भगवान अभिनंदननाथ जी

Abhishek Jain
0
भगवान अभिनंदननाथ जी जैन धर्म के चर्तुथ तीर्थंकर थे । इनके पिता का नाम संवर तथा माता का नाम सिद्धार्था देवी था । प्रभु अभिनंदन नाथ जी का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को अयोध्या में हुआ था । प्रभु की देह का रंग सुनहरा तथा प्रभु का प्रतीक चिह्न बंदर था ।

यह भी देखें - श्री अभिनंदननाथ जी चालीसा

अभिनंदन नाथ जी
प्रभु अभिनंदन नाथ जी

प्रभु के शरीर का आकार 350 धनुष (1050 मीटर ) था । प्रभु की आयु 50,000,00 वर्ष पूर्व की थी । प्रभु के यक्ष का नाम यक्षेश्वर तथा यक्षिणी का नाम काली था ।

प्रभु ने दीक्षा लेकर मुनिव्रत स्वीकार किया तथा चार ज्ञान के धारक हो गये । प्रभु का साधनाकाल 18 वर्ष का था , उसके पश्चात् पौष शुक्ल चतुर्दशी को संध्या के समय प्रभु को कैवलय ज्ञान की प्राप्ति हुई । इसके पश्चात प्रभु अरिहंत , केवली , जिन कहलाये और प्रभु ने चार तीर्थो की स्थापना कर तीर्थकर कहलाये

प्रभु के चार तीर्थ साधु - साध्वी व श्रावक - श्राविका थे । प्रभु के शासन काल मे 103 गणधर प्रभु थे । प्रभु का प्रथम शिष्य (गणधर) वज्रनाभ हुआ तथा प्रभु की प्रथम शिष्या ( साध्वी प्रमुख) अजिता थी । प्रभु का प्रमुख श्रावक का नाम मित्रभाव तथा मुख्य श्राविका का नाम जयनंदा था ।

प्रभु का निर्वाण (मोक्ष) वैशाख शुक्ल षष्ठी के दिन सम्मेद शिखरजी मे हुआ था । प्रभु अभिनंदन नाथ जी जैन धर्म के चर्तुथ तीर्थंकर थे

यह भी देखें - तीर्थंकर श्री अभिनंदननाथ जी की आरती

॥ इति ॥

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।

एक टिप्पणी भेजें (0)