज्यों दिनकर परकाश तें, अंधकार विनशाय ||४२||

(भक्तामर स्तोत्र के 42 वें श्लोक का अर्थ )

आपके यशोगान से युद्धक्षेत्र में उछलते हुए घोडे़ और हाथियों की गर्जना से उत्पन भयंकर कोलाहल से युक्त पराक्रमी राजाओं की भी सेना, उगते हुए सूर्य किरणों की शिखा से वेधे गये अंधकार की तरह शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाती है |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-42 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 43

युद्ध में रक्षक और विजय दायक

(In Sanskrit)

कुंताग्र-भिन्न-गज-शोणित-वारिवाह-

वेगावतार-तरणातुर-योध-भीमे ।

युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास्-

त्वत्-पाद-पंकज-वना-श्रयिणो लभंते ॥43॥

(In English)

kuntagrabhinnagaja - shonitavarivaha

vegavatara - taranaturayodha - bhime |

yuddhe jayam vijitadurjayajeyapakshas -

tvatpada pankajavanashrayino labhante || 43 ||

Explanation (English)

O conqueror of passion ! In the battlefield, where 

bravest of all warriors are eager to trudge over the 

streams of blood coming out of the bodies of elephants 

pierced by sharp weapons, the devotee having sought 

protection in your resplendent feet embraces victory. 

(Your devotee is always victorious at the end.)

(हिन्दी में )

मारें जहाँ गयंद-कुंभ हथियार विदारे |

उमगे रुधिर-प्रवाह वेग जल-सम विस्तारे ||

होय तिरन असमर्थ महाजोधा बलपूरे |

तिस रन में जिन तोर भक्त जे हैं नर सूरे ||

दुर्जय अरिकुल जीतके, जय पावें निकलंक |

तुम पद-पंकज मन बसें, ते नर सदा निशंक ||४३||

(भक्तामर स्तोत्र के 43 वें श्लोक का अर्थ )

हे भगवन् आपके चरण कमलरुप वन का सहारा लेने वाले पुरुष, भालों की नोकों से छेद गये हाथियों के रक्त रुप जल प्रवाह में पडे़ हुए, तथा उसे तैरने के लिये आतुर हुए योद्धाओं से भयानक युद्ध में, दुर्जय शत्रु पक्ष को भी जीत लेते हैं|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-43 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 44

भयानक-जल-विपत्ति नाशक

(In Sanskrit)

अम्भो-निधौ क्षुभित-भीषण-नक्र-चक्र-

पाठीन-पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ ।

रंगत्तरंग-शिखर-स्थित-यान-पात्रास्-

त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद्-व्रजंति ॥44॥

(In English)

ambhaunidhau kshubhitabhishananakrachakra-

pathina pithabhayadolbanavadavagnau

rangattaranga - shikharasthita - yanapatras -

trasam vihaya bhavatahsmaranad vrajanti || 44 ||

Explanation (English)

O Jina ! A vessel caught in giant waves and surrounded by alligators, giant oceanic creatures, and dangerous fire, the devotee by chanting your name surmount such terrors and crosses the ocean. (Your devotees are not afraid of water.)

(हिन्दी में )

नक्र चक्र मगरादि मच्छ-करि भय उपजावे |

जा में बड़वा अग्नि दाह तें नीर जलावे ||

पार न पावे जास थाह नहिं लहिये जाकी |

गरजे अतिगंभीर लहर की गिनति न ताकी ||

सुख सों तिरें समुद्र को, जे तुम गुन सुमिराहिं |

लोल-कलोलन के शिखर, पार यान ले जाहिं ||४४||

(भक्तामर स्तोत्र के 44 वें श्लोक का अर्थ )

क्षोभ को प्राप्त भयंकर मगरमच्छों के समूह और मछलियों के द्वारा भयभीत करने वाले दावानल से युक्त समुद्र में विकराल लहरों के शिखर पर स्थित है जहाज जिनका, ऐसे मनुष्य, आपके स्मरण मात्र से भय छोड़कर पार हो जाते हैं|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-44 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 45

सर्व भयानक रोग नाशक

(In Sanskrit)

उद्भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्नाः,

शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशाः ।

त्वत्पाद-पंकज-रजोमृतदिग्ध-देहाः,

मर्त्या भवंति मकर-ध्वज-तुल्य-रूपाः ॥45॥

(In English)

ud bhutabhishanajalodara - bharabhugnah

shochyam dashamupagatashchyutajivitashah |

tvatpadapankaja-rajoamritadigdhadeha,

martya bhavanti makaradhvajatulyarupah || 45 ||

Explanation (English)

O the all knowledgeable one ! An extremely sick person, 

deformed due to dropsy and maladies incurable, having 

lost all hopes of recovery and survival, when he rubs 

the nectar-like dust taken from your feet, fully 

recovers and takes form like cupid sweet.

