तीर्थंकर श्री विमलनाथ भगवान की आरती

Abhishek Jain
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प्रभु विमलनाथ जी जैन धर्म के 13वें तीर्थंकर है । प्रभु का जन्म माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन काम्पिलय नगरी में इक्ष्वाकु कुल में हुआ था । प्रभु विमलनाथ जी के पिता का नाम कृतवर्मन तथा माता का नाम श्यामा था । प्रभु की देह का वर्ण स्वर्ण और इनका प्रतिक चिह्न वाराह था ।


तीर्थंकर प्रभु विमलनाथ जी

तीर्थंकर श्री विमलनाथ भगवान की आरती

आरती करो रे,
तेरहवें जिनवर विमलनाथ की आरती करो रे।।टेक.।।
कृतवर्मा पितु राजदुलारे, जयश्यामा के प्यारे।
कम्पिलपुरि में जन्म लिया है, सुर नर वंदें सारे।।
आरती करो रे...
निर्मल त्रय ज्ञान सहित स्वामी की आरती करो रे।।१।।
शुभ ज्येष्ठ वदी दशमी प्रभु की, गर्भागम तिथि मानी जाती।
है जन्म और दीक्षा कल्याणक, माघ चतुर्थी सुदि आती।।
आरती करो रे...
मनःपर्यय ज्ञानी तीर्थंकर की आरती करो रे।।२।।
सित माघ छट्ठ को ज्ञान हुआ, धनपति शुभ समवसरण रचता।
दिव्यध्वनि प्रभु की खिरी और भव्यों का मन कुमुद खिलता।।
आरती करो रे...
केवलज्ञानी अर्हत प्रभु की आरती करो रे।।३।।
आषाढ़ वदी अष्टमी तिथि थी, पंचम गति प्रभुवर ने पाई।
शुभ लोक शिखर पर राजे जा, परमातम ज्योती प्रगटाई।।
आरती करो रे...
उन सिद्धिप्रिया के अधिनायक की आरती करो रे।।४।।
हे विमल प्रभू! तव चरणों में, बस एक आशा यह है मेरी।
मम विमल मती हो जावे प्रभु, मिल जाए मुझे भी सिद्धगती।।
आरती करो रे...
चंदना स्वात्मसुख पाने हेतू आरती करो रे।।५।।


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