प्रभु सुविधिनाथ जी जैन धर्म के 9वें तीर्थंकर है । प्रभु जी का दुसरा नाम पुष्पदंत जी भी है,प्रभु सुविधिनाथ जी पुष्पदंत जी के नाम से भी विख्यात है ।प्रभु का जन्म मार्गकृष्ण पंचमी को हुआ था, प्रभु के पिता का नाम सुग्रीव तथा माता का नाम जयरामा देवी था । प्रभु का प्रतीक चिह्न 'मगर' था । प्रभु की देह का रंग दुध की भाँती सफेद था ।
सुवधिनाथ जी |
प्रभु के शरीर की ऊंचाई 100 धनुष (300 मीटर) थी, प्रभु की कुल आयु 2,00,000 वर्ष पूर्व थी ।
प्रभु ने मार्गशीर्ष शुक्ल एकम के दिन काकंदी नगर में मुनी दीक्षा ग्रहण की और प्रभु चार ज्ञान के धारक हो गये । इसके पश्चात् प्रभु ने कठोर तपस्या कर अपने चार घनघाती कर्मों का क्षय कर कार्तिक शुक्ल दुज के दिन कैव्लय ज्ञान प्राप्त हुआ और प्रभु सर्वज्ञ , समस्त जगत के ज्ञाता दृष्टा हो गये ।
प्रभु ने अरिहंत अवस्था प्राप्त की , प्रभु के चार कर्म नष्ट हो चुके थे और चार कर्म अभी बाकी थे । प्रभु ने अरिहंत अवस्था पाने के बाद अपना प्रथम उपदेश दिया, और साधु,साध्वी,श्रावक,श्राविका चार तीर्थों की स्थापना की और तीर्थंकर कहलाये ।
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प्रभु के 88 गणधर थे । प्रभु के यक्ष का नाम अजित तथा यक्षिणी का नाम महाकाली था । प्रभु के प्रमुख गणधर का नाम श्री विर्दभ जी था ।
इसके पश्चात प्रभु अपने समस्त अष्ट कर्मो का क्षय कर भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन मूला नक्षत्र में सम्मेद शिखर जी में मोक्ष कि प्राप्ती हुई । प्रभु ने निर्वाण प्राप्त कर सिद्ध अवस्था प्राप्त की ।
" प्रभु सुविधिनाथ जी की जय हो "
॥ इति ॥
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