(हिन्दी में )

महा जलोदर रोग-भार पीड़ित नर जे हैं |

वात पित्त कफ कुष्ट आदि जो रोग गहे हैं ||

सोचत रहें उदास नाहिं जीवन की आशा |

अति घिनावनी देह धरें दुर्गंधि-निवासा ||

तुम पद-पंकज-धूल को, जो लावें निज-अंग |

ते नीरोग शरीर लहि, छिन में होंय अनंग ||४५||

(भक्तामर स्तोत्र के 45 वें श्लोक का अर्थ )

उत्पन्न हुए भीषण जलोदर रोग के भार से झुके हुए, शोभनीय अवस्था को प्राप्त और नहीं रही है जीवन की आशा जिनके, ऐसे मनुष्य आपके चरण कमलों की रज रुप अम्रत से लिप्त शरीर होते हुए कामदेव के समान रुप वाले हो जाते हैं|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-45 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 46

कारागार आदि बन्धन विनाशक

(In Sanskrit)

आपाद-कण्ठ-मुरुशृंखल-वेष्टितांगा,

गाढं बृहन्निगड-कोटि-निघृष्ट-जंघाः ।

त्वन्नाम-मंत्र-मनिशं मनुजाः स्मरंतः

सद्यः स्वयं विगत-बन्ध-भया भवंति ॥46॥

(In English)

apada - kanthamurushrrinkhala - veshtitanga,

gadham brihannigadakotinighrishtajanghah |

tvannamamantramanisham manujah smarantah,

sadyah svayam vigata-bandhabhaya bhavanti || 46 ||

Explanation (English)

O Liberated one ! Persons thrown in prison, chained 

from head to toe, whose thighs have been injured by the 

chain, gets unshackled and freed from enslavement just 

by chanting your name.

(हिन्दी में )

पाँव कंठ तें जकड़ बाँध साँकल अतिभारी |

गाढ़ी बेड़ी पैर-माहिं जिन जाँघ विदारी ||

भूख-प्यास चिंता शरीर-दु:ख जे विललाने |

सरन नाहिं जिन कोय भूप के बंदीखाने ||

तुम सुमिरत स्वयमेव ही, बंधन सब खुल जाहिं |

छिन में ते संपति लहें, चिंता भय विनसाहिं ||४६||

(भक्तामर स्तोत्र के 46 वें श्लोक का अर्थ )

जिनका शरीर पैर से लेकर कण्ठ पर्यन्त बडी़-बडी़ सांकलों से जकडा़ हुआ है और विकट सघन बेड़ियों से जिनकी जंघायें अत्यन्त छिल गईं हैं ऐसे मनुष्य निरन्तर आपके नाममंत्र को स्मरण करते हुए शीघ्र ही बन्धन मुक्त हो जाते है|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-46 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 47

सर्व भय निवारक

(In Sanskrit)

मत्त-द्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि-

संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम् ।

तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव,

यस्तावकं स्तव-मिमं मतिमान-धीते ॥47॥

(In English)

mattadvipendra - mrigaraja - davanalahi

sangrama - varidhi - mahodara-bandhanottham |

tasyashu nashamupayati bhayam bhiyeva,

yastavakam stavamimam matimanadhite || 47 ||

Explanation (English)

O Tirhankara ! The one who recites this panegyric with 

devotion is never afraid of wild elephants, predatory 

lions, forest inferno, poisonous pythons, tempestuous 

sea, serious maladies, and slavery. In fact, fear 

itself is frightened of him.

(हिन्दी में )

महामत्त गजराज और मृगराज दवानल |

फणपति रण-परचंड नीर-निधि रोग महाबल ||

बंधन ये भय आठ डरपकर मानों नाशे |

तुम सुमिरत छिनमाहिं अभय थानक परकाशे ||

इस अपार-संसार में, शरन नाहिं प्रभु कोय |

या तें तुम पद-भक्त को, भक्ति सहाई होय ||४७||

(भक्तामर स्तोत्र के 47 वें श्लोक का अर्थ )

जो बुद्धिमान मनुष्य आपके इस स्तवन को पढ़ता है उसका मत्त हाथी, सिंह, दवानल, युद्ध, समुद्र जलोदर रोग और बन्धन आदि से उत्पन्न भय मानो डरकर शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाता है |

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-47 With Meaning (चित्र सहित)


Bhaktamar Stotra Shloka - 48

मनोवांछित सिद्धिदायक

(In Sanskrit)

स्तोत्र-स्त्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्-निबद्धां

भक्त्या मया विविध-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् ।

धत्ते जनो य इह कण्ठ-गतामजसं

तं मानतुंगमवश समुपैति लक्ष्मीः ॥48॥

(In English)

stotrastrajam tava jinendra ! gunairnibaddham,

bhaktya maya vividhavarnavichitrapushpam |

dhatte jano ya iha kanthagatamajasram,

tam manatungamavasha samupaiti lakshmih || 48 ||

Explanation (English)

O the greatest Lord ! With great devotion, I have made 

up this string of your virtues. I have decorated it 

with charming and kaleidoscopic flowers. The devotee 

who always wears it in the neck (memorises and chants) 

attracts the goddess Lakshmi.

(हिन्दी में )

यह गुनमाल विशाल नाथ! तुम गुनन सँवारी |

विविध-वर्णमय-पुहुप गूँथ मैं भक्ति विथारी ||

जे नर पहिरें कंठ भावना मन में भावें |

मानतुंग’-सम निजाधीन शिवलक्ष्मी पावें ||

भाषा-भक्तामर कियो, ‘हेमराज’ हित-हेत |

जे नर पढ़ें सुभाव-सों, ते पावें शिव-खेत ||४८||

(भक्तामर स्तोत्र के 48 वें श्लोक का अर्थ )

हे जिनेन्द्र देव! इस जगत् में जो लोग मेरे द्वारा भक्तिपूर्वक (ओज, प्रसाद, माधुर्य आदि) गुणों से रची गई नाना अक्षर रुप, रंग बिरंगे फूलों से युक्त आपकी स्तुति रुप माला को कंठाग्र करता है उस उन्नत सम्मान वाले पुरुष को अथवा आचार्य मानतुंग को स्वर्ग मोक्षादि की विभूति अवश्य प्राप्त होती है|

पढिये - Bhaktamar Stotra Shloka-48 With Meaning (चित्र सहित)


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