सोलह सती का छन्द - जैन भजन

Abhishek Jain
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सोलह सती जैन धर्म में वर्णित ऐसी महान नारियो का उल्लेख है , जिन्होंने अपने शील धर्म से अपने पुण्य के द्वारा धर्म की स्थापना की थी । इन महासतियो के नामों का प्रतिदिन स्मरण करना चाहिए । सोलह सती का छन्द आप नित्य प्रातः काल में पाठ करें ।

इन महासतियो के गुणगान के लिए श्रद्धा रूप में जैन साहित्य में यह छन्द लिखा गया है , इस छन्द को आप प्रतिदिन कभी भी पढ़ सकते है परन्तु इसे पढ़ने का सबसे सर्वोत्तम समय प्रातःकाल होता है । आप इस छन्द को सामायिक के दौरान भी पढ़ सकते है ।


सोलह सती का छन्द

सोलह सती का छन्द

शीतल जिनवर करूं प्रणाम,
सोलह सतीरा लेसू नाम ।
ब्राह्मी चन्दना राजमती,
द्रोपदी कौशल्या मृगावती ॥ १ ॥

सुलसा सीता सुभद्रा जाण,
शिवा कुन्ती शील गुण खाण ।
धरणी दमयन्ती सती,
चेलना प्रभावती पद्मावती ॥ २ ॥

शोल गुणे सुहावे सिरी,
ऋषभदेवनी धिया सुन्दरी ।
सोलह सतियां शील गुण भरी,
भवियन प्रणमो भावे करी ॥ ३ ॥

ये सुमरियां सब संकट टलें,
मन चिन्तित मनोरथ फलें ।
इण नामे सब सीझे काज,
लहिये मुक्तिपुरीनो राज ॥ ४ ॥

भूत प्रेत इण नामे टले,
ऋद्धि सिद्धि घर आई मिले ।
इण नामे सह होय जगीश,
ये सतियां सुमरो निश-दीश ॥ ५ ॥


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" जय जिनेन्द्र "

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