मुनिसुव्रतनाथ जी का जीवन परिचय

Abhishek Jain
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प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर है । मुनिसुव्रतनाथ जी का जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को राजगृही में हुआ था । प्रभु के पिता का नाम सुमित्र तथा माता का नाम पद्मावती था । प्रभु के शरीर का वर्ण श्याम (काला) था तथा प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी का प्रतीक चिह्न कछुआ था ।

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मुनिसुव्रतनाथ जी


प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी का जन्म हरिवंश में हुआ था । प्रभु अरिष्टनेमी जी और प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी का वर्णन हरिवंश पुराण में विस्तार के साथ हुआ है ।

प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी के समय रामायण की घटना घटित हुई थी , जैन मान्यतानुसार इनके शासन काल में आठवें बलदेव पद्म जी (राम जी) तथा आठवें वासुदेव लक्ष्मण जी हुये । तथा इनके शासन काल में प्रतिवासुदेव के रूप में रावण (दशानन) हुये थे ।

प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी की आयु 30,000 वर्ष थी तथा प्रभु के देह की ऊंचाई  धनुष थी । इसके पश्चात प्रभु ने वैशाख कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की , दीक्षा के समय प्रभु को मनः पर्व ज्ञान की प्राप्ती हुई और प्रभु चार ज्ञान के धारक हो गये ।

प्रभु के साधनाकाल की अवधी 11 माह की थी । 11 माह के पश्चात वैशाख कृष्ण नवमी के दिन प्रभु को निर्मल कैवलय ज्ञान की प्राप्ती हुई , प्रभु सर्वज्ञ , जिन , केवली , अरिहंत प्रभु हो गये । प्रभु ने चार घाती कर्मो का नाश कर परम दुर्लभ कैवलय ज्ञान की प्राप्ती हुई थी ।

इसके पश्चात् प्रभु ने चार तीर्थो की साधु/ साध्वी व श्रावक/ श्राविका की स्थापना की और स्वयं तीर्थंकर कहलाये । प्रभु का संघ विस्तृत था , प्रभु मुनिसुव्रत के संघ में गणधरो की संख्या 18 थी । इसके पश्चात प्रभु ने सम्मेद शिखरजी में फाल्गुण कृष्ण द्वादशी के दिन निर्वाण प्राप्त किया । प्रभु के मोक्ष के साथ ही प्रभु ने अष्ट कर्मो का क्षय कर सिद्ध हो गये ।

प्रभु जन्म - मरण के भव बंधनो को काट कर हमेशा के लिए मुक्त हो गये ।

" प्रभु मुनिसुव्रत जी की जय हो "


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