श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र (कल्पबेल चिन्तामणि)
कल्पबेल चिन्तामणि, कामधेनु गुण खान ।
अलख अगोचर अगमगति, चिदानन्द भगवान ।।
पम् ज्योति परमात्मा, निराकार अविकार ।
निर्भय रूप ज्योति स्वरूप, पूरण ब्रह्म अपार ।।
अविनासी साहिब धनी, चिन्तामणि श्री पास ।
विनय करूं कर जोड़ के, पूरो वांछित आस ।
मन चिन्तित आशा फले, सकल सिद्ध हो काम।
चिन्तामणि को जाप जप, चिन्ता हरे यह नाम।।
तुम सम मेरे को नहीं, चिन्तामणि भगवान ।
चेतन की यह विनती, दीजे अनुभव ज्ञान ।।
|| चौपाई ||
जानिये - श्री पार्श्वनाथ जी स्तोत्र
प्राण देवलोक से आए, जन्म बनारस नगरी पाए ।
अश्वसेन कुल मंडनस्वामी, तिहुँ जग के प्रभु अंतर्यामी ।।
वामादेवी माता के जाए, लक्षण नागफणी मणि पाए ।
शुभकाया नवहाथ बखानो, नीलवर्ण तन निर्मल जानो ।
मानव यक्ष सेवें प्रभु पाए, पद्मावती देवी सुखदाए ।
इन्द्र चंद्र पारस गुण गावे, कल्पवृक्ष चिन्तामणि पावे ।।
नित मूमा चिन्तामणि स्वामी, आशापूरे अंतर्यामी ।
धन धन पारस्पुरुषादानी, तुम सम जग में को नहीं माणी ।।
तुमरो नाम सदा सुखकारी, सुख उपजे दुख जाय विसारी ।
चेतन को मन तुमरे पास, मनवांछित पूरो प्रभु आस ।
।। दोहा ।।
जानिये - उपसर्ग-हर-स्तोत्र
ॐ भगवत चिन्तामणि, पार्श्व प्रमु जिनराय ।
नमो नमो तुम नाम से, गंग शोक मिट जाय ।।
बात पित्त दूरे टले, कफ नहीं आवे पास ।
चिन्तामणि के नाम से, मिटै श्वास और खाांस ।।
प्रथम दूसरो तीसरी, ताव चौथियो जाय ।
'शूल बहत्तर दूर हों, दादर खाज न थाय ।।
विस्फोटक गड़ गूंबड़ा, कोढ़ अठारह दूर ।
नेत्र रोग सब परिहरे, कण्ठमाल चकचूर ॥
चिन्तामणि के जाप से, रोग शोक मिट जाय ।
चेतन पारस नाम को, सुमरो मन चित लाय ।।
जानिये - कल्याण मंदिर स्तोत्र : हिन्दी
।। चौपाई ॥
मन शुद्ध सुमरी भगवान ।
भय भंजन चिन्तामणि ध्यान ।
भूत प्रेत भय जावे दूर ।
जाप जपे सुख सम्पत्ति पूर ।।
डाकण साकण व्यन्तरदेव ।
भय नही लाग पारससेव।
जलचर थलचर उरपर जीव ।
इनको भय नहीं सुमरो पीव ।।
बाघ सिंह को भय नहीं होय ।
सर्प गोह आवे नहीं कोय।
बाट घाट में रक्षा करे ।
चिन्तामणी चिन्ता सब हरे।।
टोणा टामण जादू करे ।
तुमरो नाम लियां सब डरे ।
टह फांसीगर तस्कर होय ।
द्वषा दुश्मन नावे काये ।।
भय सब भागे तुमरे नाम ।
मनवांछित पूरो सब काम ।।
भय निवारण पूरे आश।
चेतन जप चिन्तामणि पास ।।
।। दोहा ।।
जानिये - लोगस्स का पाठ
चिन्तामणि के नाम से, सकल सिद्ध हो काम् ।
राज ऋदि रमणी मिले, सुख सम्पत्ति बहु दाम ।।
हय, गय, रथ पायक मिले, लक्ष्मी को नहीं पार ।
पुत्र कलत्र मगल सदा, पावे शिव दरबार ।।
चेतन चिन्ता हरण को, जाप जपो तिहुँ काल ।
कर आम्बिल षट् मास को, उपजे मंगल माल ।
पारस नाम प्रभाव से, बाढ़े बल बहु ज्ञान ।
मनवांछित सुख ऊपजे, नित सिमरो भगवान ।।
सम्वत् अठारह ऊपरे, साढत्रीस परिमाण ।
पोष शुक्ल दिन पंचमी, बार शनिश्चर जाण ।।
पढ़े गुणे जो भाव से, सुणे सदा चित्त लाय ।
चेतन सम्पत्ति बहु मिले, सुमरो मन वच काय ।
जानिये - थावच्चा पुत्र की कहानी (जैन कहानी)
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