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प्रभु के शरीर की ऊँचाई 200 धनुष (600 मीटर ) तथा प्रभु की आयु 20,00,000 पूर्व की थी । सुपाश्र्वनाथ जी ने ज्येष्ठ मास की त्रियोदशी को दीक्षा ग्रहण की , प्रभु का साधनाकाल 9 वर्ष का था ।
9 वर्ष के कठोर साधनाकाल के बाद प्रभु ने फाल्गुन शुक्ल सप्तमी के दिन प्रभु ने कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया और अरिहंत कहलाये ।
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इसके पश्चात् प्रभु ने धर्म का उपदेश दिया और चार तीर्थो की स्थापना कर तीर्थंकर कहलाये । प्रभु के गणधरो की कुल संख्या 95 थी ,इसके पश्चात प्रभु ने फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन सम्मेद शिखर जी में निर्वाण प्राप्त किया और सिद्ध कहलाये ।
॥ इति ॥
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