भगवान महावीर फरमाते हैं "जो आत्मा को पवित्र करें तथा जिस की प्रकृति शुभ हो, जो बांधते हुए कठिन, भोंगते हुए सुखकारी, दुख पूर्वक बांधा जावे, सुख पूर्वक भोगा जावे ,शुभ योग से बांधे, शुभ उज्जवल पुदगलो का बंध पड़े, पुण्य धर्म का सहायक तथा पथ्य रूप है । जिसका फल मीठा हो उसे पुण्य कहते हैं" ।
जैन धर्मानुसार 9 प्रकार से पुण्य बधंता है और 82 प्रकार से भोगा जाता है ।
क्या पुण्य को भी भोगना पड़ता है ?
जैन धर्म के अनुसार पुण्य एक प्रकार का बंधन है, जब तक इंसान सुख पूर्वक पुण्य को नहीं भोगता तब तक वह निर्वाण को प्राप्त नहीं कर सकता । निर्जरा और पुण्य में अंतर होता है यह अंतर जैन धर्म के नव तत्व में वर्णित है ।
जिस प्रकार पाप के कर्मों को दुख पूर्वक भोगा जाता है ,उसी प्रकार पुण्य के कर्मों को सुख पूर्वक भोगा जाता है ,यही पाप और पुण्य जन्म और मरण के कारण बनते हैं । इसलिए जैन मुनि इसके चक्र पर प्रहार करते हैं और निर्झरा कर निर्वाण की प्राप्ति करते हैं ,मोक्ष हि परमसुख है ।
इसलिए प्रत्येक कर्म को बिना इच्छा के करना चाहिए ।
पुण्य कर्मों का संचय करना अच्छी बात है, पर मुमुक्षु आत्मा यह पुण्य 14 गुणस्थान पर जाने के बाद छोड़ देती है, पुण्य की तुलना जैन धर्म में नौका से की गई है, जिस प्रकार समुद्र को पार करने के लिए नौका की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार से इस संसार सागर को पार करने के लिए पुण्य रूपी नौका की आवश्यकता होती है । इस प्रकार समुंदर के किनारे पर पहुंचकर प्रत्येक यात्री अपनी नौका को छोड़ देता है उसी प्रकार से निर्वाण प्राप्त करने के लिए पुण्य भी छोड़ दिया जाता है।
जैन धर्म में वर्णित 9 पुण्य
1.अन्न पुण्य- किसी भूखे को भोजन कराने से ,किसी को अन्न दान देने में पुण्य होता है।
2.पान पुण्य- किसी प्यासे को पानी पिलाने से, किसी को पानी देने में पुण्य होता है।
3. लयन पुण्य- जगह , स्थान देने से पुण्य होता है।
4. शयन पुण्य-शैय्या, पाठ वगैरा देने से पुण्य होता है।
5.वस्त्र पुण्य- किसी जरूरतमंद को वस्त्र देने से पुण्य होता है।
6.मन पुण्य-मन में शुद्ध भावना रखने से पुण्य होता है।
7.वचन पुण्य-मुख से शुभ वचन बोलने से , अच्छा वचन निकालने से पुण्य होता है।
8. काय पुण्य- शरीर द्वारा किसी का अच्छा करने से किसी की सेवा करने से पुण्य होता है।
9.नमस्कार पुण्य- भगवान को ,गुरुजनों को नमस्कार करने से पुण्य मिलता है।
इस प्रकार उपरोक्त 9 प्रकारो से पुण्य कर्मो का उपार्जन किया जाता है । पुण्य कर्म से जीव कि आत्मा हल्की हो जाती है, जिस वजह से वह सीधा उच्च लोको में जाती है । पुण्य का फल अति उत्तम होता है। पुण्य का प्रभाव जीव कि आत्मा से तो सम्बद्धित है हि इसके साथ-साथ पुण्य का प्रभाव देश, काल, कुल आदि पर भी पड़ता है । पुण्य कर्म के प्रभाव से आत्मा सुख भोगती है ।
जय जिनेंन्द्र
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