लेश्या-जैन धर्म

Abhishek Jain
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जैन धर्म में लेश्या क्या है ?

लेश्या का मतलब होता है,आत्मा का स्वभाव । आत्मा के स्वभाव से तात्पर्य है कि जिसके द्वारा आत्मा कर्मों से लिप्त होती है तथा मन के शुभ और अशुभ परिणाम को लेश्या कहते हैं।

जैन धर्म के अनुसार लेश्या 6 प्रकार की होती है।

1.कृष्ण लेश्या
2.नील लेश्या
3.कपोत लेश्या
4.तेजो लेश्या
5.पदम लेश्या
6.शुक्ल लेश्या

इसके अलावा आत्मा के जो विचार हैं उनको भाव लेश्या कहते हैं और जिन पुदगलो के द्वारा आत्मा के विचार बदलते रहते हैं, उन पुदगलो को द्रव्य लेश्या कहते हैं, लेश्या के नाम द्रव्य लेश्या के आधार पर ही रखे गए हैं।

जैन धर्म के अनुसार तीन लेश्या अशुभ फलदाई होती हैं, और वह पाप का कारण बनती हैं और 3 लेश्या शुभ फलदाई होती हैं और वह पुण्य का कारण बनती है।

जैन धर्म के अनुसार तीन अशुभ लेश्या निम्नलिखित हैं
1.कृष्ण लेश्या
2.नील लेश्या
3.कपोत लेश्या

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जैन धर्म के अनुसार तीन शुभ लेश्या निम्नलिखित हैं
1. तेजो लेश्या
2. पदम लेश्या
3. शुक्ल लेश्य

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इन सभी लेश्या के लक्षण होते हैं,जिस वजह से उन्हें पहचाना जाता है।

लेश्या (जैन धर्म)

लेश्याओ के लक्ष्ण निम्नलिखत प्रकार से होते है -

1. कृष्ण लेश्या- निर्दयी, पापी, जीवो की हत्या करने वाला ,असंयमित, अमर्यादित, इन्द्रियो को वश मे न रखने वाला आदि  उपरोक्त परिणामो से युक्त जीव कृष्ण लेश्या के परिणाम वाला होता है ।
2. नील लेश्या - ईर्षालू, कदाग्रही, तपस्या न करने वाला, निर्लज्ज, द्वेष करने वाला, मूर्ख, प्रमादी, तुच्छ तथा सहासिक, बिना विचारे काम करने वाला आदि उपरोक्त परिणामो से युक्त जीव नील लेश्या के परिणाम वाला होता है।
3. कपोत लेश्या - वक्र वचन बोलने वाला, मिथ्या दृष्टि, अनार्य,चोर,मत्सरी आदि । उपरोक्त परिणामो से युक्त जीव नील लेश्या के परिणाम वाला होता है।
4. तेजो लेश्या - अंहकार रहित, माया रहित, इन्द्रियो को वश मे रखने वाला, पाप से डरने वाला, धर्म मे रत रहने वाला आदि।उपरोक्त परिणामो से युक्त जीव तेजो लेश्या के परिणाम वाला होता है।
5.पद्‌म लेश्या - अल्प क्रोध वाला, अल्प माया वाला, अपनी आत्मा का दमन करने वाला, जितेन्द्रिय आदि । उपरोक्त परिणामो से युक्त जीव पद्म लेश्या के परिणाम वाला होता है।
6.शुक्ल लेश्या - शांत चित्त वाला, धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान करने वाला , उपशांत और जितेन्द्रिय आदि। उपरोक्त परिणामो से युक्त जीव शुक्ल लेश्या के परिणाम वाला होता है।

जैन धर्म के अनुसार उपरोक्त सभी लक्षण लेश्या को प्रदर्शित करते हैं ,जो जीव जिस तरह का आचरण करता है वह जीव उसी लेश्या से युक्त होता है।

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6 लेश्या का स्वरूप समझने के लिए कहानी के माध्यम से इसे समझिए -

कहानी - जामुन का वृक्ष

छह पुरुषों ने एक जामुन का वृक्ष देखा वृक्ष पके हुए फलों से लदा था। शाखाएं नीचे की ओर झुकी हुई थी, उसे देख कर उन्हें फल खाने की इच्छा हुई । वे सोचने लगे किस प्रकार इसके फल खाए जाएं ? एक ने कहा वृक्ष पर चढ़ने से गिरने का डर है, इसलिए इसे जड़ से काट कर गिरा दें और सुख से बैठकर फल खाएं यह सुनकर, दूसरे ने कहा वृक्ष को जड़ से काट कर गिराने से क्या लाभ केवल बड़ी-बड़ी डालिया ही क्यों न काट ली जाएं । इस पर तीसरा बोला बड़ी डालिया न काटकर छोटी-छोटी डालियां ही क्यों न काट ली जाएं । क्योंकि फल तो छोटी-छोटी डालियों में ही लगे हुए हैं। चौथे को यह बात पसंद नहीं आई उसने कहा केवल फलों के गुच्छे ही तोड़े जाएं हम तो फलों से ही प्रयोजन है। पांचवी ने कहा गुच्छे भी छोड़ने की जरूरत नहीं है, केवल पके हुए फल ही नीचे गिरा दिए जाएं यह सुनकर, छठे ने कहा जमीन पर काफी फल गिरे हुए हैं, उन्हें ही खा ले अपना मतलब तो इन्हीं से सिद्ध हो जाएगा।

इस कहानी में जो पहला व्यक्ति था, वह कृष्ण लेश्या से युक्त था। दूसरा व्यक्ति नील लेश्या से और तीसरा व्यक्ति कपोत लेश्या से युक्त था। चौथा व्यक्ति तेजो लेश्या से और पाचवां व्यक्ति पदम लेश्या से युक्त था, छठा व्यक्ति शुक्ल लेश्या से युक्त था । इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य फल था , लेकिन उनके मनोभाव में शुभ विचारों की वृद्धि क्रमशः होती गई।

इस प्रकार कृष्ण लेश्या सबसे पापी पुरुषों की और शुक्ल लेश्या सबसे पुण्य पुरुषों की होती है।

इस प्रकार से प्रत्येक मनुष्य भिन्न-भिन्न विचारों वाला होता है ।प्रत्येक मनुष्य की आत्मा भिन्न-भिन्न होती है। जिसके विचार जितने उत्तम होते हैं, उसकी लेश्या उतनी ही उत्तम होती है ।और जिसके विचार जितने ज्यादा निम्न होते हैं वह उतनी ही निम्न लेश्या का धारक होता है।
अगर कोई त्रुटी हो तो "तस्स मिच्छामी दुक्कड़म"

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" जय जिनेन्द्र ".

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