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उपवास कर्म निर्जरा का प्रमुख साधन माना जाता है । उपवास आत्मा को शक्ति प्रदान करता है , अगर आत्मा को सुख हो तभी धर्म हो सकता है , ऐसे में जैन धर्म में उपवास (Fasting in jainism) के भी भिन्न- भिन्न प्रकार है ।
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जैसे - : अगर आप में उपवास करने का बहुत ज्यादा सामर्थय है तब आप चौविहार व्रत ग्रहण कर सकते है , जिसमें अन्न और जल का त्याग होता है । अगर आप जल के बिना उपवास नही कर सकते तब आप तिविहार का पचखान करते है , व्रत के इस प्रकार में आप केवल भोजन का त्याग करते है ,आप प्रासुक जल ग्रहण कर सकते है।
(यहाँ केवल संक्षिप्त जानकारी दी गई है ज्यादा जानकारी के लिए जैन व्रत की सामान्य जानकारी देखें)
उपवास ग्रहण करने के लिए व्रत ग्रहण के सूत्र होते है , जो प्रतिज्ञा रूप में यह दर्शाते है कि इस अवधी तक मेरा उपवास है , यह एक संकल्प की तरह है कि हम इस तरह से उपवास ग्रहण कर रहे है।
(एक समय भोजन की छूट , पानी पीने का आगार , पूर्ण उपवास इत्यादि)
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जैन धर्म में विभिन्न उपवास ग्रहण करने के सूत्र
जैन-व्रत ग्रहण करने के सूत्र
प्रत्याख्यान-सूत्र
१. नमस्कार (नौकारसी) सहित सूत्र
उग्गए सूरे, नमोक्कारसहियं पञ्चक्खामि चउविहं पि
आहारं असणं, पाणं, खाइम, साइमं ।
अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, वोसिरामि ।
२. पौरुषी-सूत्र
उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खामि, चउब्विहं पि
आहारं असणं, पाणं, खाइम, साइमं ।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं
दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, सत्वसमाहि-वत्तियागारेणं,
वोसिरामि ।
३. पूर्वार्ध-(पुरिमड्ढ) सूत्र
उग्गए सूरे, पुरिमड्ढं पक्चक्खामि, चउबिहं पि आहारं
असणं, पाणं, खाइम, साइमं ।
अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं
दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं,
सब्बसमाहि-वत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
४. एकाशन-सूत्र
एगासणं पच्चक्खामि तिविहं पि आहारं-असणं, खाइमं,
साइमं ।
अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं, सागारियागारेणं,
आउंटणपसारणेणं, गुरु-अब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं,
महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
५. एकस्थान-(एकलठाणा) सूत्र
एक्कासणं एगट्ठाणं पच्चक्खामि, तिविहं
आहारं असणं, खाइमं, साइमं ।
अन्नत्थरुणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं,
गुरुअब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं,
सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
६. आचाम्ल-(आयंबिल) सूत्र
आयंबिलं पच्चक्खामि, अन्नत्थऽणाभोगेणं,
सहसागारेणं, लेवालेवेणं,उक्खित्तविवेगेणं,
गिहत्य-संसट्टेणं पारिट्ठावणियागारेणं,
महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
७. अभक्तार्थ-उपवास सूत्र
उग्गए सूरे अभत्तटुं पञ्चक्खामि, चउचिहं पि आहार
असणं, पाणं, खाइम, साइमं ।
अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, परिट्ठावणि यागारेणं,
महत्तारागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
८. दिवसचरिम-सूत्र
दिवसचरिमं पच्चक्खामि, चउचिहं पि आहारं असणं,
पाणं, खाइम, साइमं ।
अन्नत्यऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं,
सबसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
६. अभिग्रह-सूत्र
अभिग्गहं पच्चक्खामि, चउविहं पि आहारं असणं,
पाणं, खाइम, साइमं ।
अन्नत्थऽणाभोगेणं,सहसागारेणं,महत्तरागारेणं
सब्बसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
१०. निर्विकृतिक-(नीवी) सूत्र
विगईओ पच्चक्खामि, अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं
लेवालेवेणं, गिहत्थसंसट्टेणं, उक्खित्तविवेगेणं,
पडुञ्चमक्खिएणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं,
वोसिरामि ।
उपवास, दिवसचरिम अभिग्रह आदि में यदि पानी का आगार( छूट) रखना हो तो 'चउबिह' के स्थान पर 'तिविहं' पाठ बोलना चाहिए और आगे 'पाणं' का पाठ नहीं बोलना चाहिए।
ऊपर लिखे हुये सभी सुत्र भिन्न- भिन्न प्रकार के उपवास ग्रहण करने के लिए दिये गये है । सभी प्रकार के उपवास का एक हि पारण सूत्र होता है ,जो कि निम्नलिखित है -
जैन-व्रत पारणे का सूत्र
प्रत्याख्यानपारणा सूत्र (सर्व उपवास पारणा सूत्र )
उग्गए सूरे, नमोक्कारसहिय"..........'पच्चक्खाणं कयं ।
तं पच्चक्खाणं सम्मं कायेण फासिय,पालिय,
तीरियं,किटिट्यं,सोहियं,आराहियं ।
जं च न आराहियं, तम्स मिच्छामि दुक्कडं।
सूचना-रिक्त स्थान का अभिप्राय यह है कि जो पच्चक्खाणं (प्रत्याख्यान) किया हो, उसका नाम बोलें जैसे कि नमोक्कारसहियं, पोरसी, एगासणं, उपवास आदि ।
जहां भी नमोक्कारसहियं लिखा हो वहां पर 5 बार नवकार मंत्र बोले ।
जानिये - जैन धर्म में नवकार मंत्र क्या है ?
इस प्रकार से यह थे जैन व्रत ग्रहण करने के सूत्र, और सभी प्रकार के उपवास को पारणे (व्रत खोलने) के लिए प्रत्याख्यानपारणा सूत्र होता है,जैन उपवास सूत्र प्राकृत भाषा में है , जो जैन ग्रन्थो की मूल भाषा है ।
आपको इस Article में सिर्फ जैन उपवास सूत्र के बारे में बताया गया है । जैन व्रत से सम्बधित सारी जानकारी के लिए कृपा कर जैन व्रत की सामान्य जानकारी वाला Article जरूर देंखे ।
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" जय जिनेन्द्र "
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