जैन साधु नंगे पांव क्यों चलते है ?
जैन साधुओं का प्रमुख धर्म है 'अहिंसा'। मार्ग में किसी भी छोटे से जीव की विराधना न हो जाए, उन्हें किसी भी प्रकार की हानि न पहुंचे इसी बात का विशेष ध्यान रखकर जैन साधु नंगे पांव चलते हैं।
जब कोई भी जैन साधु बनता है, तब वह भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित पंच महाव्रतओं का पालन करने का व्रत लेता है। पंच महाव्रतओं का पालन करने का व्रत लेने के साथ-साथ वह तीन गुप्तियो का भी पालन करता है ।
इतने सारे नियम और कष्टों को वह सिर्फ इसलिए सहते हैं, ताकि अहिंसा की पालना हो सके अगर कोई कहे जैन धर्म को एक शब्द में समझाओ तो उसका सीधा सा उत्तर होगा "अहिंसा" अहिंसा की व्याख्या ही जैन धर्म है। और इसी अहिंसा के पालन के लिए जैन मुनि नंगे पांव चलते हैं।
मार्ग में वह अनेकों प्रकार के कष्टों को सहते हैं, कभी उनके पैरों में शूल चुभ जाते हैं और कभी कंकड़ या कांच का टुकड़ा भी लग जाता है।
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लेकिन वे ऐसा किस लिए करते हैं ?
ऐसा वे धर्म के पालन के लिए करते है । अहिंसा का पालन हि धर्म का पालन है । मार्ग में चलते हुए सुक्ष्म जीव यथा छोटे से छोटे जीव चींटी तक को भी कष्ट न हो इतनी सावधानी रखने के बाद भी अनजानी हिंसा के लिए प्रत्येक संध्या के समय प्रति क्रमण (अनजानी हिंसा के लिए क्षमा याचना ) की जाती है ।
नंगे पांव चलकर वह यह सुनिश्चित करते है कि मेरे पांव के नीचे आकर किसी भी प्रकार के जीव कि हिंसा न हो , साथ ही आवश्यक वस्तुओ के अतिरिक्त बाकी सब का त्याग हो जाये ।
जानिये - जैन धर्म में साधु कौन होते है ?
जय जिनेंन्द्र! प्रतिक्रमण याने की क्षमायाचना किस प्रकार की जाती है ? क्या प्रतिक्रमण के लिए कोई विशिष्ट शब्दो से रचित प्रार्थना होती है , कृपया बतांए
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