जैन धर्म में सामायिक क्या है ?
सामायिक जैन धर्म में उपासना का एक तरीका है । दो घड़ी अर्थात 48 मिनट तक समतापूर्वक शांत होकर किया जाने वाला धर्म-ध्यान ही सामायिक है। जैन आगमो में ऐसा वर्णन है कि चाहे गृहस्थ हो या साधु सामायिक सभी के लिए अनिवार्य है।
अपने जीवनकाल में से प्रत्येक दिन केवल दो घड़ी का धर्म ध्यान करना ही सामायिक कहलाता है। सामायिक का अर्थ है आत्मा में रमण करना समता पूर्वक पाप का त्याग करना ही सामायिक है ।
श्रावक / श्राविका के 12 व्रत में से 9 वां व्रत सामायिक का है और साधू / साध्वी जी का सम्पूर्ण जीवन ही सामायिक है ।
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सामायिक लेने की विधि
सामायिक लेने से पहले अरिहंत भगवान श्री सींमधर स्वामी को प्रणाम करते हैं । उसके पश्चात अपने गुरुदेव की आज्ञा लेकर करेमी भंते का पाठ पढ़ा जाता है।
सामायिक ग्रहण करने के 9 सूत्र होते हैं, प्रत्येक सूत्रों को बोलकर सामायिक ग्रहण की जाती है, उसके पश्चात 48 मिनट तक मन, वचन, और काया से 32 दोषो को टाला जाता है। जिसमें 10 मन के, 10 वचन के, और 12 काय के दोष माने जाते हैं।
सामायिक पारणे की विधि
जिस प्रकार से नियम पूर्वक सामायिक ग्रहण कि जाती है , उसी प्रकार से समभाव से सामायिक पारी भी जाती है ।
जिस प्रकार से करेमी भंते के पाठ से सामायिक ग्रहण की जाती है , उसी प्रकार से नमस्कार महामंत्र गिनकर सामायिक के पारणा पाठ से सामायिक पारी जाती है ।
सामायिक पारणे का पाठ
एक सामायिक का मूल्य
जैन ग्रन्थो में सामायिक का बहुत महत्व बताया गया है । जैन मान्यतानुसार सामायिक से जुड़ा एक प्रसंग है कि एक बार राजा श्रेणिक ने, भगवान महावीर से एक सामायिक का मूल्य पूछा, तो भगवान महावीर ने उत्तर दिया- "हे राजन् ! तुम्हारे पास जो चाँदी, सोना व जवाहर राशि हैं, उनकी थैलियों के ढेर, यदि सूर्य और चाँद को छू जाएँ, फिर भी एक सामायिक का मूल्य तो क्या, उसकी दलाली भी पर्याप्त नहीं होगी" ।
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